प्रस्तुति : ज्ञान प्रकाश वैदिक
पेरियार और अम्बेडकर एक चुम्बक के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की तरह हैं जिन्हे कभी भी एक साथ नहीं रखा जा सकता। वे अम्बेडकरवादी जिन्होंने ना तो आदरणीय अम्बेडकर जी को पढ़ा है और ना ही कभी विचार किया है जबरदस्ती उनके के साथ पेरियार को जोड़ रहे हैं. अम्बेडकर जी प्रखर देशभक्त थे.
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डॉ अम्बेडकर के नाम लेवा यह संगठन भूल गया कि पेरियार ने 1947 में डॉ अम्बेडकर पर देश हित की बात करने एवं द्रविड़स्तान को समर्थन न देने के कारण तीखे स्वरों में हमला बोला था। पेरियार को लगा था कि डॉ अम्बेडकर जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष कर रहे है। इसलिए उसका साथ देंगे मगर डॉ अम्बेडकर महान राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने पेरियार की सभी मान्यताओं को अपनी लेखनी से निष्काषित कर दिया।
1. डॉ अम्बेडकर अपनी पुस्तक “शुद्र कौन” में आर्यों के विदेशी होने की बात का खंडन करते हुए लिखते है कि
नाक के परिमाण के वैज्ञानिक आधार पर ब्राह्मणों और अछूतों की एक जाति है। इस आधार पर सभी ब्राह्मण आर्य है और सभी अछूत भी आर्य है। अगर सभी ब्राह्मण द्रविड़ है तो सभी अछूत भी द्रविड़ है।
इस प्रकार से डॉ अम्बेडकर ने नाक की संरचना के आधार पर आर्य-द्रविड़ विभाजन को सिरे से निष्काषित कर दिया। परन्तु पेरियार सभी उत्तर भारतियों को विदेशी बताता है.
2. जहाँ पेरियार संस्कृत भाषा से नफरत करते थे, वही डॉ अम्बेडकर संस्कृत भाषा को पूरे देश की मातृभाषा के रूप में प्रचलित करना चाहते थे। डॉ अम्बेडकर मानते थे कि संस्कृत के ज्ञान के लाभ से प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ज्ञान को जाना जा सकता है। इसलिए संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है।
3. पेरियार द्रविड़स्तान के नाम पर दक्षिण भारत को एक अलग देश के रूप में विकसित करना चाहते थे। जबकि डॉ अम्बेडकर सम्पूर्ण भारत को एक छत्र राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे जो संस्कृति के माध्यम से एक सूत्र में पिरोया हुआ हो।
4. डॉ अम्बेडकर आर्यों को विदेशी होना नहीं मानते थे जबकि पेरियार आर्यों को विदेशी मानते थे।
5. डॉ अम्बेडकर रंग के आधार पर ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण का विभाजन गलत मानते थे जबकि पेरियार उसे सही मानते थे।
6. डॉ अम्बेडकर मुसलमानों द्वारा पिछले 1200 वर्षों में किये गए अत्याचारों और धर्म परिवर्तन के कटु आलोचक थे। उन्होंने पाकिस्तान बनने पर सभी दलित हिंदुओं को भारत आने का निवेदन किया था। क्योंकि उनका मानना था कि इस्लाम मुस्लिम-गैर मुस्लिम और फिरकापरस्ती के चलते सामाजिक समानता देने में नाकाम है। 1921 में हुए मोपला दंगों की डॉ अम्बेडकर ने कटु आलोचना करी थी जबकि पेरियार वोट साधने की रणनीति के चलते मौन रहे थे।
7. डॉ अम्बेडकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी को आर्य मानते थे जबकि पेरियार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को आर्य और शुद्र को अनार्य मानते थे।
8. डॉ अम्बेडकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते थे जबकि पेरियार स्वहित को सर्वोपरि मानते थे।
9. डॉ अम्बेडकर नास्तिक कम्युनिस्टों को नापसन्द करते थे क्योंकि उन्हें वह राष्ट्रद्रोही और अंग्रेजों का पिटठू मानते थे जबकि पेरियार कम्युनिस्टों को अपना सहयोगी मानते थे क्योंकि वे उन्हीं के समान देश विरोधी राय रखते थे।
10. डॉ अम्बेडकर के लिए भारतीय संस्कृति और इतिहास पर गर्व था जबकि पेरियार को इनसे सख्त नफरत थी।
11. डॉ अम्बेडकर ईसाईयों द्वारा साम,दाम, दंड और भेद के नीति से विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर धर्मान्तरण करने के कटु आलोचक थे। यहाँ तक कि उन्हें ईसाई बनने का प्रलोभन दिया गया तो उन्होंने उसे सिरे से नकार दिया। क्योंकि उनका मानना था कि ईसाई धर्मान्तरण राष्ट्रहरण के समान है। इसके ठीक विपरीत पेरियार ईसाई मिशनरियों द्वारा गड़े गए हवाई किलों के आधार पर अपनी घटिया राजनीती चमकाने पर लगे हुए थे। पेरियार ने कभी ईसाईयों के धर्मान्तरण का विरोध नहीं किया।
इस प्रकार से डॉ अम्बेडकर और पेरियार विपरीत छोर थे जिनके विचारों में कोई समानता न थी। फिर भी भानुमति का यह कुम्बा जबरदस्ती एक राष्ट्रवादी नेता डॉ अम्बेडकर को एक समाज को तोड़ने की कुंठित मानसिकता से जोड़ने वाले पेरियार के साथ नत्थी कर उनका अपमान नहीं तो क्या कर रहे है।
निष्पक्ष पाठक विशेष रूप से अम्बेडकरवादी चिंतन अवश्य करे।
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