इंडियन एक्सप्रेस क्यों फैला रहा है झूठी खबरें

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
एक समय था जब इंडियन एक्सप्रेस अपनी निर्भीक पत्रकारिता के लिए चर्चित था। भारत-पाक युद्ध के दौरान समझौते के लिए ताशकंत तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की वहीं मृत्यु होने पर दिल्ली के समस्त दैनिक अख़बार पूरा कर घर लौट चुके थे, लेकिन मात्र यही अख़बार था, जिसने टेलीप्रिंटर पर समाचार आते ही, अपने प्रिंटिंग स्टाफ को रोक न्यूनतम यानि गिनती के स्टाफ के दम पर अपना प्रथम बदल कर देश को शास्त्री जी का दुखद समाचार देकर सबको आश्चर्यचकित कर समस्त अख़बार रद्दी करवा दिए थे। 
फिर देश में लगी आपातकाल में मीडिया पर लगी सेंसरशिप का घोर विरोध इसी अख़बार ने किया था। खबर सरकार द्वारा सेंसर होने पर उस खबर के स्थान काला Censored प्रकाशित होता था। लेकिन आज वही अख़बार झूठी खबरें प्रकाशित कर कौन सी प्रसिद्धि प्राप्त करना चाह रहा है। नेताओं और सियासतखोरों द्वारा तुष्टिकरण समझ आता है कि चुनाव में कुर्सी चाहिए, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस तुष्टिकरण किस लिए और किसके लिए कर रहा है? क्यों तुष्टिकरण के आधार पर झूठी खबरें प्रकाशित कर तब्लीग़ियों की मदद कर रहा है?
गुजरात हॉस्पिटल में धर्म व मजहब के नाम पर इलाज करने की झूठी खबर 
कोरोना वायरस संक्रमण के बीच मीडिया गिरोह आधी-अधूरी जानकारी पर अफवाहें फैलाने का काम कर रहा है। पिछले दिनों इस संबंध में ‘द वायर’ के एजेंडे की पोल खुली थी और अब बारी इंडियन एक्सप्रेस की है। दरअसल, बुधवार (अप्रैल 15, 2020) को इंडियन एक्प्रेस में एक खबर प्रकाशित हुई जिसमें दावा किया गया कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में धर्म व मजहब को देखते हुए मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए गए हैं। रिपोर्ट में वजन डालने के लिए ये भी कहा गया कि अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट गुणवंत एच राठौड़ ने खुद दावा किया है कि सरकार के फैसले के अनुसार हिंदुओं और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वार्ड तैयार किए गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक डॉक्टर राठौड़ ने कहा, “आमतौर पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग वार्ड होते हैं। लेकिन यहाँ हमने हिंदू और मुस्लिम मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनवाए हैं।” इतना ही नहीं रिपोर्ट ये भी कहती है कि जब डॉक्टर से इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये सरकार का निर्णय है। आप उनसे पूछ सकते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की ये रिपोर्ट वाकई चौंकाने वाली है कि धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा भेदभाव क्यों? अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग USCIRF ने भी अपनी रिपोर्ट में इसी तरह का दावा किया। लेकिन इन सभी रिपोर्टों पर उस समय सवालिया निशान लग गया, जब गुजरात सरकार ने ऐसे किसी भी वर्गीकरण को ख़ारिज कर दिया। गुजरात के स्वास्थ्य विभाग ने भी इस बिंदु को पूरी तरह से खारिज करते हुए अपनी ओर से बयान जारी किया।
स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में किसी भी मरीज के लिए धार्मिक आधार पर विभाजन नहीं किया गया है। कोरोना मरीजों को उनके लक्षण, उनकी गंभीरता के आधार पर और डॉक्टरों की सिफारिशों आदि पर इलाज किया जा रहा है।
इसके बाद, डॉक्टर राठौर का खुद भी इस संबंध में बयान आया। उन्होंने कहा ”मेरा बयान कुछ खबरों में गलत तरीके से पेश किया जा रहा है कि हमने हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग वार्ड बनवाएँ। मेरे नाम पर गढ़ी गई ये रिपोर्ट झूठी और निराधार है। मैं इसकी निंदा करता हूँ।” उन्होंने ये भी बताया कि वार्डों को महिला-पुरुष और बच्चों के लिए अलग-अलग किया गया है, वो भी उनकी मेडिकल स्थिति देखकर न कि धार्मिक आधार पर।
वहीं विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में अमेरिकी आयोग के दावे को ख़ारिज किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग भारत में कोविड-19 से निपटने के लिए पालन किए जाने वाले पेशेवर मेडिकल प्रोटोकॉल पर गुमराह करने वाली रिपोर्ट फैला रहा है।
ये पहला मौक़ा नहीं है जब इंडियन एक्सप्रेस ने किसी खबर को धार्मिक रंग देने का प्रयास किया हो। 2019 में भी ऐसा मामला आया था। उस समय इंडियन एक्प्रेस में एक घटना को साम्प्रदायिक रूप देकर तूल दिया था और रिपोर्ट की थी कि 5 लोगों ने धर्म जानने के लिए 1 मुस्लिम को बुरी तरह मारा। जबकि पीड़ित ने खुद इस तरह का कोई बयान नहीं दिया था। मगर, इंडियन एक्प्रेस ने इस घटना को बिना आधार मजहबी रंग दिया। 
इसी प्रकार साल 2015 में इंडियन एक्प्रेस ने दावा किया अहमदाबाद में नगर निगम द्वारा संचालित जो स्कूल मुस्लिम बहुल इलाके में हैं उनकी यूनिफॉर्म हरे रंग की है। वहीं हिंदू बहुल इलाके में केसरिया। बाद में पता चला कि यह मीडिया संस्थान की कल्पना से इतर कुछ नहीं था। असल में यूनिफॉर्म के कलर को लेकर फैसला स्कूल की प्रबंधन समिति ने अपनी पसंद के हिसाब से किया था।

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