-फ्रांस में लुई राजसत्ता के विरूद्घ सफल क्रांति हुई
-रूस में जारशाही के विरूद्घ सफल क्रांति हुई
-चीन ने भी पुरानी केंचुली के विरूद्घ बगावत की,
-लीबिया के कर्नल गददाफी के शासन का अंत हुआ।
-सद्दाम हुसैन का अंत हुआ।
ये और इन जैसी अन्य अनेकों घटनाएं विश्व इतिहास में इसलिए हुई हैं कि तत्कालीन शासन व्यवस्था लोगों के गले की फांस बन चुकी थी। उसमें सड़ांध मारने लगी थी और लोगों ने अपना अपना बलिदान देकर उस सड़ांध को समाप्त करने का बीड़ा उठाया। क्रांति का नाम ही व्यवस्था को प्रदूषण मुक्त करना या प्रचलित व्यवस्था को पूर्णत: पलट देना होता है।
भारत में 1947 का वर्ष आजादी दिलाने वाला रहा था लेकिन यह आजादी ना तो व्यवस्था परिवर्तन करा सकी और ना ही प्रचलित तत्कालीन व्यवस्था को प्रदूषण मुक्त करा सकी थी। इस समय का शासक वर्ग लुटेरों का था इसलिए नौकरशाही भी लुटेरों की थी तत्कालीन उद्योगपति भी मुनाफाखोरी को ही अपना धर्म मान रहे थे। कुल मिलाकर लूट देश की राजनीति का धर्म था। इस युग धर्म को कांग्रेस ने अंग्रेजों की कृपा से मिलने वाले राज की खुशी में उनका आशीर्वाद मानकर अपना लिया। कांग्रेस को इस बात की अति प्रसन्नता थी कि अंग्रेजों ने भारत के शासन के लिए उसे ही अपना उत्तराधिकारी चुना था। वरना तो उस समय आजाद हिंद फौज की स्वतंत्र सरकार कार्य कर रही थी जिसे 9 देशों की मान्यता भी मिली हुई थी। इसलिए अहिंसावादी कांग्रेस ने आजादी का जश्न 10 लाख लोगों की मौत के खून से बहने वाली खूनी नदी में डुबकी लगा लगाकर मनाया और उसी में गांधी के अहिंसावाद को बहा दिया। देश को बहकाया गया कि अब आजादी मिल गयी है तो अब अपना शासन आ गया है। देश को यह नही बताया गया कि अपना शासन होते हुए भी व्यवस्था विदेशी है। इसी घालमेल के चलते भारत में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के काल में ही जीप घोटाला हो गया। घोटाले में लिप्त लोगों का बचाव करते हुए नेहरू जी ने कहा था कि ये लोग अंग्रेजों से तो बेहतर हैं क्योंकि अंग्रेज हमारे धन को बाहर ले जाते थे और इन्होंने उस धन को देश में ही रखा है। आधुनिक भारत के निर्माता और दूरदृष्टा के विशेषणों से भूषित किये जाने वाले नेहरू जी की इस दूरदृष्टि का फलितार्थ ये आया कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कालाधन बढऩे लगा। 50 के दशक में 3 प्रतिशत से इसने शुरूआत की थी जो कि 1980 के दशक में 20 प्रतिशत हो गया। 1990 में 35 प्रतिशत तथा 1995 में 40 प्रतिशत हो गया। फलस्वरूप देश के काले अंग्रेजों ने देश में पैसा न रखकर स्विस बैंकों में कालाधन लेजा लेजा कर जमा करना आरंभ कर दिया। नेहरू जी यदि 1990 के दशक तक जीवित रहते तो वह तब भी कह सकते थे कि कोई बात नही स्विस बैंकों का पैसा भी अंतत: है तो भारतीयों का ही। जो लोग आजादी के बाद सत्ता मिलने की खुशी में ब्रिटेन से कोहिनूर हीरा को वापस लेने की बात तक नही कह पाए और उसे भुला दिया, उन्होंने सत्ता के लिए दलाली तो पहले दिन ही दे दी थी बाद में उनके मानस पुत्रों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और देश में भ्रष्टाचार के घृणिततम कीर्तिमान स्थापित किये।
यही कारण है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के वैश्विक भ्रष्टाचार मानक 2007 के अनुसार भारत में 5 में से 4 लोग यह विश्वास करते हैं कि राजनीतिक पार्टियां भ्रष्ट हैं और 70 प्रतिशत का मानना है कि यह भ्रष्टाचार देश में अभी और भी अधिक बढ़ेगा। 2005 में इसी संस्था ने हमें बताया कि भारत में भ्रष्टाचार आम दैनिक जीवनोपयोगी वस्तु बनकर रह गया है। 75 प्रतिशत भारतीय किसी विभाग में नौकरी पाने के लिए अवैधानिक रास्तों का और उपयों का प्रयोग कर उत्कोच आदि से अपना काम निकालने का प्रयास करते हैं। विश्व में 178 भ्रष्टïतम देशों में तब भारत का स्थान 87वां था। देश में जुगाड़ शब्द बड़ा प्रचलित है। यह शब्द हमारे नेताओं ने दिया है या गढ़ा है। राजनीतिक भ्रष्टाचार से इस शब्द की उत्पत्ति हुई। राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने या मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री से किसी भी प्रकार से अपने लिए मंत्री पद प्राप्त करने अथवा किसी विभाग का अध्यक्ष स्वयं को बनवाने के लिए विधायकों और सांसदों ने या राजनीतिक लोगों ने राजनीति में इस शब्द को बढ़ावा दिया। फलस्वरू प धीरे धीरे वह शब्द भारतीय राजनीति में बहुत ही लोकप्रिय हो गया। बाद में इसे लोक मान्यता प्राप्त हो गयी। अब यह पनवाड़ी की दुकान तक आ गया है। इसी जुगाड़ ने भारत में 2010 में ही कई बड़े घोटाले करा दिये। पाठकों को याद होगा 3 मिलियन डॉलर का कॉमनवैल्थ गेम्स घोटाला, 133 करोड़ का यूरिया घोटाला, 700 करोड़ का सत्यम घोटाला, 950 करोड़ का चारा घोटाला, 43,000 करोड़ का स्टांप पेपर घोटाला, 1.76 लाख करोड़ का 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला तथा दो लाख करोड़ रूपये का उत्तर प्रदेश में हुआ अनाज घोटाला।
ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी द्वारा जारी की गयी ‘द ड्राईवर्स एण्ड डायनामिक्स ऑफ इलिसिस’ फाइनेंशियल फ्लोफ्राम इंडिया 1948-2008 नामक रिपोर्ट से हमें पता चलता है कि भारत पर 295.8 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, परंतु भाषताचार की भेंट चढ़े कालेधन की राशि इससे कई गुणा अधिक है। बीस लाख करोड़ यानि 462 बिलियन डॉलर की राशि भारत आजादी के बाद से 2008 तक भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी के कारण गंवा चुका था। 70 लाख करोड़ से अधिक धनराशि टैक्स बचाने के लिए विदेशी बैंकों में जमा कराई गयी। नेशनल इलैक्शन वॉच की रिपोर्ट के अनुसार 25 प्रतिशत सांसद वर्तमान में दागी है। दस मंत्री भी ऐसे रहे हैं जिन पर अपराधी होने के आरोप उनके मंत्री रहते लगे हैं। 162 लोकसभा सांसद सर्वाधिक दागदार है। 54 भाजपाई और 50 कांग्रेसी सांसदों पर ढेरों आरोप हैं।
1951 में एडी गोरवाला (एक सिविल सेवक) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि नेहरू सरकार के कुछ मंत्री भी एक सीमा तक भ्रष्ट हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार अपने मंत्रियों की रक्षा नियमों से बाहर जाकर करती है। यह रिपोर्ट 1948 के जीप घोटाले के बाद आयी थी। जब जम्मू कश्मीर में सेना के आवागमन के लिए खरीदी गयी जीपों को कृष्णा मेनन ने बिना अवलोकन किये ही विदेशी कंपनी से ले लिया था। विपक्ष की मांग पर जांच समिति बैठायी गयी। परंतु 30 सितंबर 1955 को यह जीप स्कैंडल केस बंद कर दिया गया था। 3 फरवरी 1956 को मेनन पुन: मंत्री बना दिये गये थे।
बोफोर्स तोप सौदा घोटाले ने 1989 में सत्ता को प्रचंड बहुमत से पाने वाले राजीव गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। आज इसी भ्रष्टाचार की दलदल में फंसे देश की छाती पर एक नया घोटाला दाल दल रहा है। जिसे नाम दिया गया है हैलीकॉप्टर घोटाला। इस घोटाले की चपेट में केन्द्र की मनमोहन सिंह सरकार बुरी तरह घिर चुकी है। कुल 12 हेलीकॉप्टरों के 3760 करोड़ रूपये के सौदे की एवज में 362 करोड़ का कमीशन भुगतान 2008 से लेकर 2011 तक किया गया है। यह भुगतान भारत में किसी एक दलाल को न करके विभिन्न विभागों के अफसरों को किया गया है। रक्षामंत्री एके एंटोनी ने सरकार को बचाने के दृष्टिगत इटली की अगस्ता वैस्टलैंड कंपनी के साथ हुए इस करार को त्वरित आधार पर स्थगित कर दिया है। लेकिन एक नये घोटाले का नाम भारत में भ्रष्टाचार के इतिहास में अंकित हो गया है। सोने की चिडिय़ा के सौदागरों ने देश की क्या मिट्टी पीट दी है और पुन: विश्वगुरू बनने के लिए सचेष्ट भारत को किस प्रकार अपमानित कराया है? ये देखकर हर भारतवासी का मस्तक लज्जा से झुका है। आजादी से दो माह पूर्व गांधी जी ने पटना में हो कहा था उसे आज के कांग्रेसियों को समझना होगा। उन्होंने कहा था कि आज यदि कांग्रेस वाले जनता को धोखा देंगे और सेवा करने के बजाए उसके मालिक बन जाएंगे तथा मालिक की तरह ही व्यवहार करेंगे तो शायद मैं जीऊं या न जीऊ परंतु कुछ वर्षों के आधार पर यह चेतावनी देने की हिम्मत करता हूं कि देश में बलवा मच जाएगा सफेद टोपी वालों को जनता चुन चुनकर मारेगी, और कोई तीसरी सत्ता इसका लाभ उठाएगी।
क्या कांग्रेस गांधीजी की इस चेतावनी से कोई शिक्षा लेने की स्थिति में है, यदि नही हो क्या जनता गांधी जी के निर्देश का पालन करे? मैं पाठकों को 1971 की ओर ले चलता है। इस वर्ष के मई माह में भारतीय स्टेट बैंक संसद मार्ग नई दिल्ली शाखा के मैनेजर वेदप्रकाश मल्होत्रा के पास एक फोन आया, जिसे उन्होंने इंदिरा गांधी की आवाज के रूप में सुना। फोन पर उनसे कहा गया था कि बांग्लादेश के किसी गोपनीय कार्य के लिए रिजर्व फंड से साठ लाख रूपये की आवश्यकता है। इसलिए अमुक कोड बताने पर आगतुंक को 60 लाख रूपया दे दिया जाए। पैसे लेने वाला व्यक्ति रूस्तम सोहराब नागरवाला था। जब मल्होत्रा अगले दिन प्रधानमंत्री कार्यालय में रसीद लेने पहुंचे तो ज्ञात हुआ कि किसी ने कोई फोन नही किया था अत: नागरवाला की गिरफ्तारी हो गयी। उसे चार वर्ष की कारावास की सजा हुई। परंतु अगले वर्ष ही उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गयी। नंद किशोर कुमावत ने अपनी ‘पुस्तक भ्रष्टाचार’ में तथ्यों का रोचक वर्णन किया है। अत: जो कांग्रेस भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबी हो वह जनता की अपेक्षाओं के अनुसार जनसेवी होने का अपना स्वरूप गंवा चुकी है। इसलिए नये घोटाले में भी यह पार्टी पारदर्शिता अपनाएगी यह नही कहा जा सकता। परंपरागत आधार पर यह अपने मंत्रियों का बचाव करेगी और देर सबेर हम देखेंगे कि जो गुबार उठा हुआ है वह शांत हो जाएगा।
कांग्रेस अपना इतिहास लिख चुकी है। अब जनता की बारी है। जनता को इतिहास लिखना नही है अपितु इतिहास को करवट दिलवानी है। युगधर्म के परिवर्तन का समय आ गया है। बाबा रामदेव अन्ना हजारे या केजरीवाल जैसे लोगों के पास भी समस्या का समाधान नजर नही आता। क्योंकि पूरी व्यवस्था के परिवर्तन की आवश्यकता है, जिसे ये तीनों महानुभाव या तो अनुभव नही कर रहे हैं या अपने आधे अधूरे ज्ञान से उसका उपचार करना चाह रहे हैं। भ्रष्टाचार देश में इस कदर हावी है कि यहां जनलोकपाल भी अस्तित्व में आते ही ‘धन लोकपाल’ बन जाएगा। जैसे हर जनप्रतिनिधि यहां धन प्रतिनिधि बन गया है। इसलिए अब जनता ही ‘युग करवट’ के लिए संकल्पित भारत को हुंकार दे और घोटाले बाजों से सत्ता लेकर किसी वास्तविक जनप्रतिनिधि को अपना जनलोकपाल बनाकर सत्ता उसे दे, तो ही देश का कल्याण हो सकता है। क्योंकि
नई ज्योति से भीग उदयांचल का आकाश।
जय हो, आंखों के आगे यह सिमट रहा खग्रास।।
है फूट रही लालिमा तिमिर की टूट रही धनकारा है।
जय हो कि स्वर्ग से छूट रही आशिष की ज्योति धारा है।।
मुख्य संपादक, उगता भारत