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आतंकवाद

तबलीगी जमात की काली करतूतों को उजागर करने को सांप्रदायिकता का रंग क्यों दिया जा रहा है ?

 

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (अप्रैल 13, 2020) को तबलीगी जमात से संबंधित मीडिया कवरेज को लेकर दायर याचिका पर कोई अंतरिम निर्णय देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि वह प्रेस का गला नहीं घोंटेगा। दो सप्ताह बाद कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई की जाएगी।
दरअसल, कोरोना वायरस महामारी फैलने को हालिया निजामुद्दीन मरकज की घटना से जोड़कर कथित रूप से सांप्रदायिक नफरत और धर्मान्धता फैलाने से मीडिया के एक वर्ग को रोकने के लिए मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

मीडिया पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार
ऐसे में प्रश्न होता है कि देश में साम्प्रदायिकता कौन फैला रहा है? उल्टे चोर ही कोतवाल को फटकारे, यह कौन-सा इंसाफ है? नागरिकता संशोधक कानून से लेकर अब कोरोना संक्रमण तक भारत में एक वर्ग साम्प्रदायिकता का नंगा नाच खेल रहा है, CAA के नाम पर मासूम मुसलमानों को डराया एवं धमकाया गया। और अब जमातियों द्वारा खेले जा रहे गुप्त षड़यंत्र को कुचलने को हिन्दू-मुसलमान का नाम देकर अकाल मृत्यु के द्वार खोलने का प्रयत्न किया जा रहा है। संक्रमित द्वारा पुलिस, डॉक्टर, नर्स और सफाई कर्मियों पर थूकना, हॉस्पिटल लॉबी में शौच करना क्या उचित है? कौन-से धर्म में लिखा है, ऐसा दुष्कर्म करने की? मस्जिदों में कौन छुपा रहा है और क्यों?
साम्प्रदायिकता कौन कर रहा है? मस्जिदों से पुलिस जितनों को पकड़ रही है, उनमें अधिकतर कोरोना पीड़ित ही निकल रहे हैं, इसमें साम्प्रदायिकता कहाँ से आ गयी? क्या यह उचित है? आखिर साम्प्रदायिकता का नंगा नाच कब तक खेलकर बेगुनाहों को अकाल मृत्यु का ग्रास बनाया जाता रहेगा?
याचिकाकर्ता के वकील ने जब यह दावा किया कि मीडिया की खबरों की वजह से लोगों पर हमला हुआ है तो पीठ ने टिप्पणी की, “हम खबरों के बारे में ठोस दीर्घकालीन उपाय करना चाहते हैं। एक बार जब हम संज्ञान लेंगे तो लोग समझेंगे। यदि यह हत्या करने या बदनाम करने का मसला है तो आपको राहत के लिए कहीं और जाना होगा। लेकिन अगर यह व्यापक रिपोर्टिंग का मामला है तो प्रेस परिषद को पक्षकार बनाना होगा।”
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमएम शांतनगौडर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एक मुस्लिम संगठन की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की और उससे कहा कि इस मामले में भारतीय प्रेस परिषद को भी एक पक्षकार बनाए। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, “हम प्रेस को रोक नहीं सकते। हम अंतरिम आदेश/निर्देश पारित नहीं करेंगे।”
याचिकाकर्ता ने इस याचिका में आरोप लगाया है कि मीडिया का एक वर्ग दिल्ली में पिछले महीने आयोजित तबलीगी जमात के कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफरत फैला रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने अपनी याचिका में फर्जी खबरों को रोकने और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्देश केंद्र को देने का अनुरोध किया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि तबलीगी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल सारे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराने के लिए किया जा रहा है।
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की तरफ से दी गई दलीलों में कहा गया है कि मीडिया के कुछ वर्ग ‘सांप्रदायिक सुर्खियों’ और ‘कट्टर बयानों’ का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि देश भर में जान-बूझकर कोरोना वायरस फैलाने के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया जा सके, जिससे मुसलमानों के जीवन को खतरा है।
इसके साथ ही याचिका में आरोप लगाया गया कि सोशल मीडिया भी गलत सूचना और फर्जी खबरों से भरा हुआ है, जिसका उद्देश्य पूरी कोरोना वायरस की घटना को सांप्रदायिक आवाज देना और तबलीगी जमात के बारे में ‘साजिश के सिद्धांतों’ को देश भर में जान-बूझकर फैलाना है।

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