कोरोना मुक्ति के निर्णायक क्षण

ललित गर्ग

संत मदर टेरेसा ने कहा है, ‘अगर दुनिया बदलना चाहते हैं तो शुरुआत घर से करें और अपने परिवार को प्यार करें।’ कोरोना महासंकट के समय देखने में आ रहा है कि हम अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र से बहुत प्यार करते हैं और कुछ लोगों को छोड़कर हम लाॅकडाउन का पालन गंभीरता एवं सजगता से कर रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार, अगर समय रहते लॉकडाउन न किया गया होता और उसका पालन आम आदमी ने दिल से नहीं किया होता तो 15 अप्रैल तक भारत में कोरोना मरीजों की संख्या आठ लाख बीस हजार होती। हो सकता है कि इन आंकड़ों पर बहुत लोगों को भरोसा न हो, मगर दुनिया का बड़ा सच यही है कि लॉकडाउन के अलावा कोरोना का कोई विकल्प नहीं। अब हम एक और लाॅकडाउन घोषित करके इस महामारी को अलविदा कहने की स्थिति में आ सकते हैं।
जिम्मेदार नागरिक एवं शासक की सार्थकता केवल सांसों का बोझ ढोने से नहीं होगी एवं केवल योजनाएं बनाने से भी काम नहीं चलेगा, उसके लिए नजरिया का परिष्कार करना होगा, संगठित होकर एकता का परिचय देना होगा। संयम और अनुशासित जीवन जीना होगा। अपने स्वार्थों को त्यागकर परार्थ और परमार्थ चेतना से जुड़ना होगा। ऐसा करके ही हम कोरोना को परास्त कर पाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संक्रमण के लाॅकडाउन समयावधि में न केवल आम जनता से बल्कि सभी मुख्यमंत्रियों से बार-बार मशविरा एवं संवाद स्थापित कर इस लड़ाई को एकजुट होकर लड़ने का सकारात्मक वातावरण बनाया है, विपक्षी नेताओं से भी चर्चा की और सभी को साथ लेने की कोशिश की। कुछ अपवादों को छोड़कर समूचा देश एकजुटता दिखा रहा है, जहां भी जिस भी प्रांत में कोरोना के खिलाफ संघर्ष में किसी भी तरह का उजाला होता हुआ दिखाई दिया, चाहे वो भीलवाड़ा माॅडल के रूप में हो या सेवा-प्रकल्पों के रूप में, दूसरे प्रांतों या लोगों ने उसे हाथोहाथ लिया है, इन सटीक समाधानों को अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर साधन-सम्पन्न लोगों ने उदारता से दान देकर एवं सेवा-प्रकल्प संचालित कर कोरोना पीड़ित लोगों को राहत पहुंचाने की अनूठी मानव सेवा की मिसाल कायम की है।
कोरोना महामारी मानव इतिहास की सबसे भयंकर त्रासदी एवं महामारी है। इसने दुनिया के कुछ देशों में ऐसे-ऐसे खौफनाक एवं डरावने दृश्य उपस्थित किये हैं कि इंसान की रूह कांप जाये। इस महामारी में मरने वालों के लिये कब्र तक नसीब नहीं हो रही है, सामूहिक कब्रगाह बनाने पड़ रहे हैं, डाॅक्टरों ने तो यहां तक कहा कि हमने तो मुर्दों की गिनती ही छोड़ दी है। भारत को इस त्रासद स्थिति से बचाना है न केवल भारत को बचाना है बल्कि इस महारोग से मुक्ति का उजाला दुनिया को भी दिखाना है। हमने अभी तक तीसरे दौर में प्रवेश नहीं किया है। जानकारों का मानना है कि अगर हमने 15 दिनों का लाॅकडाउन सफलतापूर्वक पार कर लिया तो शायद वह नौबत ही न आए और हम सुरक्षित जोन में जा सकते। इस स्थिति के लिये सरकार के प्रयत्न एवं जनता की सहभागिता एवं सहयोग उल्लेखनीय है, सरकारों द्वारा शहर-दर-शहर हॉट-स्पॉट चिह्नित किए जा रहे हैं और वहां पाबंदियों को पूरी कड़ाई से लागू किया जा रहा है। कोरोना महासंकट से मुक्ति को सफल एवं सार्थक बनाने के लिये हमें उसे नया आयाम देना होगा। स्वयं की शक्ति को पहचानना होगा, आत्म साक्षात्कार करना होगा, संयम एवं अनुशासन का पालन करना होगा एवं ऊर्जा केन्द्र स्थापित करना होगा, जहां हर प्रयोग, हमारा संयम, हमारी जीवनशैली, हमारी सोशल डिस्टेंसिंग नया वेग दे और नया क्षितिज उद्घाटित करे। यूं कहा जा सकता है कि तब अभ्युदय का ऐसा प्राणवान और जीवंत पल हमारे हाथ में होगा, कोरोना को जड़़ से समाप्त करने की एक दिव्य, भव्य और नव्य महाशक्ति हमारे साथ चलयमान होगी। जैसा कि जोहान वाॅन गोथे ने कहा था-‘‘जिस पल कोई व्यक्ति खुद को पूर्णतः समर्पित कर देता है, ईश्वर भी उसके साथ चलता है।’’
अमेरिका के विशेषज्ञों का मानना हैं कि कोरोना का कहर अभी और बढ़ सकता है। भारत में भी ऐसी संभावनाएं तीव्र है, क्योंकि अनेक जगहों से अभी भी सोशल डिस्टेंसिंग की अवहेलना के मामले सामने आ रहे हैं, तबलीगी जमात ने तो सारे प्रयत्नों पर ही पानी फेर दिया, शुरुआती दिनों में महानगरों से लाखों लोगों के पलायन ने बड़ी परेशानी पैदा कर दी थी। इससे सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ीं, मगर जल्द ही तमाम राज्य सरकारों ने इस पर काबू पाने में सफलता अर्जित की। आज समाज और सरकार के सहयोग से एक करोड़ से अधिक लोगों को प्रतिदिन भोजन मुहैया कराया जा रहा है। आशंकाओं को देखते हुए अभी देश में लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाया जाना ही औचित्यपूर्ण है और ऐसा ही सुझाव विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एकमत से प्रधानमंत्री को दिया है। जबकि सभी के सामने आर्थिक परेशानियां है।
कोरोना को निर्णायक मोड़ में ले जाने के लिये लाॅकडाउन की समयावधि बढ़ाने पर चर्चाएं हो रही है जिनको बढ़ाना हमारी विवशता है। लेकिन भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में लम्बे समय तक लाॅकडाउन को बनाये रखना अनेक चुनौतियों को आमंत्रण भी है। खेती से जुड़ी अनेक प्रक्रियाएं है। जिनमें किसानों एवं मजदूरों को काम पर लगना जरूरी है, अन्यथा तैयार खेती के उजड़ने की संभावनाएं है। यही नहीं, लंबे समय तक कल-कारखाने और लघु उद्योगों को भी बंदिशों में रखना देश की बड़ी आबादी के साथ अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा। इसके साथ ही हवाई, रेल और राजमार्ग भी खोलने होंगे। महामारी का जोखिम कम करने के लिए कुछ समय तक शर्तें लगाई जा सकती हैं। इससे न केवल मौद्रिक तरलता फिर से आरंभ होगी, बल्कि ठप्प पड़ा देश भी नई स्फूर्ति एवं जीवन का उजाला महसूस करेगा। देश के चार सौ से अधिक जिलें अभी तक कोरोना की मार से अछूते हैं, वहां पूर्ण सावधानी एवं सर्तकता से व्यापार, उद्योग, रोजगार, खेती, यातायात, शिक्षा, काम के अवसरों को बंधनमुक्त करना चाहिए, ताकि देश की आर्थिक स्थितियों को संतुलित बनाने में इन क्षेत्रों की भूमिका बने। आवश्यक मेडिकल जांच के बाद प्रवासी मजदूरों के गैर-संक्रमित इलाकों में आने-जाने की विशेष व्यवस्था की जानी चाहिए। क्लियरवाॅटर ने सटीक कहा है कि हरेक पल आप नया जन्म लेते हैं। हर पल एक नई शुरुआत हो सकती है। यह विकल्प है- आपका अपना विकल्प। हमारा यही विकल्प एवं हौसला ही इस महामारी की स्थिति में भी भारत को नई मिसाल की आधारशिला रखने में सक्षम बनायेगा और कोरोना मुक्त भारत का सृजन करेगा।

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