क्या पिता की तर्ज पर राव इंद्रजीत भी छोड़ सकते हैं कांग्रेस?
राजीव अग्रवाल
रेवाड़ी, बावल में कांग्रेस की होने वाली रैली से गुडग़ांव के सांसद राव इंद्रजीत ङ्क्षसह की उपेक्षा को लेकर तथा राव के द्वारा 24 फरवरी के जवाब में 3 मार्च को पटौदी की रैली को लेकर इन दिनों राजनैतिक गलियारों में गर्मागर्म चर्चा चल रही है कि राव अपनी ही पार्टी में अपनी उपेक्षा को लेकर क्या कांगे्रस छोड़ेंगे, क्या भाजपा में जाऐंगे, क्या अपने पिता राव बिरेन्द्र ङ्क्षसह की पार्टी विशाल हरियाणा पार्टी को पुन: जिंदा करेंगे? जिस तरह कभी राव बिरेन्द्र सिंह कांग्रेस में केन्द्रीय कृषि मंत्र थे तब राजीव-लोंगोवाल समझौते के विरूद्ध अपने स्वाभिमान को ठेस पहुंचने पर इस्तीफा देकर चौ. देवी लाल की लोकदल में शामिल हो गए थे। कहीं राव इंद्रजीत सिंह अपने पिता में पदचिन्हों पर चलते हुए पार्टी छोड़ सकते हैं या नहीं। इस उपापोह की स्थिति को लेकर इंडिया केसरी स्मरण करवा रहा है। अहीरवाल के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत ङ्क्षसह के तलख तेवरों को देखते हुए अब अहीरवाल की राजनीति की धुरी कहलाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री राव बिरेन्द्र ङ्क्षसंह की याद ताजा होने लगी है, जिन्होंने कांग्रेस के संकट के समय कांग्रेस को उस समय उभारा था जब स्वर्गीय लोह महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बुरे समय में जब वे जनता पार्टी के नेताओं से घिरी हुई थी तब उस समय स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी रेवाड़ी में शहीदी दिवस पर राव तुलाराम जी को श्रद्धाजंलि देने आईं थी। उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी ने राव साहब से मदद मांगी थी, जिस पर राव ने अपनी कड़ी मेहनत से खड़ी की गई विशाल हरियाणा पार्टी जो हरियाणा से लेकर दिगी, पंजाब व कर्नाटक आदि में फैली हुई थी, परिणामस्वरूप मदद को लेकर जिस पार्टी के बलबूते पर राव हरियाणा के मुख्यमंत्री बने उसी पार्टी को कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया था तथा जिसके प्रभाव से यह रहा कि जनता पार्टी अपने परस्पर कलेश के चलते हार गई तथा कांग्रेस एक बार फिर जबरदस्त बहुमत से सत्ता में आई और श्रीमती इंदिरा गांधी पुन: देश की प्रधानमंत्री बनीं और राव बिरेन्द्र सिंह उनके मंत्रीमंडल में केन्द्रीय सिंचाई, खाद्य, कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री बने। श्री राव ने उस समय हरियाणा-राजस्थान को रावी-व्यास का पानी दिलवाने के लिए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राजस्थान के तत्कालिन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुऱ, पंजाब के तत्कालिन मुख्यमंत्री सरदार दरबारा सिंह व हरियाणा के तत्कालिन मुख्यमंत्री चौ. भजनलाल के अलावा स्वयं राव बिरेन्द्र सिंह व केन्द्रीय कानून मंत्री शिव शंकर ने एक मेज पर बैठ कर समझौता करवाया था, अगर उस फैसले को प्रधानमंत्री राजीव गांधी व संत लौंगोवाला ने रद्द करके नया रावी-व्यास पानी जल बंटवारे पर एक नया समझौता राजीव-लौंगोवाल के नाम किया और रावी-व्यास का जल बंटवारा पुन: उलझ कर रह गया। अगर राव बिरेन्द्र के प्रयासों से श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में फैसला कायम रहता तो हरियाणा व राजस्थान में विकास के मायने ही बदल गए होते और श्री राव ने अपने द्वारा किए गए फैसले को बदले जाने को अपने स्वाभिमान पर ठेस समझे जाने पर अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया था और उस समय जननायक देवीलाल के लोकदल में शामिल होकर महेन्द्रगढ़ लोकसभा से पुन: सांसद बने और उन्हें पुन: केन्द्रीय कृषि बनाया गया। राव साहब अपना जीवन स्वाभिमान से जीने के लिए विख्यात रहे, वहीं उनके पुत्र राव इंद्रजीत सिंह ने अपने पिता की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए चौथी बार बनकर अहीरवाल में कद्दावर नेता बनने का गौरव हासिल किया और जब से उनके पिता ने विशाल हरियाणा पार्टी का विलय कांग्रेस में किया तभी से वे कांग्रेस में रहकर बेदाग नेता रहे, जबकि राव केन्द्र में रक्षा रा’य मंत्री भी रह चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में अहीरवाल की जनता ने उन्हें इसलिए भारी बहुमत से जिताया ताकि केन्द्र वे कैबिनेट स्तर के मंत्री बने, पर ऐसा ना करके उन्हें केवल प्रौद्योगिक सूचना विभाग के चेयरमैन के पद पर ही सब्र करना पड़ा। राव इंद्रजीत ङ्क्षसंह हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बीच अहीरवाल के विकास व नौकरियों को लेकर 36 का आंकड़ा चल रहा है तथा उनकी कांग्रेस में भारी उपेक्षा हो रही है। गत दिनों मेवात में कांग्रेस के समारोह में केन्द्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में राव इंद्रजीत को बोलने नहीं दिया गया तथा उद्घाटन पत्थर तक भी उन्हें जाने से रोका गया, वहीं रेवाड़ी से रोहत्तक तक चलाई गई रेल के शुभारंभ समारोह में राव से दूरी बनाकर रखी गई। अब अहीरवाल के बावल में कांग्रेस द्वारा रैली उनसे पूछे बिना की जा रही है। इस तरह की उनकी भारी उपेक्षा को लेकर अहीरवाल में उनके समर्थकों में भारी रोष है तथा राव इंद्रजीत भी अपने उपेक्षा को लेकर अपने रैलियों में हरियाणा के मुख्यमंत्री को आड़े हाथों ले रहे हैं, जिससे अहीरवाल की जनता को आज राव बिरेन्द्र सिंह की याद ताजा होने लगी है जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में स्वाभिमान व ऊंचा सिर करके जिए तथा प्रदेश व केन्द्र की राजनीति में उनकी राह में जो भी आया उन्हें धता बताते हुए गौरवपूर्ण राजनैतिक जीवन जिया।