सिद्धार्थ मिश्र ‘स्वतंत्र’
देखा जाए तो इतिहास के विस्तृत अध्यायों में तारीखें बहुत मायने रखती हैं । यथा भारत में देशभक्ति की बात करने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी की दो तारीखें मुकर्रर हैं । मजे की बात है वर्ष के शेष दिनों में देश को शर्मसार कर देने वाले लोग भी इन तारीखों पर स्वयं को देश भक्त साबित करने में कोई कसर नहीं उठा रखते । गणतंत्र अर्थात गण द्वारा चालित तंत्र , मगर अफसोस की बात है कि इस संपूर्ण काले तंत्र में गण की भूमिका भस्मासुर पैदा करने की ही रह गई है । ऐसा भस्मासुर जिसे वे चाह कर भी भस्म नहीं कर सकते हैं। इस सारी विभीषिका को देखते हुए मन में कुछ पंक्तियां उठती है कैसी है ये त्रासदी कैसा है संयोग , लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग कोई हैरत की बात नहीं वास्तव में इस गौरवपूर्ण देश का दुर्भाग्यपूर्ण संचालन यही दो कौड़ी के लोग कर रहे हैं । हमारे समाज में आज भी रोजाना की दर से ऐसी घटनाएं घटित होती हैं तो यह साबित करती हैं कि हम आज भी गणतंत्र की भावना से कोसों दूर हैं । यथा अभी कुछ दिनों पूर्व का ही वाकया ले लें हमारे इस गणतंत्र में एक युवराज की ताजपोशी हुई है । इन विषम परिस्थितियों में कुछ तलवे चाटने वाले लोगों ने इसे ऐतिहासिक तो कुछ ने इसे अविस्मरणीय बताया । अब जबकि बात ताजपोशी की है तो यहां विशेष योग्यता का प्रश्न नहीं उठता,अत: हमारे युवराज की कोई विशेष योग्यता नहीं है । बहरहाल जिस विशेष योग्यता पर विशेष बल दिया गया वो है युवा शब्द । ध्यातव्य हो कि 40 वर्ष से अधिक की आयु के व्यक्ति को युवा नहीं कहा जा सकता लेकिन गणतंत्र का असली मजा तो यही है शब्दों की मनमाफिक व्याख्या । खैर ये तथाकथित युवा देश के आम युवा को कहां तक लुभाता है ये देखने वाली बात है ? अपने से क्या हम दूसरी बात करेंगे गर्व करेंगे हमारे संविधान पर । ऐसा संविधान जिसका एकमात्र ध्येय है समरथ को नहीं दोष गुंसाई या और फटे में कहें तो जिसकी लाठी भैंस उसी की ।
वैसे आज के दिन साल भर मौन रहने वाले मौनी बाबा भी लालकिले की प्राचीर पर चढ़कर अपना मौन तोड़ते हैं । मौन तोड़ते हैं वो भी हिंदी भाषा में देखीये है ना ये दिन महान । संविधान के अनुसार हमारी राजभाषा हिंदी को कम से कम एक दिन तो मिलता है । गर्व करीए हम अपना 64 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं । अन्य दिनों अगर अंग्रेजी नहीं बोलेंगे हमारे काले कारनामों पर पर्दा कौन डालेगा । वस्तुत: देश की अनपढ़ जनता को छलने के लिए अंग्रेजी से सक्षम हथियार क्या हो सकता है? बात समझ मे आए अथवा न आए गण की भूमिका तो तालियां बजाना ही है । वैसे ये तो बड़ी छोटी बात है अगर हमारे जननायकों से पूछिये तो सीधा सा तर्क मिलेगा कि ग्लोबलाइजेशन का जमाना है अंग्रेजी के बिना काम नहीं चलेगा । अब मन में एक सवाल उठता है कि रूस,चीन और जापान जैसे देश अपनी मातृभाषा में अपना काम कैसे चला लेते हैं ? क्या उनके विकास का स्तर हमसे कुछ कम है ? जवाब हमेशा ना में ही मिलेगा । वास्तव में अंग्रेजी का ये अंधा अनुसरण मात्र एक ढ़कोसला है जिसका देश हित से कोई लेना नहीं है । हां अंग्रेजी बोलने का एक प्रत्यक्ष लाभ आपको बता दूं । आपको याद होगा कि उत्तर प्रदेश के एक कद्दावर नेता कुछ महीनों अपने मातहतों से चर्चा कर रहे थे चर्चा हिंदी में चल रही थी । अत: ये आम जनमानस की समझ में भी आ रही थी । अब इसका नुकसान भी देख लीजिये । इसी दौरान भावनाओं की रौ में बहकर उन्होने कह दिया कि चोरी करना बुरी बात नहीं है थोड़ी थोड़ी किया करो । अब बात चूंकि हिंदी में हो रही थी सबकों समझ आ गई । इसके बाद की स्थिती तो सबको पता है । सोचिये कि यही बात उन्होने अंग्रेजी में कही होती तो क्या इतना बवाल होता । नही ंना इसीलिए हमारे सारे बड़े नेता अपनी बातें अंग्रेजी में कहते हैं । पहले तो बात जनता की समझ में नहीं आती अगर मीडिया की वजह से समझ में आ भी जाए तो जनता की याददाश्त तो हमारे सभी नेता जानते ही हैं कि कमजोर होती है । अब जरा अपने गणराज्य की भी बात हो जाए । हमारे गणराज्य का एक अभिशप्त भाग है काश्मीर जिसे कभी धरती का स्वर्ग भी कहा जा सकता है । ध्यान दीजिये ये गुलाम भारत की बातें थी और कहते भी हैं कि छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी । अत: हमारे जननायक कल की बातों पर विशेष गौर नहीं करते। अब जब बात जन्नत की हो तो उस पर सभी की निगाहें गडऩी चाहिए। अत: हमारे पड़ोसी चीन और पाक की निगाहें इस कश्मीर पर ऐसी गड़ी कि इन्होने उसे लगभग आधा कब्जा कर ही दम लिया । खैर इस बात के लिए हमारे नेताओं को मत कोसियेगा । उन्होने अमेरिका से लेकर यूएन तक बहुत चीख पुकार मचाकर अपने कत्र्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन किया मगर नतीजे वहीं ढ़ाक के तीन पात । किंतु हमारे कद्दावर नेता इतने से ही हार मान जाते तो नेता कैसे माने जाते । आखिर वोटबैंक भी तो बनाना था । गौरतलब है कि सत्ता की आंच पर खौलते जनता रूपी दूध की मलाई है वोटबैंक । यही वोटबैंक नेता को पुष्ट करता है । अत: हमारे बुद्धिमान नेताओं ने एक अस्थाई निष्कर्ष निकाला अनुच्छेद 326 । अर्थात एक देश के दो ध्वज और दो संविधान । है न हमारा लोकतंत्र महान । गर्व से कहीये हम अपना 64 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं । यही नहीं हमारे नेताओं ने शांति के लिए जितना काम किया उतना तो शायद विश्व के अन्य किसी भी देश के नेता ने किया हो लेकिन कमबख्त ये नोबेल पुरस्कार आज भी हमारे नेताओं की पहुंच से दूर है । इसमे सर्वप्रथम नाम है माननीय नेहरू जी जिन्होने चीन द्वारा छीन ली गई जमीन को बंजर और निष्प्रयोज्य बताकर अपनी आंतरिक मनोवृत्ति को सुस्पष्ट कर दिया । इससे भी गर्व की बात है कि इसी राजपरिवार ने आने वाले कई दशकों तक अपनी संततियों अथवा युवराजों एवं युवराज्ञियों के माध्यम से हमारे देश को कृतार्थ किया । हैरत होती है जब लोग ऐसे मासूम एवं शांति प्रिय लोगों पर सवाल उठाते हैं। ये सब छोडिय़े गर्व से मनाइए गणतंत्र दिवस । अंतिम पंक्तियों में हम बात करेंगे इस लोकतंत्र के नवनीत सेक्यूलरिज्म की । हमारा पूरा देश धर्मांधता की आग में जल जाए,हजारेां लाखों लोग जिहादी हिंसा के शिकार बने ठेंगे से मगर मजाल है कि हमारी सेक्यूलरिज्म की भावना पर ठेस आए। वैसे भी इस सवाल उठाने वाले हम और आप होते कौन हैं ये तो हमारी परंपरा है अतिथि देवो भव: । इसी परंपरा के निर्वाह में सदियों से हमारे अनेकों महापुरूषों ने अपने प्राण दिये, तो भला हमारे आधुनिक नेता इतने निर्विय तो नहीं हो सकते । आप सेक्यूलरिज्म को इसी परंपरा के निर्वाह को इसी परंपरा के रूप में देख सकते हैं इसी कारण हमारे नेता देश में प्रत्येक आतंकी का एवं चरमपंथी का यथायोग्य स्वागत करते हैं । आप कसाब की खातिरदारी से इस बात को भली भांति समझ सकते हैं । वैसे भी बाहर से आने वालों का देश पर पहला अधिकार होता है बस इसी वजह से हमारे जननायकों ने काश्मीर के लोगों शरणार्थी तो बांग्लादेश से आने वाले अतिथियों का वोटर कार्ड बनवाकर बकायदा नागरिक बना डाला । उस पर भी लोग दर्शन बघारते हैं वसुधैव कुटुंबकम, काबिलेगौर है कि सदियों पुराने इस वेद वाक्य का अर्थ आमजन ने भले ना समझा पर हमारे काबिल नेता जरूर समझते हैं । इसीलिए उन्होने इस पूरे कुटुंब को पूरी राजकीय मान्यता के साथ स्वीकार किया । गर्व की बात है कि हमारी इसी उदार भावना के कारण ही ये हिंसक मेहमान आज अमेरिका या अन्य देशों की बजाए भारत आना ज्यादा पसंद करते हैं । अब जब भारत आते हैं तो जाहिर खर्च भी यहीं करते होंगे हुआ विदेशी मुद्रा का निवेश । इस बात को हम भले ही ना समझें पर हमारे वित मंत्रियों ने बखूबी समझ लिया है। सबसे बड़ी बात भारत की बढ़ती जनसंख्या आज चिंता का सबब भी बन गई ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण का भी कारगर अस्त्र हैं ये विदेशी मेंहमान। अत: ये घटनाएं भले ही हमारे लिए चिंता का सबब हों पर हमारे नेता तो मौज में कहते है आल इज वेल । सरकार की उपरोक्त सारी नीतियों पर विचार करें तो समझ में आ जाएगा कि एक ही तीर से अनेकों शिकार कैसे किये जाते हैं । अंतत: इतना सब समझाने के बाद भी यदि ये सरकारी संदेश आपकी समझ में ना आए तो हमारे मासूम मौनी बाबा कर भी क्या कर सकते हैं? उनकी वचनबद्धता तो इंडिया के प्रति है और हम सब ठहरे जाहिल भारतीय तो जनाब आप भी अंग्रजीदां तौर तरीके अपनाकर गणतंत्र दिवस मनाइए गर्व से कहीये वी आर इंडियन । जहां तक मेरा सवाल है तो मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि: हमको मालूम है जन्नत की हकीकत गालिब, खुश रहने को ये ख्याल अच्छा है ।
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