पिछले दिनों भारत ने जियो और जीने दो के अपने प्राचीन संस्कार और परंपरा का निर्वाह करते हुए अमेरिका को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की खेप पहुंचाई। कोरोना संकट में बुरी तरह घिरे अमेरिका की गुहार पर भारत ने अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मानवीय आधार पर उसे ये मदद दी। लेकिन कांग्रेस इस मामले में भी अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश से बाज नहीं आई। आइए, जानते हैं कि क्यों कांग्रेस की इस कोशिश को उसकी चीन परस्त राजनीति से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
कोरोना वायरस चीन से निकलकर दुनिया भर में तबाही मचा रहा है। इसको लेकर चीन पर अमेरिका का उंगली उठाना कांग्रेस को रास नहीं आ रहा, क्योंकि चीन और कांग्रेस अपने-अपने रुख से समय-समय पर एक-दूसरे का स्वार्थ साधते रहे हैं।
अमेरिका को भारत से मिलने वाली मदद में बाधा डालकर कांग्रेस चीन को खुश करना चाहती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों में लगातार पिटते रहने के बाद कांग्रेस को अब भारतीय जनता से अधिक चीन की ताकत पर भरोसा है।
जो नेहरू-इंदिरा और मनमोहन के रहते नहीं हुआ उसे भारत ने पीएम मोदी के रहते संभव कर दिया। देश ने देखा कि कैसे कांग्रेस डोकलाम मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारियों में लगी हुई थी कि इसी बीच चीन को पीछे हटना पड़ा।
सबको पता है कि डोकलाम मुद्दे पर तनातनी के बीच सरकार को विश्वास में लिए बिना कैसे राहुल गांधी ने भारत में चीनी राजदूत से गुपचुप तरीके से मुलाकात की थी। इसे चीन और कांग्रेस के बीच एक पुरानी ‘मौन संधि’ से जोड़कर देखा गया, जो परस्पर हित से जुड़ी बताई जाती है।
1962 के युद्ध के बाद चीन ने एक बड़े भारतीय भूभाग पर कब्जा जमा लिया। अरुणाचल प्रदेश पर चीन जब ना तब अपना अधिकार बताता रहा, लेकिन कांग्रेस के शासन में इन सबका वैसा विरोध कभी नहीं देखा गया, जैसा मोदी राज में हुआ है।
कांग्रेस और राहुल गांधी जैसे उसके नेता चीन के लिए हमेशा बीन बजाने को इतना आतुर क्यों रहते हैं। कोरोना संकट के समय में भी दिख रहे कांग्रेस के इस राजनीतिक रंग से देशवासियों का गुस्सा भड़का है।