शांता कुमार
भारत के क्रांतिकारी आंदोलनों की चिनगारियां अभी भारत के भीतर ही सुलग रही थीं। अभी वे समुद्र पार इस देश के शासकों के देश इंग्लैंड को अपनी प्रबल प्रखर लपटों की ओट में न ले पाई थीं। पढ़ाई करने के लिए गये हुए छात्रों में से कुछ उन्ही दिनों लंदन के भारत भवन में सावरकर के संपर्क में आकर देश भक्ति के रंग में रंग गये थे। भारतीय छात्रों की वह देश भक्त टोली अपनी अपनी विशेष बैठकों में भारत के पतन, गुलामी और उसके निराकरण के प्रश्न पर विचार करती रहती थी। सावरकर के देश भक्ति व अत्यंत प्रभावशाली नेतृत्व में भारत भवन का वातावरण देशभक्ति की भावना से निखर उठा था।
भारत में उन्ही दिनों कुछ विशेष घटनाएं घटीं। बंगाल में कन्हाई व खुदीराम जैसे कुछ सरफरोश नवयुवकों की टोली रक्त का फाग खेल रही थी। सावरकर के बड़े भाई बाबा सावरकर ने शिवाजी आदि कुछ देश भक्तों की प्रशंसा में कविताएं लिखीं थी। इन कविताओं को ही आधार बनाकर बाबा सावरकर को काले पानी की सजा दे दी गयी। कविताएं लिखने पर काला पानी। यही था ब्रिटिश न्याय का क्रूर चक्र। ये भारत में घटने वाली दुखद घटनाएं भारतय-भवन के देशभक्त छात्रों के हृदय को कचोटती रहती। उनकी भुजाओं का रक्त खौलने लगता और उनका पौरूष उन्हें भीतर ही भीतर चुनौती देता। क्योंकि भारत में सब अत्याचारों की योजना का सूत्रपात लंदन में ही होता था। इसलिए कुछ देशभक्तों ने साम्राज्यशाही के इस मूल स्थान पर ही आघात करने का विचार किया।
भारतय-भवनका एक छात्र मदनलाल एक दिन सावरकर के पास आकर पूछने लगा, क्या देश के लिए बलिदान होने का समय अभी नही आया है? सावरकर ने बड़ी गंभीरता से उस युवक की ओर देखा और कहा कि जिस क्षण के हृदय में बलिदान की भावना उत्पन्न होती है, उसी क्षण बलिदान का अवसर भी उपस्थित हो जाता है। यह कहकर सावरकर ने मदनलाल को अपना हाथ नीचे धरती पर रखने का संकेत किया। नीचे भूमि पर हाथ रखते ही सावरकर ने एक बड़ा लोहे का सुआ हाथ पर दे मारा। सुआ कोमल हाथ की त्वचा को फाड़कर भीतर घुस गया। गरम गरम रक्त की धार प्रवाहित हो उठी। परंतु मदनलाल के चेहरे पर जरा भी भय या झिझक न थी। वह उसी प्रकार शांत धैर्य युक्त बैठा हुआ था। दोनों के नेत्र एक दिव्य स्नेह व संतोष से छलछला उठे। गुरू ने शिष्य को छाती से लगा लिया।
उसके बाद मदनलाल का भारतय भवन में आना जाना पहले कुछ घटा और बाद में बिलकुल बंद हो गया। वह अंग्रेज ऑफिसरों के एक क्लब का सदस्य बन गया। कितने ही अधिकारियों से संबंध स्थापित करके उसने उनका विश्वास भी प्राप्त कर लिया। सर कर्जन ने भारतय भवन की छात्र सभा के मुकाबले में भारत के अंग्रेज भक्त छात्रों की सभा भी बनाई थी। मदनलाल ढींगरा उस सभा का भी सदस्य बन गया।
लॉर्ड कर्जन ने अपने भारतीय जीवन में कितने ही ऐसे कुकृत्य व अत्याचार किये थे, जिनसे वह भारत के देश भक्तों को सदा खटकते रहते थे। वह एक अति कुख्यात व्यक्ति था। मदनलाल ने सर्वप्रथम उसे ही निशाना बनाना चाहा। पिस्तौल लेकर उसका पीछा भी किया, पर भीतर से द्वार अकस्मात बंद हो जाने के कारण वह सफल न हो सका। लौटकर उसने सावरकर को कहा, शिकार भाग गया।
सर कर्जन वाइली भारत के लिए नीति निर्धारण करने वाले इंडिया ऑफिस का सर्वे सर्वा था। वह भारतीय छात्रों में गुप्तचर का काम भी करता था। भारत में जो कुछ भी अत्याचार ढाए जा रहे थे, वाहली उन सबके लिए अंग्रेजी साम्राज्यवाद के एजेंट के रूप में उत्तरदायी था। उसने भारत में 20 वर्ष तक अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को पक्का करने का प्रयत्न किया था। मदनलाल के पिता के साथ कर्जन वाइली के बड़े मित्रता के संबंध थे। परंतु देश भक्तों के सामने व्यक्तिगत मित्रता देश से बड़ी नही होती। लंदन के क्रांतिकारियों ने वाइली को समाप्त करने का निश्चय किया और उस कार्य के लिए मदनलाल ढींगरा को नियुक्त किया गया।
1 जुलाई 1901 को लंदन को लंदन के जहांगीर हॉल में साम्राज्य विद्यालय की वार्षिक सभा हो रही थी। कर्जन वाइली भी उस सभा में सम्मिलित होने वाला था। मदनलाल अपने दो साथियों, ज्ञानचंद वर्मा व कोरगावकर को साथ लेकर सभा भवन में पहुंच गया। मदनलाल के पास छह बैरल का बड़ा प्रदर्शित करते हुए घूमकर बातचीत करने लगे। अपने मित्र के पुत्र मदनलाल को सामने देख वे एकदम उसके पास आए। उन्होंने उससे बातचीत करने के लिए मुंह खोला ही था कि मदनलाल ने जेब से पिस्तौल निकालकर सीधा निशाना बिठाकर अंग्रेज साम्राज्य के उस स्तंभ पर गोली चला दी। वाहली भूमि पर गिरकर लुढ़क पड़ा। अंग्रेज भक्ति में पका हुआ एक लाल काका नामक व्यक्ति मदनलाल को पकडऩे के लिए आगे बढ़ा। पर उसे भी मदनलाल की सनसनाती गोली ने देश भक्तों का विरोध करने का दण्ड दे दिया।
चारों ओर कुहराम मच गया। लोग भय त्रस्त हो भागने लगे। हॉल में इतनी भगदड़ मची कि कुछ दिखाई ही न दे रहा था। पिस्तौल की सब गोलियां समाप्त हो जाने पर मदनलाल ने आत्म समर्पण कर दिया। इतने समय तक पुलिस पहुंच चुकी थी। मदनलाल के हाथ व पांव बांधे जाने लगे तो उसने कहा, मुझे जरा अपनी ऐनक ठीक कर लेने दो, फिर हाथ बांधो। चारों ओर की भगदड़ व भयग्रस्त वातावरण में भी मदनलाल अत्यंत शांत चित्त थे, मानो कुछ हुआ ही नही है। हॉल में उपस्थित एक डॉक्टर ने बताया कि हॉल में सभी हृदय आकस्मिक दुर्घटना से धड़क रहे थे, परंतु मदनलाल के हृदय की गति बिलकुल साधारण थी।
मदनलाल ढींगरा अमृतसर जिले के निवासी थे। उनका जन्म एक खत्री परिवार में हुआ था। वह परिवार अंग्रेज भक्ति के लिए बड़ा प्रसिद्घ था। पंजाब विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास करके वे आगे पढ़ाई करने के विचार से लंदन चले गये। अच्छे मेधावी छात्र थे। पर लंदन के विलासिता के वातावरण में बह गये। प्रारंभ में भोग विलास में रहने लगे। बाद में उनका संबंध सावरकर तथा भारतय-भवन के देश भक्ति के पूर्ण वातावरण में आया।
क्रमश:
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