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आओ कुछ जाने

आओ जानें, अपने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में-5

गतांक से आगे…
पी.सी. महालनोबीस-प्रशांतचंद्र महालनोबीस प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सांख्यिकी में विश्व में अपनी पहचान बनाई। वास्तव में सांख्यिकी का भारतीय इतिहास उनका ही व्यक्तिगत इतिहास है। उन्होंने सांख्यिकी को अनेक दिक्कतों को दूर करने का माध्यम बनाया। नदियों में आने वाली बाढ़ का आकलन सांख्यिकी की सहायता से किया। हीराकुंड बांध व दामोदार घाटी परियोजना को महालनोबीस ने सांख्यिकी की मदद से व्यवहारिक रूप दिया। उन्होंने कोलकाता में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेडिस्टिकल रिसर्च की स्थापना की और यह उनकी अथक मेहनत का ही परिणाम था कि भारत के अनेक विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में सांख्यिकी का एक अलग विषय में रूप में पढ़ाया जाने लगा। 1945 में उन्हें सोसाइटी का फैलो चुना गया। 1972 में वे परलोक सिधारे
शाति स्वरूप भटनागर-21 फरवरी 1894 को शाहपुर में पैदा हुए। 1921 में लंदन विश्वविद्यालय से उन्होंने पायस पर शोध की और डीएससी की उपाधि प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उन्होंने और भी कार्य किया। उन्होंने डॉ आरएन माथुर के सहयोग से एक तुला का निर्माण किया जिसे भटनागर माथुर तुला के नाम से जाना जाता है और जो अनेक रासायनिक क्रियाओं को समझाने के काम आता है। इन्होंने अपनी प्रयोगशाला में अनेक प्रकार के पदार्थ बनाए जैसे अग्नि निरोधक कपड़ा न फटने वाले ड्रम तथा बेकार चीजों से प्लास्टिक आदि। देश में राष्ट्रीय अनुसंधान शालाओं की एक श्रंखला बनवाने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। विज्ञान के क्षेत्र में युवाओं को दिया जाने वाला राष्ट्रीय पुरस्कार इन्हीं के नाम से शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार जाना जाता है। एक जनवरी 1955 को उनका देहांत हो गया।
सत्येन्द्र नाथ बोस-एक जनवरी 1894 को उनका जन्म हुआ। मेक्सप्लांक और आईन्स्टीन द्वारा किये गये कार्य पर मेघनाथ साहा के साथ मिलकर आगे शोध कार्य किया। सबसे महत्वपूर्ण कार्य था, रेडियेशन को सांख्यिकी द्वारा समझाया जाना। इसे बोस स्टेटिस्टिक्स का नाम दिया गया। बोस स्टेटिस्टिक्स का पालन करने वाले कण कण जैसे फोटोन और एल्फा कणों को बोसोन का नाम दिया गया। क्रमश:

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