हरिहर शर्मा
संविधान निर्मात्री सभा और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने बड़े ही परिश्रम और व्यापक शोध के पश्चात स्वतंत्र भारत के संविधान की रचना की , उस समय उपलब्ध सभी संविधान से नवनीत निकालकर और भारतीय परिवेश का विस्तृत अध्ययन कर भारतीय संविधान का निर्माण किया । संसार का सबसे विस्तृत संविधान भारत का ही संविधान है । लगभग 1000 वर्ष की गुलामी के पश्चात भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी जिसके लिए पूरे समाज ने बलिदान किया था , उस समय आजादी का जोश था और तपे तपाए नेताओं का वर्चस्व था , भारत के लिए त्याग और बलिदान करने वाले नेताओं के प्रति जन साधारण में सम्मान का भाव था इसलिए भारत के संविधान का पूरा निचोड़ जनकल्याण था ।
स्वतंत्र भारत के 70 वर्ष
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संविधान लागू होने के पश्चात इन 70 वर्षों में देश और समाज की क्या दशा और दिशा हो जाएगी यह कल्पना से परे था । क्या कोई कल्पना कर सकता था कि राजधानी दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ” भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह ” जैसे नारों का उद्घोष होगा । क्या कोई सोच सकता था कि जिन्ना वाली आजादी की माँग भारत की धरा पर होगी । क्या कोई सोच सकता था कि भारत की भूमि पर बीच चौराहे पर गाय को काट कर उसके मांस का सार्वजनिक रूप से भोज होगा । क्या कोई कल्पना कर सकता था आज एक ऐसी महिला जिसका पति और सास देश के प्रधानमंत्री रहे हो वह बटाला हाउस प्रकरण पर शोक मनाएगी । क्या कोई राजपुत्र भारत की सर्वोच्च संस्था कैबिनेट से पारित प्रस्तावित अध्यादेश को समाज के समक्ष टुकड़े-टुकड़े कर संविधान को अपमानित करेगा ।
यह बात कल्पना से भी परे थी कि अपने ही देश में रातों-रात कश्मीरी पंडितों को अपना घर द्वार छोड़कर विस्थापित होना पड़ेगा, यदि इतना ही हुआ होता तो इसका परिशोध किया जा सकता था परंतु रातों रात सारी घाटी की मस्जिदों से घोषणा होती है कि सवेरे तक सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ कर चले जाए और सारी संपत्ति तथा घर की बहू बेटियों को अपने घर में ही छोड़ जाएं । मेरी तो कल्पना के बाहर की बात है उन बहन बेटियों का क्या हाल हुआ होगा उनके साथ जैसा अमानवीय अत्याचार हुआ उसका अन्य कोई उदाहरण नहीं है । जो लोग भागने में सफल नहीं हो पाए ऐसे हजारों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया गया ऐसा क्रूर अत्याचार तो तैमूर और चंगेज खां के समय भी नहीं हुआ होगा । यह घटना आजाद भारत की है और उस समय कश्मीर के मुख्यमंत्री डॉक्टर फारुख अब्दुल्ला इंग्लैंड में मौज कर रहे थे ।
लाखों की संख्या में बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए घुसपैठिए भारत में रह रहे हैं और दूसरी ओर पाकिस्तान बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा रहा है जिस कारण वे अपना घर छोड़कर भारत आ रहे हैं , उन्हें नागरिकता देने के लिए बनाए संविधान संशोधन पर हाय तोबा मचाया जा रहा है , और उसकी आड़ में भारत के विनाश का षडयन्त्त्र किया जा रहा है । दुर्भाग्य है इन घुसपैठियों के पक्ष में कुछ मुख्यमंत्री और अनेकों विरोधी दल खड़े हो गए हैं वोटों के लालच में देशभक्ति की बलि चढ़ाई जा रही है । भारत के जन नेताओं को कुर्सी इतनी प्यारी हो गई है कि वह कुर्सी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं यदि उन्हें देश और समाज को भी ओझल करना पड़े तो कोई हिचक नहीं है । विंस्टन चर्चिल द्वारा की गई भविष्यवाणी सच साबित हो रही है , उसने कहा था कि भारतवासी इतने समर्थ नहीं हुये कि वे स्वतंत्रता को संभाल सकें । भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है परंतु यह कैसा लोकतंत्र है , जहां खुलेआम देश विरोधी नारे और भारत विरोधी कार्यों की खुली छूट है ।
वर्तमान विपक्ष
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लोकतंत्र की विशेषता होती है कि सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष की देश के कल्याण हेतु बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है , अतः सशक्त विपक्ष होना आवश्यक है । विरोधी दलों द्वारा शासन के गलत कार्यो का विरोध करना आवश्यक है जिससे शासन की निरंकुशता पर अंकुश लगा रहे , परंतु यह आवश्यक नहीं है कि शासन द्वारा जनता के लिए जो अच्छा कार्य हो रहा है उसका विरोध जनकल्याण का विरोध है । परंतु वर्तमान में विपक्ष शासन का विरोध करते करझते भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान का समर्थन करने लगे हैं । वर्तमान शासन का विरोध करने के लिए विरोधी दल के नेता भारत के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ मैं जाने की बात करने लगे । लोकसभा में धारा 370 पर बहस के दौरान विपक्ष पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान का बताने लगा ।इन बयानों का उपयोग संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान अपने पक्ष में करने लगा है । दुर्भाग्य से भारत के विरोधी दलों की राजनीति ऐसे व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूम रही है जिसकी आस्था न तो भारत में है और न भारतीयता में । जो लोग भारत के गांव में पानी और बिजली नहीं पहुंचा सके , देश मे गरीबी बनाए रहे और गरीबी हटाओ का नारा देकर लंबे समय तक सत्ता सुख भोगते रहे । ऐसे व्यक्ति भारत की ताकत को देखकर देश का मनोबल गिराने में लगे हैं । उनकी चिंता यह नहीं है कि वे सत्ता में नहीं है बल्कि उनकी परेशानी यह है कि दूर-दूर तक सत्ता के निकट आने के लिए उन्हें अवसर नहीं दिखाई दे रहे हैं । यही लोग अब भारत के वैभव के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देश का मनोबल गिराने में लगे हैं ।सत्ता प्राप्त करने के लिए किसी भी सीमा तक उतर सकते हैं अपराधी तत्वों का भी उपयोग किया जा सकता है जिससे अब भारत का लोकतंत्र निष्प्रभावी हो रहा है ।
अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग
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संविधान लागू होने के पश्चात इतने समय में भारत के नैतिक स्तर में इतनी गिरावट होगी ऐसी कल्पना संविधान निर्मात्री सभा को नहीं थी । आज जो कुछ हो रहा है वह संविधान के नाम पर हो रहा है। संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं ,उन अधिकारो की आड़ में अब देशद्रोह पनप रहा है । यहां यह बात स्मरण कराना चाहता हूं कि मौलिक अधिकारों के साथ-साथ संविधान में नागरिकों के कर्तव्य और नीति निदेशक तत्वों का भी समावेश किया गया है । विपक्षी दल राजनेता मीडिया इत्यादि केवल मौलिक अधिकारों की ही चर्चा करते हैं । अतःअधिकारों के साथ-साथ नागरिकों के कर्तव्य पालन करवाने हेतु सरकार को सशक्त कदम उठाने चाहिए जिससे जागरूक एवं उत्तरदायी समाज की रचना हो सके । देश की जनता की आशाओं की आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु संविधान होता है न कि संविधान के लिए देश होता है । संविधान के बहाने देश को मिटाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है । संविधान के अनुच्छेद 13 से लेक.र 19 तक मौलिक अधिकारों का एक अध्याय है जिसमें एक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है , जिसकी आड़ लेएकर भारत में देशद्रोह को महिमामंडित किया जा रहा है यह एक शाश्वत सत्य है कि किसी व्यक्ति का कोई भी अधिकार absolute नहीं हो सकता बल्कि किसी अधिकार की सीमा वहां तक है जहां वह किसी अन्य व्यक्ति के अधिकार को बाधा न पहुंचाए । परंतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देशद्रोही तत्व सारी मर्यादा और सीमाएं तोड़ चुके हैं ।
इस देश का दुर्भाग्य है कि एक पूर्व प्रधानमंत्री उपदेश देते है कि भारत माता की जय के नारे नहीं लगाए जाने चाहिए , क्योंकि इस नारे से सांप्रदायिकता की बू आती है । यह वही है जो प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए यह ज्ञान दे रहे थे कि भारत के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है । यही व्यक्ति सिख समुदाय से आते हैं परंतु जब दिल्ली में सिखों का नरसंहार हो रहा था तब उनका ज्ञान सो गया था और उनके मुह में दही जम गया था ।
बलिदानी इतिहास
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अपने धर्म को बचाने हेतु शरीर को आरे से चिरवाने वाला समाज , अपने बच्चों को दीवार में चुनवा कर अपना धर्म बचाने वाले महापुरुष , पूरी जिंदगी जंगलों में बिताना स्वीकार करने वाले राणा प्रताप और शिवाजी का चातुर्य और देशभक्ति रखने वाला भारत कैसे अब भारत तेरे टुकड़े टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह तक पहुंच गया । यह गंभीर चिंतन का विषय है , वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देने वाला भारत आज पहले की तुलना में आकार में एक तिहाई कैसे रह गया , यह ऐसे प्रश्न हैं जो मुह बाये हमारे सामने खड़े हैं । जिस प्रकार आंधी और आफत आने पर शुतुरमुर्ग अपनी आंखें बंद कर चोच को रेत में छुपा लेता है , लगता है आज वही भारतीय समाज की स्थिति हो गई है । यदि अब भी समाज ने इन प्रश्नों पर कोई विचार नहीं किया तो भारत और भारतीयता का भगवान ही मालिक है । जो समाज अपने इतिहास से शिक्षा ग्रहण नहीं करता और वह धर्मनिरपेक्षता के अफीम के नशे में मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करता हो ऐसे समाज के विनाश की भयावहता की कल्पना आसानी से की जा सकती है ।
राष्ट्र धर्म
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भारतीय समाज के स्वभाव में धर्म जीवनशैली का प्रमुख तत्व है , प्रत्येक व्यक्ति धर्म के आधार पर आचरण कर अपना जीवन सुखमय बनाता है । परंतु व्यक्ति के तीन प्रकार के धर्म होते हैं वह है :
1 वैयक्तिक धर्म
२ लोक धर्म या समाज धर्म
3 राष्ट्र धर्म
इन तीनों धर्म का पालन एक साथ करना होता है कौन सा धर्म पालन अधिक महत्वपूर्ण है यह तात्कालिक परिस्थिति पर निर्भर करता है । सामान्य रूप से वैयक्तिक धर्म पालन प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता है , परंतु जब समाज की बात आती है तो उसे वैयक्तिक धर्म छोड़कर समाज या लोक धर्म का पालन करना होता है , और जब देश या राष्ट्र की अस्मिता पर संकट आता है तो उसे सारे धर्मों को छोड़कर राष्ट्र धर्म का पालन करना चाहिए । लेकिन जब व्यक्ति का अहम भाव चरम सीमा पर पहुंच गया हो तो वह व्यक्ति वैयक्तिक धर्म को पकड़कर शेष धर्मों को भुला देता है तब वह स्वयं और समाज को पतन की ओर ले जाता है । जिसका प्रत्यक्ष और दुखद उदाहरण है भारत की प्रमुख राज्यों का पतन । तत्कालीन शासक राजा अपने भाइयों की शान तो सहन नहीं कर सके लेकिन मुगलों की गुलामी उन्हें अधिक पसंद आई । भारतीय राजाओं के बल पर ही मुगल साम्राज्य इतने लंबे समय तक शासन करता रहा । समाज में तब राष्ट्र भाव का लोप हो चुका था जिससे भारत का पतन हुआ। राष्ट्र भाव की प्राथमिकता अभी भी भारतीय समाज में स्थापित नहीं हो सकी है । इसलिए आज समाज देश के टुकड़े टुकड़े वाले नारों को सुनने को मजबूर हुआ। अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि समाज में व्यापक एवं प्रभावी रूप से राष्ट्र धर्म के पालन हेतु जनमानस को सन्नद्ध किया जा सके ।
आजादी के श्रेय का सम्यक विचार
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मेरे विचार से समाज में राष्ट्रीय भाव के क्षरण को रोककर देशद्रोहियों का दमन करना ही श्रेयस्कर है आजादी के बाद के वर्षों में राष्ट्रभाव की पुष्टि का कोई प्रयास नहीं किया गया बल्कि गुलामी काल की कार्यशैली को ही महत्व दिया गया जिससे आजादी के आंदोलन के समय समाज में जो राष्ट्रभाव उत्पन्न हुआ था वह इन 70 वर्षों में बिल्कुल समाप्त होकर राष्ट्र विरोध मे बदल गया । राष्ट्र भाव को संबल प्रदान कर आगे बढ़ाया होता तो आज इस प्रकार की घटनाओं की संभावना नहीं रहती । लेकिन आजादी प्राप्त करने हेतु इस समाज ने जो बलिदान किए थे उन्हें जानबूझकर ओझल किया गया । और आजादी का श्रेय ऐसे लोगों को दे दिया जिनका इस आंदोलन मैं न्यूनाधिक ही योगदान था । कितने लोगों को यह जानकारी है कि देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए 26000 आजाद हिंद फौज के सिपाहियों ने अपने प्राण गँवा दिये । कितने क्रांतिकारियों ने सर्वस्व निछावर कर देश की आजादी के लिए प्राणों की बलि चढ़ा दी । आज सामान्य समाज में यह धारणा है कि महात्मा गांधी ने बिना खडग और ढाल के आजादी दिला दी । आजादी में किस-किस का कितना योगदान रहा यह शोध किया ही नहीं गया वरन आजादी दिलाने में मात्र महात्मा गांधी और कांग्रेस का ही योगदान रहा ,यह तथ्य सुनियोजित रूप से प्रसारित किया गया । जिसका प्रभाव यह हुआ कि आज हिंदुस्तान धर्मशाला बनकर रह गया और जिसका भविष्य इस्लामिक स्टेट हो रहा है ।. यहां यह भी स्मरणीय है कि उस समय 14 प्रांतीय कांग्रेस की समितियां थी जिनमें से 13 प्रांतीय समितियों ने पटेल को प्रधानमंत्री बनाने हेतु महात्मा गांधी से निवेदन किया था परंतु महात्मा गांधी ने हिंदुओं की बात न सुनकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया । यह बात अभी तक मेरी समझ में नहीं आ सकी कि उस समय गांधी जी के सामने कौन सी मजबूरियां थी कि पूरे भारत की कांग्रेसियों की बात न सुनकर उन्हें नेहरू जी के पक्ष में जाना पड़ा , जबकि सब की धारणा यह है कि यदि आज नेहरू के स्थान पर सरदार वल्लभभाई पटेल प्रधानमंत्री होते तो इस देश की यह दुरावस्था नहीं होती ।
आज के दिन किस बालक में सुभाष चंद्र बोस शहीद चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह सरीखे देश भक्त बनने का भाव दिखाई दे रहा है उनमें तो सलमान , शाहरुख ,दीपिका और कटरीना बनने की महत्वाकांक्षा ही पनप रही है । भारत को अंग्रेजों से 15अगस्त1947 को आजादी मिली , आजादी प्राप्त होने की परिस्थितियों पर गंभीरता से विचार करें तो मुझे आजादी प्राप्त होने के तीन कारण दृष्टिगोचर होते हैं ।आजादी प्राप्ति का पहला कारण तो प्रत्यक्ष है ,जैसा सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में तत्कालीन कांग्रेसका आंदोलन जिसके द्वारा संपूर्ण देश में जन जागरण किया गया । कांग्रेस के इतिहास अनुसार सन 1942 में द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया गया था परंतु अंग्रेजो के क्रूर दमन के कारण आंदोलन ठीक प्रकार से प्रारंभ भी नहीं हो पाया । अंग्रेजों को सन 1947 में भारत छोड़ना पड़ा । सन 1942 से 1947 तक अन्य कोई आन्दोलन कांग्रेस द्वारा नहीं किया गया । और ना ही ऐसी कोई घटना घटी जिसके कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़े । इस प्रकार आसानी से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गांधी जी के आंदोलन के कारण ही आजादी नहीं मिली । आजादी के अन्य और कारण भी होने चाहिए ।
. तब .द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ ही था , हालांकि इंग्लैंड युद्ध में पराजित नहीं हुआ था , परंतु तब इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था एकदम चरमरा गई थी और उसका बल क्षीण हो गया था इस कारण वह इस स्थिति में नहीं रह गया था कि वह भारत पर यथावत शासन करता रहे इस कारण उन्हें भारत से जाना पड़ा भारत के साथ-साथ कई अन्य देशों से भी उन्हें अपना अधिकार समाप्त करना पड़ा ।
इन दोनों कारणों के अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण कारण नेताजी सुभाष सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज थी । द्वितीय विश्व युद्ध के समय अंग्रेजों को भारतीय सैनिकों की प्रबल आवश्यकता थी उस समय भर्ती होने वाले सैनिकों को अंग्रेजों ने आश्वासन दिया था कि इंग्लैंड विश्व युद्ध जीतते ही भारत को आजाद कर देगा । परंतु इंग्लैंड अपने आश्वासन से मुकर गया जिस कारण अंग्रेजी सेना के अधिकाँश भारतीय सैनिकों में तीव्र आक्रोश फैल गया , और उनकी पत्र बहुतेरी सेना आजाद हिंद फौज के साथ चली गई । फिर उस सेना ने जिस प्रकार बर्मा और पूर्वी उत्तर भारत में शौर्य का प्रदर्शन किया उससे अंग्रेज भयभीत हो गए , अंग्रेजों को लगने लगा यदि फौज में इसी प्रकार का आक्रोश बढ़ता गया तो उनके लिए तो भागने के रास्ते ही नहीं बचेंगे । और इंग्लैंड भी अब इस स्थिति में नहीं है कि वह सहायता कर सकें , क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था डूब रही है । इसलिए भारत के आग्रह के पश्चात भी वे समय से पहले 15 अगस्त को ही चले गये ।
इसके पक्ष में एक तथ्य और भी उल्लेखनीय है क सन 1947 में रहे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री 53-54 मेभारत आए थे और बँगाल के गवर्नर महोदय के अतिथि थे , उन्होंने बताया था कि आजाद हिंद फौज के कारण उन्हें भारत छोड़ना पड़ा ।
भारत विभाजन की विभीषिका
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यदि थोड़े समय के लिए यह मान भी लिया जाए कि केवल कांग्रेस के जन आंदोलन से ही आजादी प्राप्त हुई तो भारत विभाजन का संपूर्ण उत्तर उत्तरदायित्व भी उसी का निश्चित होगा । भारत विभाजन के तथ्य रोंगटे खड़े करने वाले हैं , दोनों विश्व युद्धों में मिलाकर जितनी जनहानि नहीं हुई उतनी भारत-पाक के बंटवारे के समय हुई । हिंदुओं का नरसंहार , बंटवारे के समय किस प्रकार किया गया था , क्रूरता बर्बरता महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार की सारी सीमाएं समाप्त हो गई थी । महिलाओं और बच्चों को दी गई यात्राओं का स्मरण कर मन सिहर जाता है , उस समय अनेकों ट्रेन जो पाकिस्तान की तरफ से आती थी उनमें सारी ट्रेन कटी फटी अवस्था में हिंदुओं के शव होते थे । लाखों हिंदुओं को इस त्रासदी का भुक्तभोगी होना पड़ा इसका कारण यदि खोजा जाए तो इसके केंद्र में महात्मा गांधी का आश्वासन था,जिसके कारण वहां के हिंदू यथावत बने रहे । परंतु पाकिस्तान बनने पर उनकी दुर्गति भयन्कर रूप से हुई ।उनकी बर्बादी का मूल कारण क्या वह आश्वासन नहीं था ।पाकिस्तान बनने से रोकने के लिए उन्होंने इस त्रासदी को रोकने के क्या प्रयास किए । एक भी अनशन आंदोलन गांधी जी द्वारा इसके विरोध में नहीं किया गया । जबकि उनके आमरण अनशन के कारण पाकिस्तान को भारत द्वारा पचपन करोड रुपयें देने पडे ।
पाकिस्तान का निर्माण उन्हें क्यों स्वीकार करना पड़ा । इसका संक्षेप में यही उत्तर है कि तत्कालीन कांग्रेश के नेताओं की पदलोलुपता के कारण यह विनाश हुआ , सत्ता प्राप्त करने की अधीरता ने भारतवर्ष के तीन खंड कर दिए । यहां एक तथ्य और भी उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान बनने का बीज कब और कैसे उत्पन्न हुआ , लोगों का कहना यह है कि जिन्ना ने अंग्रेजों को कहा था कि आपने सत्ता यहां के मुसलमानों से प्राप्त की थी इसलिए यदि आप वापस करते हैं तो हिंदुस्तान का राज्य मुसलमानों को मिलना चाहिए । परंतु उस समय यह संभव नहीं था क्योंकि उस समय कांग्रेश द्वारा जो जन आंदोलन किया गया था उसके कारण एक सामाजिक दबाव था ,और ऐसे समय जिन्ना की बात नहीं मानी जा सकती थी । तब जिन्ना ने कहा कि यदि आप हमें पूरा हिंदुस्तान नहीं दे सकते तो कहीं भी कोई भी एक हिस्सा हमें दे दें , तो हम उसे प्राप्त कर बाद में पूरे हिंदुस्तान को इस्लामिक स्टेट बना लेंगे । उस समय बात मजाक लगती थी लेकिन आज यह प्रमाणित हो रहा है कि जिन्ना ने जो सोचा था वह सत्य था और आज उसी ओर यह हिंदुस्तान जाता हुआ दिखाई दे रहा है ।
मेरी पीढा
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यहां मेरा उद्देश्य यह नहीं है कि तत्कालीन कांग्रेस अथवा महात्मा गांधी को आजादी का श्रेय न दिया जाए । भारत में गणतंत्र व्यवस्था के लिए पंडित जवाहर नेहरू का विशेष आग्रह रहा गणतंत्र बना रहे इस प्रकरण में नेहरू के योगदान की सराहना की जानी चाहिए इसके साथ ही महात्मा गांधी ने जिस प्रकार संपूर्ण देश में भारतीय मूल्यों और आजादी की प्राप्ति हेतु जिस प्रकार का वातावरण निर्माण किया उसका अन्य कोई उदाहरण नहीं है इसके साथ यह भी इसमें रही है की इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए पूरी बंगाल को पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में परिवर्तित कर दिया वहीं के अदम्य साहस का परिचायक है जिसने पूरे विश्व में भारत का सम्मान बढ़ाया और इस योगदान से उनको को वंचित नहीं किया जा सकता है हां यह भी है कि उन्होंने आपातकाल की घोषणा कर गणतंत्र पर एक काला धब्बा भी लगाया था ।क्योंकि आजादी प्राप्त करने के पश्चात लंबे समय तक कांग्रेस को ही शासन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था इसलिए मेरी इतनी पीढा अवश्य है कि इस देश के अन्तर्मन को जिस प्रकार तैयार करना चाहिए था वह उन्होंने नहीं किया । और शासन को केवल चलाने के लिए चलाते रहें । परंतु इस देश की गुलामी के कारणों का निदान करने का साहस नहीं दिखाया । मेरा आग्रह इतना ही है कि तत्कालीन तथ्यों की जानकारी संपूर्ण रूप से सामने रखी जाए जिससे आजादी का श्रेय उन्हें भी मिले जिन्होंने प्राणों का बलिदान किया है और यातनाएं सहन की थी। इतिहास के यदि इन तथ्यों को छिपाकर आधे अधूरे तथ्यों का प्रचार किया जाए तो यह इतिहास के साथ अन्याय तो है ही साथ में उन देशभक्तों और बलिदानियों के प्रति भी अन्याय है ।यदि आजादी केवल अनशन hi से मिल सकती तो समाज में आजादी के लिए बलिदान की भावना तिरोहित हो जायेगी , और देश के लिए कुछ करने की इच्छा समाप्त हो जाती है जिसके परिणाम स्वरूप देशद्रोही विचार हो पनपने लगते ,ऐसा समाज स्वार्थ भाव से गिर जाता है ।
मेरे विचार से जानबूझकर समाज से इन तथ्यों को छुपाने का प्रयास किया गया और आजादी का श्रेय एक निश्चित परिवार और दल तक ही सीमित कर दिया गया , जिससे उन लोगों की व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति होती रहे और सत्ता पर अनंत काल काल तक बने रहने का अवसर बना रहे । भारत की आजादी के परिदृश्य से जानबूझकर वीर सावरकर चंद्रशेखर आजाद , रामप्रसाद बिस्मिल , अशफ़ाकउल्ला , भगवती चरण बोहरा, दुर्केगा भाभी जैसेअनगिनत क्रान्तिकारियों को ओझल कर दिया, जिन्होने अपने प्राण हथेली पर रखकर देश के लियें अपनी बलि चडा दी । इसलिए आज समाज में देश और समाज के लिए कुछ करने वालों की अत्यंत कमी हो गई है ।समाज मे निष्क्रियता निराशा कर्महीनता का वातावरण निर्मित हो रहा है ।
लॉर्ड मेकाले का षड्यंत्र
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कभी स्वयम्भू बुद्धिजीवी ,कलाकार ,इतिहासकार और ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों के स्वर भारत विरोधी हो जाते हैं , उसका कारण है उनकी शिक्षा और संस्कार । वह मैकाले के मानस पुत्र हैं । वास्तव में अंग्रेजी शासकों ने जिस शिक्षा पद्धति का आविष्कार किया था उसी पर आज की हिंदुस्तान की शिक्षा पद्धति चल रही है । आजादी के पश्चात नवीन शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए थी , क्योंकि मैकाले की शिक्षा पद्धति भारतीयों को गुलाम बनाने की थी ।और देश का दुर्भाग्य है कि आजाद भारत में आज भी वहीं शिक्षा पद्धति चल रही हैं ।
लार्ड मैकाले ने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटेन की सन्सद के लिये एक पत्र लिखा था उसके कुछ अन्श निम्नवत हैं ।
” I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person , who is begger who is thief such wealth I have seen in this country , Sach high moral values , people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country unless we break the very backbone of the nation which is The Spiritual and cultural heritage and therefore I propose that we replace old and ancient education system and culture for if the Indian think that is foreign and English is good and greater than their own they will lose their self esteem their native culture and they will become what we want them a truly dominated nation . . । उपरोक्त अन्श से स्पष्ट है कि अंग्रेजों के आने के बाद और अंग्रेजियत प्रसारित होने के पहले भारतीय समाज किस प्रकार का था और उसको क्यों और कैसे विक्रत किया गया । इससे यह स्पष्ट होता है अंग्रेजों का उद्देश्य तो भारत को गुलाम बनाए रखना था परंतु आजादी के पश्चात भारत के उन्नयन के प्रयास तीव्र होने चाहिए थे । परंतु विडंबना है कि अंग्रेजों के जाने के पश्चात भी वही शिक्षा पद्धति चालू रही ।अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और इतिहास की जो व्याख्या की है वही हमें प्रामाणिक और सत्य प्रतीत होने लगी है । भारत का इतिहास जानबूझ कर विकृत किया गया । तलवार के दम पर हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करने वाले मुगल महान और राणा प्रताप तथा शिवाजी महाराज जैसे महाराज जंगली चूहे नजर आने लगे । कक्षा 8 तक की इतिहास की पुस्तकों में अधिकांश मुगल काल पढ़ाया जाता है ,जैसे इस देश में मुगलों के अतिरिक्त अन्य कोई भारतीय राजा हुआ ही ना हो । महाभारत काल से लेकर आज तक के दिन का इतिहास पूर्णतः उपलब्ध है परन्तु मुगल काल की ही जानकारी दी जाती है । चंद्रगुप्त चाणक्य भगवान राम श्री कृष्ण महात्मा बुद्ध भगवान महावीर इत्यादि महापुरुषों की कितनों को वंशावली की जानकारी है जबकि अकबर औरंगजेब इत्यादि की पूरी वंशावली बच्चे बड़ी आसानी से बता देते हैं । जब मैं इन कक्षाओं में पढ़ता था तो हम लोगों को हमारे पूर्वज नाम की पुस्तक पढ़ाई जाती थी , जिसमें पौराणिक काल और उसके पश्चात के कई महापुरुषों के संबंध में जानकारी दी जाती थी जिससे हमें भारत के महापुरुषों के विषय में ज्ञान हुआ लेकिन वह पुस्तकें पाठ्यक्रम में नहीं है जिससे जो कुछ भी थोड़ी बहुत भी जानकारी भारत के महापुरुषों के विषय में मिलती थी वह भी समाप्त कर दी गई । लार्ड मेकाले का यही उद्देश्य था जिसमें वह 200% सफल रहा जिसने भारत और भारतीय संस्कृति को गर्त में ढकेल दिया ।
भारतीय योगदान को नकारना
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भारत में स्थित विश्व प्रसिद्ध भवनों के लोगों और स्थानों के निर्माण का श्रेय मुगलों को दिया जाता है जो सर्वथा वास्तविकता के प्रतिकूल है । मुगलों का समय भोग विलास और हिंदुओं को मुसलमान बनाने में निकल गया और बचे खुचे समय मे वे निरंतर भारतीयो से युद्ध करती रहे , तो फिर किस समय उन्हें इन विश्व प्रसिद्ध भवनों के निर्माण का समय मिला । कहा जाता है कि एक विश्व प्रसिद्ध भवन के निर्माण के लिए शाहजहां ने अरब देशों से कुशल कारीगर बुलाए थे । जरा विचार करिए यदि वे कारीगर भवन विद्या में इतने दक्ष थे तो उन्होंने अपने देशों में ऐसे कौन से कितने भवनों का निर्माण किया । सत्यता यह है कि अरब देशों में तो ऐसी भवनों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है । इससे यह स्पष्ट है कि अरब देशों से योग्य कारीगरों की बात एकदम झूठी और कपोल कल्पित है ।सत्यता तो यह है कि मुगलकाल मे कोई भी उल्लेखनीय निर्माण नहीं हुआ ।बलपूर्वक ऐसे भवनों , इमारतों और किलो को छीनकर उनमे मामूली परिवर्तन कर इस्लामी शैली मैं परिवर्तन करने का प्रयास किया गया ।
भारत के मनीषियों विद्वानों वैज्ञानिकों और ऋषि-मुनियों ने विश्व के लिए जो योगदान किया उसकी जानबूझकर अनदेखी की गई जिससे भारतीयों में अपने अतीत का गौरव उत्पन्न ना हो पाए और पूरे समाज में हीनता की भावना बनी रहे । क्वांटम भौतिकी के जनक महर्षि कणाद , शून्य की अवधारणा सबसे पहले भारतीय गणितज्ञ ने की थी आकाशीय पिंडों की गति और ज्योतिष शास्त्र के विषय में भारतीयों के योगदान को कौन नकार सकता है , आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र मे चरक और सुष्रुत का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो सभी चिकित्सा पद्धतियों का आधार है । राइट बंधुओं के कई वर्ष पूर्व बापू तलपडे ने मुंबई के समुद्र के किनारे विमान उड़ाकर भारतीय वैमानिक विद्या के ज्ञान से विश्व को अचंभित कर दिया था । मंगल ग्रह पर भारत ने संसार में सर्वप्रथम अपना यान बिना किसी त्रुटि के पहुंचा दिया था यह क्या गर्व का विषय नहीं है । परंतु जानबूझकर यह तथ्य विश्व पटल से ओझल कर दिये गये । इस प्रकार के अनेकों उदाहरण दिये जा सकते हैं ,परंतु स्थानाभाव के कारण उसका यहां वर्णन नहीं किया जा सकता है । इससे स्पष्ट है कि भारत द्वारा जो कुछ किया गया उसे विस्मृत करा दिया जिससे भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव का भाव उदय ना हो पाए , ऐसे प्रयास निरन्तर किये जाते रहे ।परंतु दुर्भाग्य से आजाद भारत के शासक भी उसी अंग्रेजी पद्धति पर चलते रहे जिससे भारत की जनता हीन भावनाओं में लिप्त बनी रहे और उन्हें अनायास प्राप्त सत्ता सुख निरंतर मिलता रहे । यदि भारतीय जनता को अपने गौरवपूर्ण इतिहास विज्ञान चिकित्सा पद्धति आदि का भान हो जाए तो वह. उठककर खड़ा हो जायेगा और फिर से उसी स्थान पर पहुंच जाएगा जहां अतीत में स्थित था परन्तु उस स्थिति में आज के अकुशल , अयोग्य , स्वार्थी तिकड़मी तत्वों से भारत मुक्त हो जायेगा ।
भारतीय जीवन शैली
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इस समय पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप चल रहा है और कई देशों में तो हाहाकार मचा हुआ है , भारत भी इस प्रकोप से बच नहीं पा रहा लेकिन अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति अभी बहुत अच्छी है , हाल ही में इस कोरोना के उपचार हेतु विश्व के सभी वैज्ञानिक युद्धस्तर पर शोध कर रहे हैं और लक्षणों को सूक्ष्म रूप से परख रहे हैं । प्रथम दृष्टया वे इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि परस्पर हाथ मिलाना या गले मिलने की परंपरा सी यह कोरोनावायरस संक्रमित होता है इसलिए परस्पर मिलने पर हाथ जोड़कर दूर से नमस्ते करना ही उपयुक्त है । इस प्रकार की परंपरा भारतीय जीवनशैली में पहले से रही है , इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय जीवनशैली संपूर्ण रूप से वैज्ञानिक है और मनुष्य जीवनके लिए स्वच्छता कल्याणकारी है । बताया जा रहा है कि दिन में कई बार पूरी तरह से हाथ धोए जाएं यह बात भी हमारे संस्कारों में पहले से है , आज अभी पता लगा कि तांबे के बर्तन पर सबसे कम समय तक कोरोना वायरस का जीवन होता है अन्य किसी भी पदार्थ की तुलना में , आप तो अवगत हैं ही कि भारतीय जीवनशैली के अनुसार रसोई में तांबे के बर्तन होने चाहिए यह हम बहुत पहले से जानते हैं । और जो लोग ऐसा करते रहे हैं वह ऐसी बीमारियों से बचते रहे हैं ।
यह सब बातें जब संकट आ जाता है तब लोगों को ध्यान आता हैं और वह तब जब विदेशी इस तथ्य को बताते हैं जबकि भारतीय जीवनशैली में यह सब बातें पहले से स्थित है । भारतीय परंपराएं लंबे शोध और अनुभव के पश्चात बनाई गई हैं जो पूर्णत वैज्ञानिक है । इसीलिए हम कहते हैं कि भारतीय जीवन शैली अत्यंत वैज्ञानिक और मनुष्य के लिए कल्याणकारी प्रमाणित हुई है । परंतु दुर्भाग्य से भारतीय जनमानस में अभी भी विदेशी जीवन शैली और उनके विचार अधिक महत्वपूर्ण हैं उन्हें ऐसा लगता है कि भारतीय सोच परंपराएं और आध्यात्मिक विचार दकियानूसी के लक्षण है ।
मेरा उद्देश्य
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उपरोक्त विवरण को पढ़कर आपको ऐसा लग रहा होगा कि क्या भारत का भविष्य संशय पूर्ण है ,एक भारतीय होने के नाते मेरे मन में जो व्यथा है उसी को मैंने इन शब्दों में यहां प्रकट किया है । मेरा यहां यह उद्देश्य नहीं है कि मेरे मन की व्यथा और निराशा से आप भी पीड़ित हो जाएं , लेकिन मेरा उद्देश्य यह अवश्य है कि एक भारतीय होने के नाते आपके सामने भी भारत के भूतकाल का और भारत की वर्तमान अवस्था का वास्तविक चित्र आपके सामने हो , जिससे सभी देश भक्त लोग मिलकर विचार करें कि यदि वह इस स्थिति से संतुष्ट नहीं है तो क्या इसका हल हो सकता है , और सभी को मिलकर भविष्य के लिए क्या करणीय है । लेकिन यदि आप वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हैं तब यह सही है कि कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि एक भारतीय व्यक्ति होने के कारण वर्तमान स्थिति से आप अवश्य चिन्तित होगे ।और वे चाहेंगे कि भारत पूरे संसार में पुनः गौरवशाली हो और शीर्ष पर स्थापित होकर मानवता के कल्याणार्थ अपने ज्ञान का प्रकाश सर्वत्र फैलाऐ ।
मेरे कई मित्र और परिचित विदेश में कई स्थानों पर हैं , उनसे यदा-कदा बात होती रहती है जिससे वहां की जीवन शैली , सामाजिक स्थिति और उनके मन में क्या चल रहा है यह पता लगता रहता है । यह सही है कि वह सब भौतिक रूप से विदेश में प्रसन्न है ,और वे अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति अच्छी तरह से रह रहे हैं , लेकिन तब भी वे संतुष्ट नहीं हैं उनका मन सुखी नहीं है । इसका कारण मुझे यह समझ में आ रहा है की पश्चिम की जीवन शैली और विचार हम लोगों के अनुकूल नहीं हैं , इसलिए उन्हें अपने जीवन में एक विचित्र रिक्तता का आभास होता है और वे निरंतर भारत को याद करते हैं , उनका भविष्य भारत में ही है ऐसा विचार करते रहते हैं । जरा विचार करें कि भारतीय जीवन शैली और पश्चिम की जीवन शैली और अंतर्मन में मूल रूप से क्या अंतर है ।
भारतीय और पाश्चात्य दर्शन
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मेरे विचार से भारतीय जीवन शैली में यह मूल बात है कि मैं दूसरों के लिए क्या कर सकता हूं और इसी में अपने जीवन की सफलता मानते हैं , जबकि विदेशों में यह अपेक्षा होती है कि संसार में जो कुछ भी है उसका मैं अधिकतम कैसे उपभोग करूं , जितना अधिक उपभोग की सामग्री व्यक्ति इकट्ठा कर लेता है उसी में वह अपनी सफलता मानता है । भारतीय दर्शन हमें सदैव यह सिखाता है कि जो सुख दूसरों की सेवा करने में है और दूसरों को सुखी करने में है वह अपनी स्वार्थ पूर्ति में नहीं है । जबकि वे लोग यदि फादर्स डे के दिन अपने पिता को कोई गिफ्ट दे देते हैं तो इसीको अपनी महानता समझते हैं जबकि हिंदुस्तान में यह बात हास्यास्पद ही कही जाएगी । इस प्रकार के उनके संस्कार हैं और इसी प्रकार की सोच उनकी जीवनशैली में बन गई है । इसमें उनका दोष नहीं है क्योंकि उन्हें ऐसी शिक्षा दी गई है जिससे वह भौतिक साधनों में ही लिप्त रहे । उन लोगों को तो वास्तविक सुख की कल्पना ही नहीं है क्षणिक सुख के आभास से ही वह अपने को सुखी समझते हैं । परंतु भारतीय जीवन दर्शन ने बड़ी लंबी शोध के पश्चात मनुष्य का मन और उसकी आकाँक्षा तथा सुख को रेखांकित किया है । जरा कल्पना करें यदि किसी मां को अपने शिशु से अलग कर उसे सोने के महल में रख दिया जाए और वहां सारी सुविधाएं दी जाएं तो क्या माँ प्रसन्न रह पायेगी । जब मां को अपना शिशु गोद में मिल जाता है तो वह किस प्रकार सुखी होती है उसकी कल्पना वही कर सकती है उस सुख की तुलना में वह इंद्रासन को भी त्याग देती है । परंतु मां और पुत्र के बीच जो संबंध होता है उसको पश्चिमी दर्शन ने समझा ही नहीं ।
पाश्चात्य दर्शन माननीय संबंध और मानवीय भावनाओं और माननीय मूल्यों तक पहुंचा ही नहीं ।इन सब बातों पर विचार करने के लिए हमको सर्वप्रथम भारत , भारतीयता और भारतीय दर्शन तथा भारतीय जीवन शैली इन सब बातों को ठीक प्रकार से समझना होगा । यहां एक सामान्य भारतीय भले ही इन चीजों को शब्दों में व्यक्त ना कर सके परंतु उसके संस्कार ,स्वभाव उसका वातावरण और उसका अतीत इन्हीं सब बातों से निर्मित हुआ है , इसलिए एक भारतीय का सोच पश्चिम से भिन्न होता है और भारतीय व्यक्ति को भारतीयता में ही सुख का अनुभव होता है । भारत के ऋषि यों मुनियों ने गहन विश्लेषण के पश्चात उन्होने यह निष्कर्ष निकाला कि बाह्य परिवेश की तुलना में मनुष्य का सुख उसके अंतर्मन में निहित है जिसके अनुसार माननीय भावनाएं संवेदनाएं इत्यादि गुणों का दिग्दर्शन होता है । जबकि पश्चिम केवल मनुष्य की बाह्य और भौतिक आवश्यकता तक ही सीमित रहा और वह मनुष्य के स्वभाव मन और प्रकृति तक तो पहुंच ही नहीं पाया ।
वसुधैव कुटुंबकम , हर कंकर में शंकर , हर आत्मा में परमात्मा का दर्शन ही भारतीय आध्यात्म का सार है , परंतु इस प्रकार का सर्वग्राही दर्शन केवल भारतीयता में ही सम्भव है , पश्चिम तो इन सब चीजों की कल्पना ही नहीं कर सकता । हिंदू धर्म के अतिरिक्त सभी पंथो में या संप्रदायों में अथवा तथाकथित धर्मों में केवल अपने ही अनुयायियों के हित का विचार किया गया है । और उनके लिए तो इतर व्यक्तियों का धर्म परिवर्तन करा देना चाहिए ,तभी उनका कल्याण हो सकता है , ऐसी उनकी मान्यता है । परंतु भारतीय दर्शन में या हिंदू धर्म में ऐसा कहीं भी बाध्यता नहीं है ,और न ही धर्म परिवर्तन पर विश्वास करते हैं । वे नित्य प्रति परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि” सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ” इसमें उनका भाव केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं होता है बल्कि इस जगत में जितने भी प्राणी हैं उन सब के लिए भी इसी प्रकार की प्रार्थना करते हैं । उनका कहना है कि ईश्वर तक पहुंचने के लिए अनेकों मार्ग हैं , जो मार्ग आपको ठीक लगे उस पर आप चलें । इतना उदार और समन्वयवादी तथा सर्वग्राही दर्शन केवल भारतीय दर्शन ही है । इसलिए भारत संपूर्ण जगत में परमात्मा के दर्शन करता है उसके मन में किसी के प्रति कोई भेद नहीं होता है इसलिए भारतीय दर्शन संपूर्ण जगत के लिए कल्याणकारी है ।
तीन विस्तारवादी विचारधाराएं
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मुख्य रूप से संसार में तीन प्रकार की विचारधाराएं मिलती है । उनका मानना है कि उनके मार्ग से ही जन कल्याण संभव है उसमें पहली विचारधारा है ईसाइयत की , दूसरी इस्लामियत की और तीसरी विचारधारा साम्यवादी विचारधारा है । साम्यवादी सोच के अनुसार तो धर्म ईश्वर और आध्यात्मिकता मनुष्य के लिए अत्यंत घातक है उनके अनुसार इन बातों से मनुष्य यथार्थ स्थिति को नकार कर वे नशे से ग्रसित हो जाते हैं इसलिए वे इसे अफीम समझते हैं । उनके अनुसार ईश्वर की अवधारणा और राष्ट्रवादी विचार प्रगतिशीलता के मार्ग में रोड़े हैं , लेकिन वास्तव में उनके अनुसार चीन और रूस ही संसार को कल्याण का मार्ग दिखा सकते है , वही उनके लिए आदर्श है । जबकि वास्तविकता यह है कि अब चीन से भी और रूस मे भी साम्यवाद अंतिम सांसे ले रहा है । संयोग से इस समय तीसरी विचारधारा का प्रभाव कम हो रहा है परंतु अभी वे देशद्रोही विचारधारा से अलग नहीं हुए हैं और देश में जितने भी राष्ट्र विरोधी कार्य होते हैं उन सब में उनका पूरा सहयोग रहता है , बल्कि उन सबको बौद्धिक खुराक इन्हीं लोगों से मिलती है । आपको स्मरण होगा कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश के टुकड़े-टुकड़े नारे लगाने वाले लोग यही लोग थे और जब नक्सलवादियों ने 76 भारतीय फौज के सैनिकों का नरसंहार किया था उस समय इसी जेएनयू में जश्न मनाया गया था । नक्सलवाद के नाम से कई प्रांतों को अभी यह परेशान किए हुए हैं और नक्सलवादी विचारधारा के आधार पर वह निरंतर पूरे भारत वासियों और किसानों को भड़का कर हिंसा कराती रहती है , जो अभी भी देश के लिए एक समस्या है । इस प्रकार यह विचारधारा समाप्ति की ओर अवश्य है परंतु भारत के निर्माण में सबसे बड़ा रोड़ा अभी भी है ।
अब यहां अन्य दो विचारधाराओं पर विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि उनकी विस्तार वादी नीति के कारण संसार में निरंतर अशांति का खतरा बना रहता है । जहां तक भारत में ईसाइयत की बात है तो आजादी के बाद भी इस धर्म के अनुयायियों का बड़ी संख्या में वृद्धि हुई है , जिसका एकमात्र कारण हिन्दुओं का बडे पैमाने पर धर्मपरिवर्तन कराया गया ।इस संपूर्ण धर्म परिवर्तन का आधार लालच था । भोले भाले व्यक्तियों को कपड़े देकर , आवश्यकता पड़ने पर धन देकर , और शादी कराने का प्रलोभन देकर उन्हें अपने मूल धर्म से च्युत किया गया है । उत्तर-पूर्व तो पूरे का पूरा ईसाई हो गया है और इसके अतिरिक्त वनवासी क्षेत्रों में भी इनका प्रभाव बढ़ रहा है । धर्म परिवर्तन से मेरा कोई विरोध नहीं है लेकिन धर्मांतरण का आधार भय अथवा लोग नहीं होना चाहिए । केवल मेरा यहां यह कहना है यदि कोई व्यक्ति अपने विश्वास के कारण अपनी पूजा पद्धति बदलता है तो इसमें कोई हानि नहीं है । लेकिन जब वह धर्म बदलकर भारत के विरुद्ध ही खड़ा हो जाता है , और उसकी आस्था भारत में न होकर अन्य देश में हो जाती है तब उसकी देश भक्ति में संदेह हो जाता है तो यह स्थिति भारत की संप्रभुता के लिए एक बड़ी भारी सन्कट हो जाता है । वास्तविकता यह है की जब कोई हिंदू ईसाइयत स्वीकार कर लेता है तो उसका भावनात्मक संबंध फिर ईसाइयत वाले देशों से हो जाता है और भारत से वह कट जाता है।
दूसरी तरफ इस्लाम का प्रसार जिस प्रकार किया गया है । सभी को पता कि इस समय लगभग 56 इस्लामी देश हैं , और उन सभी देशों में वहां के मूल निवासियों को किस प्रकार धर्म परिवर्तन कराया गया , तलवार की नोक पर वहां इस्लाम की स्थापना की गई । और वह सभी देश अब इस्लामिक देश कहे जाते है । यह तरीका किसी भी प्रकार ठीक नहीं कहा जा सकता है । क्योंकि मनुष्य को भयभीत कर उसको अपने धर्म में लाकर उसका किसी भी प्रकार का कल्याण नहीं किया जा सकता । इसके पीछे धर्म का प्रचार कम और सत्ता सुख अधिक है सामान्य व्यक्ति धर्म के नाम पर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है इसी भावना का लाभ उठाकर इस्लाम धर्म संसार में फैलाया जा रहा है , यह तरीका मनुष्य और मनुष्यता के विरुद्ध है ।
आपको जानकारी होगी आज भारत में इस्लाम धर्मावलंबियों की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है । तथा दूसरी तरफ जब पाकिस्तान का निर्माण हुआ था तब वहां हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 13 – 14% थी अब घटकर मात्र 1.3% रह गई है , इससे स्पष्ट है कि एक इस्लामिक देश में इस्लाम से इतर लोगों का रहना लगभग असंभव सा है । उनका मानना है कि किसी भी देश में उनकी संख्या अधिक हो जाएगी तो वह भी इस्लामिक देश हो जाएगा । अभी तक भारतवर्ष के जनसंख्या के आंकड़े और इस्लाम के कार्य करने की शैली से इस बात की पुष्टि हो रही है , जो अति चिंतनीय है । इससे भारत का भविष्य धूमिल हो रहा है ।
बलात इस्लामीकरण के कारण संसार में इस्लाम धर्म व धर्मावलंबियों की संख्या तो अवश्य बढ़ गई और इस प्रकार उनके 56 इस्लामिक देश भी हो गए लेकिन जरा विचार करिए कि इस्लामिक देश होने के पश्चात वहां के निवासियों में जो मुसलमान हैं उन्हें कितनी शांति मिली ,उनके देश में किस प्रकार की स्थिति है । क्या अभी वहां की व्यवस्था से वे संतुष्ट हैं जहां इस्लाम के अतिरिक्त और कोई व्यक्ति नहीं है ,तो भी वे निरंतर परस्पर झगड़ते रहते हैं उनमें आपस में हिंसा होती रहती है और वह अभी सुख शांति से नहीं रह पा रहे हैं , वहां का निवासी संतुष्ट नहीं है । इस्लाम के कारण इन देशों में सुख और शांति स्थापित नहीं हो सकी । दुर्भाग्य है कि हिंदुस्तान का मुसलमान इस सत्यता को जानबूझकर देखते हुए भी स्वीकार नहीं कर पा रहा है और उन्हें अभी जिहाद और इस्लाम प्रिय है , बगल में इस्लामिक देश पाकिस्तान है वहां जनता की क्या स्थिति है वहां किस प्रकार मनुष्य जीवन बिता रहा है , यह सब जानते हुए भी भारत में रहकर और पाकिस्तान का गुण गाते रहते हैं।
भारत की धर्मनिरपेक्षता
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पाकिस्तान बनने के बाद भारत ने पन्थनिरपेक्षता स्वीकार की जो एक आदर्श व्यवस्था है परंतु यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि आदर्श और व्यवहार में समन्वय नहीं होता है तो वह आदर्श आपको पतन के गर्त मे धकेल देगा । और इस समय यही हो रहा , क्योंकि आप तो धर्मनिरपेक्ष हैं लेकिन जिनके साथ इसका व्यवहार किया जाना है क्या वे भी इसी मान्यता के हैं। उनके मन में तो सारे संसार में दारुल इस्लाम स्थापित करने की धारणा है , और उन्हें जो शिक्षा दी गई उसके अनुसार जो काफिर लोग हैं उन्हें एन केन प्रकारेण मुसलमान बनाना है चाहे हिंसा के द्वारा ही क्यों ना हो , तो ऐसे लोगों के साथ धर्मनिरपेक्षता काऐ व्यवहार करना कहाँ तक उपयुक्त होगा ? और इसका क्या परिणाम निकलेगा उस परिणाम के दर्शन तो भारत में हो ही रहे हैं ।
पाकिस्तान ने अपने को इस्लामिक देश घोषित किया है , और भारत ने अपने को पन्थनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया है । पन्थनिरपेक्षता एक आदर्श विचारधारा है परंतु क्या इन परिस्थितियों में उसके द्वारा देश चलाया जा सकता है , यदि देश कमजोर हो गया तो आपकी बात संसार में कौन सुनेगा । किसी देश की विचारधारा कैसी है इसका वैश्विक राजनीति में कोई महत्व नहीं है बल्कि उस देश की कितनी शक्ति है चाहे वह आर्थिक हो सामरिक हो या राजनीतिक हो , इस बात का महत्व है । इसलिए जरा विचार करें कि धर्मनिरपेक्षता के कारण अगर भारत कमजोर हो जाए , तो वसुधैव कुटुंबकम की बात कौन सुनेगा , हर कंकर में शंकर कौन देखेगा , इसलिए यदि इन सिद्धांतों को संसार में बनाए रखना है तो भारतीय दर्शन हिंदुत्व को बचाए रखना होगा । वास्तव में पन्थनिरपेक्षता तो हिंदुत्व का एक अनिवार्य अंग है और हिंदुत्व ही पंथनिरपेक्षता की गारंटी है ,आज भारत में धर्मनिरपेक्षता है तो उसका कारण यह है कि यहां हिंदू बहुसंख्यक है जिस दिन हिंदू बहुसंख्यक नहीं रहेंगे उस दिन धर्मनिरपेक्षता समाप्त होजाएगी । इसलिए यह संसार के हित में है , मानवीयता के हित में है कि हिंदुत्व रहे । और यदि हिंदुत्व को बनाए रखना है तो इस पर हो रहे आक्रमणों को ठीक प्रकार से हमें समझना होगा और हमें उसका प्रतिकार करना होगा । यदि हम इस में सफल नहीं हो सके तो भारत और भारतीयता की तो जो हानि होगी वह तो होगी ही , लेकिन उससे अधिक हानि मनुष्यता की होगी , इसलिए भारतीयों के ऊपर और अधिक उत्तरदायित्व है , कि हिंदुत्व पर हो रहे सभी आक्रमणों को समझना होगा और उनका प्रतिकार ठीक तरह से करना होगा । अभी भारत में इस तरफ ध्यान नहीं है ।
संप्रदाय
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मेरा कहना यह नहीं है कि मैं हिंदू हूं इसलिए हिंदुत्व ठीक है बल्कि मेरा कहना यह है कि विश्व के कल्याण के लिए और स्वयं मनुष्य के कल्याण के लिए केवल एक ही मार्ग है और वह है हिंदुत्व । यही भारतीय सोच है जो पूरे संसार को शांति का आश्वासन है हिंदुत्व के समझने के पूर्व हमको हिंदू धर्म पर विचार करना होगा , इसमें दो शब्द है हिंदू और धर्म । इसलिए सबसे पहले हमें धर्म पर विचार करना चाहिए । धर्म और संप्रदाय दो यह प्रथक प्रथक अवधारणाएं हैं परंतु अंग्रेजी में इनके लिए एक ही शब्द रिलीजन (religion )बताया गया है इसलिए भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है । वास्तव में रिलीजन (religion} या संप्रदाय या पंथ धर्म से बिल्कुल भिन्न चीज है , धर्म का अर्थ है धारण करने योग्य अथवा धारणा या मूल स्वभाव , जैसे पानी का मूल स्वभाव है तरलता अग्नि का मूल स्वभाव है आँच । इसी प्रकार मनुष्य को अपने मूल स्वभाव मे ले जाने वाले मार्ग को मानव धर्म कहा गया है ।धर्म के द्वारा बताए गए मार्ग को अपनी जीवन शैली मैं अपनाकर व्यक्ति अपना कल्याण कर सकता । इस प्रकार धर्म का उपयोग इसी जीवन के लिए है । है इस प्रकार धर्म की अवधारणा मे ईश्वरवाद ,कर्मकान्ड और पूजा पद्धति से कोई सम्बन्ध नहीं है । इस प्रकार विचार करें तो संसार में केवल हिंदू धर्म ही धर्म है , अन्य जो धर्म कहे जाते हैं वह इस परिभाषा के अनुसार कोई भी धर्म की श्रेणी में नहीं आते हैं बल्कि उन्हें संप्रदाय कहा जाना चाहिए ।
एक निश्चित पूजा पद्धति एक निश्चित प्रवर्तक महापुरुष एक निश्चित मार्गदर्शक पुस्तक जिनके अनुसार ही मनुष्य को अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए और उसे उसी मार्ग के अनुसार चलने मे अपना कल्याण सलमझना चाहिए ,ऐसे व्यक्तियों के समूह को संप्रदाय कहते है । इस परिभाषा के अनुसार तो इस्लाम और ईसाई सम्प्रदाय की श्रेणी में आते हैं , क्योंकि उनका मानना है कि उनके विचारों के अनुसार ही मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है। और उनके मार्ग से ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है। उनकी आस्था और विश्वास इतना कट्टर होता है कि वह किसी अन्य संप्रदाय की शिक्षा को सुन ही नहीं सकते और उन्हें ऐसा लगता है कि उनके पंथ के अलावा सभी लोग गलत रास्ते पर हैं इसलिए विभिन्न पक्षो में आपस में टकराव होता है और टकराव की सीमा यहां तक हो जाती है कि परस्पर हिंसा पर उतर आते है ।
यदि विश्व इतिहास में हम देखें तो इस प्रकार की हिंसा कई बार हुई है जिसके शिकार लाखों लोग हुए हैं । जरा विचार करें कि प्रश्न यहां ईश्वर तक पहुंचने का है लेकिन साम्प्रदायिक जूनून का परिणाम होता है लाखों व्यक्तियों को मौत के घाट उतारने का । इसलिए धार्मिक होना जितना अच्छा है , उससे भी ज्यादा बुरा सांप्रदायिक होना है ।अतः मेरा यहां प्रबल आग्रह है कि मनुष्य को धर्म और संप्रदाय में स्पष्ट अंतर समझ में आना चाहिए । क्योंकि पूरे विश्व में जानबूझकर धर्म और संप्रदाय के अंतर को नहीं बताया गया बल्कि हमें तो ऐसा लगता है की धर्म की समझ ही विश्व में नहीं थी , और धर्म की अवधारणा केवल भारतीय दर्शन में ही है। क्योंकि जिन लोगों को यह गर्व है कि वह संसार को अपने धर्म का मार्ग दिखा कर संसार का कल्याण कर रहे हैं उनकी भाषा में तो धर्म और संप्रदाय दोनों के लिए एक ही रिलीजन {religion} शब्द है । इससे यह स्पष्ट है कि उनके मन में धर्म और संप्रदाय में कोई भेद नहीं है , जब उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि धर्म और संप्रदाय दोनों प्रथक चीजें हैं तब उन्हें भारतीय दर्शन की सत्यता और गंभीरता की जानकारी होगी , लेकिन तब तक वे विश्व के मानव समाज की पर्याप्त हानि कर चुके होंगे । यदि हम संक्षेप में संप्रदाय और धर्म का अंतर समझना चाहे तो केवल इनमें ही और भी का ही अंतर है । मेरे कहने का अर्थ यह है की संप्रदाय में सांप्रदायिक शक्तियां केवल अपने संप्रदाय के द्वारा बताए गए मार्ग को ही सही समझती है अन्य किसी मार्ग को वे व्यर्थ बताते हैं । और धर्म के अनुसार अपने बताए हुए मार्ग के अतिरिक्त सभी मार्गों को भी वे सही ठहराते हैं और किसी भी मार्ग की वह निंदा नहीं करते हैं। धर्म की यह अवधारणा है कि भिन्न-भिन्न पन्थों की शिक्षाओं के अनुसार भी मनुष्य ईश्वर तक पहुंच सकता है सबका गंतव्य परमात्मा ही है ।