देशविघातक आततायीपन से रहना होगा सावधान : सनातन संस्था
गोआ । सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता चेतन राजहंस ने कहा है कि कोरोना की महामारी का प्रतिकार करने के लिए संपूर्ण विश्व में विलगीकरण (social distansing) चालू है, परंतु दूसरी ओर भारत की मस्जिदों में एकत्रीकरण हो रहा है । वैसे तो संचार बंदी (लॉकडाऊन) लागू होने से पहले से ही भीड टालने के लिए जनजागृति की गई थी । 24 मार्च को 21 दिनों के लिए संपूर्ण देश ‘लॉकडाऊन’ होने के पश्चात तो इस संकट की गंभीरता ध्यान में आनी चाहिए थी; और उसके पश्चात 14 अप्रैल को ये पुनः 3 मई तक के लिए बढ़ाया गया। परंतु अल्पसंख्यक समाज के संदर्भ में दुर्भाग्य से वैसा दिखाई नहीं दे रहा । ‘लॉकडाऊन’ होने पर भी मुस्लिम समाज अनेक स्थानों पर मस्जिदों में नमाजपठन के लिए एकत्रित हुआ । इससे संसर्गजन्य कोरोना का फैलाव होकर सामाजिक अस्वस्थता ही संकट में आ सकता था; बल्कि आया भी ! परंतु इसका भान न नमाजियों को है न ही उन्हें उपदेश देनेवाले धर्म गुरुआें को ! ये लोग परिपक्वता कब दिखाएंगे ? सामाजिक चर्चा का यह अत्यंत गंभीर विषय है ।
अज्ञान, असंवेदनशीलता या निरंकुशता ?
लॉकडाऊन अथवा संचारबंदी अचानक लागू नहीं हुई है । मार्च के लगभग दूसरे सप्ताह से ही भारत कोरोना की चंगुल में आने लगा है । मार्च के तीसरे सप्ताह में अनेक राज्यों में कोरोना ग्रस्त रोगी दिखने लगे । यह संसर्गजन्य रोग तीसरे चरण में (स्टेज 3) न पहुंचे; अर्थात समूह संसर्ग (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) न हो; इसलिए भारत सरकार ने कठोर कदम उठाए । गंभीर आर्थिक हानि की संभावना होते हुए भी 21 दिनों के लॉकडाऊन का निर्णय लिया गया । इसका पालन करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है; परंतु बडे प्रमाण में जागृति करने पर भी यदि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ घटक सरकारी निर्देशों का पालन नहीं करें, तो इसे क्या कहें, उनकी अज्ञानता लापरवाही, असंवेदनशीलता अथवा निरंकुशता ?
संशयास्पद हलचल !
उत्तरप्रदेश के हरदोई जिले में लॉकडाऊन के समय मस्जिदों में नमाजपठन हेतु मुसलमान एकत्रित आए । देहली के निजामुद्दीन परिसर में पुलिस थाने से कुछ ही अंतराल पर तबलीगी समाज की बैठक में 4-5 हजार लोग सम्मिलित हुए थे । एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मरकज में (बैठक) सम्मिलित लोगों के विचार थे कि कोरोना लोगों को धर्म से अलग करने का केवल एक षड्यंत्र है’ । अभी यह प्रसंग सामने आया है कि इस मरकज से भिन्न-भिन्न राज्यों में गए कथित धर्मप्रसारकों के कारण भारत में कोरोना का फैलाव अधिक प्रमाण में हुआ है । महाराष्ट्र के इचलकरंजी, जामखेड, नेवासा तथा कर्नाटक के भी कुछ स्थानों पर संचारबंदी के समय मुसलमानों का नमाजपठन नियमित चलता ही रहा था । जामखेड और नेवासा की मस्जिदों में विदेशी नागरिकों का निवास देखा गया । यह भी पता चला है कि धर्मप्रसार के लिए वे पूरे शहर में घूमे हैं । भारत में धर्मप्रसार करने के लिए इन विदेशियों ने प्रशासन की अनुमति ली थी क्या, यह एक अलग प्रश्न है; परंतु ये सभी घटनाएं क्या दर्शाती हैं ? ‘हमसे देशभक्ति का प्रमाणपत्र न मांगें’, ऐसा कहनेवाले अल्पसंख्यक समाज के साथ ही तथाकथित आधुनिकतावादी लोग सदा ऐसे दावे करते हैं; परंतु इस दावे की पुष्टि करनेवाली कृति कभी नहीं करते । सरकारी नियमों का उल्लंघन ही देशभक्ति है क्या ? एकत्रित न आएं, ऐसा कहने पर भी प्रार्थना करने के नाम पर भीड लगाना, रोग छुपाना, पुलिस-प्रशासन की सहायता न करना, मस्जिद से लोगों को बाहर निकालनेवाली पुलिस पर पथराव करना, क्या यही देशभक्ति है ? मास्क का प्रयोग करते समय उस पर ‘No NRC’ और ‘No CAA’ लिखे चित्र भी बडे प्रमाण में सामने आए थे । अल्पसंख्यकों के प्रति समाजमन में जो संदेह है, उसे प्रबल होने में ऐसी ही घटनाएं कारण हैं । इतना ही नहीं, ‘टिकटॉक’ जैसे संकेतस्थलों पर मुसलमानों ने मास्क न लगाने तथा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने जैसे वीडियो प्रसारित हैं । संक्षेप में देहली के तबलीगी जमात के कार्यक्रम के कारण देशभर के अनेक राज्यों में कोरोना का संसर्ग बडी मात्रा में हुआ है, यह प्रत्यक्ष है ।
विवेकबुद्धि जागृत रखें !
मस्जिद से पुलिस द्वारा भगाए जाने पर पूना जिले के चिखली में इमारत की छत पर एकत्रित आकर नमाजपठन किया गया । उन लोगों पर अपराध प्रविष्ट किया गया है; पर आगे क्या ? स्वतंत्रतापूर्व तुर्किस्तान के तानाशाह खलीफा (प्रधान)को समर्थन देने के लिए भारत के मुसलमानों ने आंदोलन चलाया था । वास्तव में तुर्किस्तान के खलीफा के विरुद्ध वहां की जनता भी रास्ते पर उतर आई थी । उन्हें खलीफा का शासन नहीं चाहिए था; परंतु भारत के मुसलमान खलीफा का राज्य बचाने के लिए आंदोलन कर रहे थे । मस्जिद में प्रतिबंध लगाने पर छत पर भीड जमा कर नमाजपठन करना क्या उचित है ? तुर्किस्तान के खलीफा के अत्याचारी होने पर भी भारत के मुसलमानों द्वारा उसकी गद्दी बचाने के लिए आंदोलन करना क्या ये घटनाएं विवेकशून्यता के उदाहरण नहीं हैं ? वास्तव में आधुनिकतावादियों को ‘विवेक की आवाज’उठानी ही है, तो यहां उठाएं !
सर्वोच्च न्यायालय ने एक अभियोग का परिणाम सुनाते हुए कहा था, ‘मस्जिद में नमाजपठन करना इस्लाम का अनिवार्य भाग नहीं है’, ऐसा होते हुए भी प्रार्थनास्थलों पर भोंपू (लाउडस्पीकर) लगाकर व भीड़ एकत्रित करके ही नमाजपठन करने की हठ क्यों ? ईश्वर सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान हैं । ऐसा होते हुए जिन्हें राष्ट्रभक्ति का सर्टिफिकेट मिलने की अपेक्षा नहीं है, ऐसे मुसलमान बंधुआें से अपना आततायीपन त्यागकर सरकारी सूचनाआें का पालन करने की अपेक्षा है ।