विश्वास खोती न्याय व्यवस्था

मुझे गर्व है कि मैं दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र में रहता हूं। मुझे अपने राष्ट्र के संविधान पर गर्व है। क्योंकि इसने 120 करोड़ लोगों को जीने का हक दिया है और हमारी न्यायपालिका का अस्तित्व उस वक्त से प्रभावी है जब दुनिया अंर्तकलह और युद्घ में व्यस्त थी।
हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय वही है जिसने राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को न्यायालय तक कानून के शिकंजे में लेकर अपने सामने बुला लिया था और जिसने इंदिरा गांधी की चुनाव को खारिज कर दिया। अत: राजनेता के दबाव को खारिज कर जनता के दुख और उनकी सोच का ख्याल रखा। दुर्भाग्यवश इस शताब्दी में जिसको सीधे मनुष्य के विचारों की प्रगति एवं आधुनिकीकरण के रूप में देखा जाता है उसने आज हमारा राष्ट्र और हमारा समाज उत्तेजित एवं गुस्से से भरा दिखता है। वक्तव्य एवं विचार की आजादी का पूर्ण रूप से दुरूपयोग किया जा रहा है। हमारी न्यायपालिका बेहद कमजोर और अपाहित सी हो गयी है। हमारी अदालतें चुनाव धांधली के शिकंजे में फंसी हैं। जो आज हमारे वर्तमान वित्तमंत्री को न्यायालय तक नही बुला सकती जहां तक उन्हेांने आज तक के बुलावे के बावजूद अदालत में जाना जरूरी नही समझा। हमारी अदालतें और उनकी न्याय व्यवस्था देश में हो रहे अंतहीन घोटालों में घिरी सरकार को न तो सजा दे पा रही हैं और नाही उसे चेतावनी देने का साहस दिखा पा रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सीबीआई जांच के केस में आय से अधिक संपत्ति के मामले में उत्तर प्रदेश के नेता मुलायम सिंह यादव और मायावती को महज राजनैतिक फायदों पहुंचाने के लिए राजनीति आड़े आ रही है और न्यायालयों को सही काम नही करने दे रही है हमारे गृहमंत्री के उस बयान पर जिसमें वह हिंदू आतंकवाद का जिक्र बिना सबूत के अपने चंद राजनैतिक फायदा के लिए कर देते हैं, दुर्भाग्य से हमारे राष्ट्र के बुद्घिजीवी खामोश रह जाते हैं। ये जानते हुए कि ऐसे बयान अस्सी करोड़ से अधिक हिंदुओं की भावना से खिलवाड़ करने का दुस्साहस है। अत: हमारी न्यायपालिका को शीघ्र कठोर निर्णय लेने होंगे, ताकि देश की जनता में सुनिश्चितता एवं शांति स्थापित हो सके। वर्ना इमाम बुखारी जैसे कई लोग इस राष्ट्र में बनेंगे जो सर्वोच्च न्यायालय की बात को खारिज कर उससे ऊपर होने का घमंड करेंगे। -वरूण ठाकुर

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