प्रवीण गुगनानी
भारत जैसे विशाल राष्ट्र मैं विवाद और विषय आते जाते रहते है और इनका उलझना सुलझना भी एक सामान्य प्रक्रिया है किन्तु जिस प्रकार से पिछले वर्षों मैं संस्कृति से जुड़े विषयों पर सरकार का रुख प्रगतिवादी होने के नाम पर भारतीयता और हिन्दुत्व का विरोधी होता जा रहा है वह एक बड़ी चिंता का विषय है। देश मैं प्रगतिशीलता, बुद्धिजीविता और धर्म निरपेक्षता का निर्वहन करने वाला उन्ही को कहा जाने लगा है जो हिंदू विरोधी बात करता हो!!! ऐसी ही प्रवृत्ति का शिकार रामसेतु का विषय भी बन गया लगता है। इस प्रवृत्ति के कारण ही हाल ही में हुए घटनाक्रम में सेतु समुद्रम परियोजना पर केंद्र सरकार ने एक बार फिर पलटी खाई है। उसने इस मसले पर गठित आरके पचौरी समिति की रपट को खारिज करते हुए कहा है कि वह इस परियोजना का काम आगे बढ़ाना चाहती है। केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि इस परियोजना पर आठ सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और ऐसे में काम बंद करने का कोई मतलब नहीं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने अविवेक पूर्ण और आधारहीन बात करते आश्चर्य जनक रूप से रामायण के प्रमुख घटनाक्रम को विस्मृत करते हुए यह भी कहा है कि रामसेतु हिंदू धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। रामसेतु पिछले पांच छह वर्षों से एक मुद्दे के रूप देश की जन चिंता का एक विषय बन गया है। देशवासी रामसेतु के मुद्दे पर वो हलफनामा पीढिय़ों तक नहीं भूलेंगे जो एक सनकी ,बूढ़े और नाम न लिए जाने योग्य मुख्यमंत्री ने न्यायलय मैं प्रस्तुत किया था। अपने पारिवारिक आर्थिक घोटालों को दबाने के प्रयास मैं इस मुख्यमंत्री ने मनमोहन सरकार को प्रसन्न करने के लिए न्यायलय मैं दाखिल हलफनामें मैं भगवान राम के अस्तित्व होने को ही नकार दिया था। रामसेतु के ही ज्वलन्त मुद्दे पर प्रस्तुत इस शर्मनाक हलफनामे मैं इस राष्ट्र के जन जन और कण कण के आराध्य और नायक को कपोल कल्पना और उपन्यास का एक पात्र भर सिद्ध करने की कुत्सित किन्तु असफल कोशिश इसी मनमोहन सरकार के सहारे एक कृतघ्न मुख्यमंत्री ने की थी। हालाँकि बाद मैं जब हिंदुओं ने तीव्र और सशक्त विरोध किया तब इस घोटालेबाज मुख्यमंत्री ने इस तथाकथित हलफनामें को वापिस ले लिया था। सेतू समुद्रम योजना के विषय मैं जानकारी परक तथ्य यह भी है कि यह योजना 1860 से यानी लगभग 150 वर्षों से लंबित व विवादित रही है। इस योजना को लेकर अब तक 13 समितियां गठित हो चुकी है। इस देश के शोषक और आक्रमणकारी अंग्रजों ने भी इस योजना को सदा क्रियान्वयन से दूर ही रखा किन्तु हाय री हमारी संवेदनहीन यू पी ए सरकार कि उसकी बुद्धि इस मामले मैं सदा से न जाने क्यों उलटी ही चल ररही है!! इतिहास साक्षी है कि वर्ष 1460 तक भारत श्रीलंका के बीच आवागमन श्रीराम और इस देश के इंजीनियरों के पुरोधा नल नील के द्वारा डिजाइन किये गए इसी सेतू मार्ग से होता रहा। बाद के वर्षों मैं यह सेतू भूगर्भीय परिवर्तनों से समुद्र कि तलहटी मैं धंसता चला गया किन्तु इसकी विशाल और सुद्रढ़ सरंचना ने अपना आकार और अस्तित्व नहीं खोया व इसके कारण भारत और श्रीलंका के तटवर्ती भागों का प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता रहा। कहना न होगा कि केंद्र सरकार अभी भी देश की अधिसंख्य मानसिकता से एकमत नहीं हो पा रही है। रामसेतु को तोडऩे और उसे नेस्तनाबूद कर देने को दृढप्रतिज्ञ इस सरकार की बदनियति पर किसी को शंका भी नहीं है। सेतू समुद्रम परियोजना को अमेरिकी दबाव मैं अति शीघ्र पूर्ण करने के चक्कर मैं यदि वह कोई भी कदम सेतू विरोधी उठाती है तों देश का संस्कृति प्रेमी हिंदू समाज संभवत: भी चुप और हाथ पे हाथ धरकर बैठा नहीं रहेग। हाल के वर्षों मैं यदि आर एस एस और विहिप परिवार ने देशव्यापी आंदोलन चला कर पुरे देश को इस विषय पर जागृत और चेतन्य नहीं किया होता तों रामसेतु आज केवल किताबों में उल्लेखित एक नाम भर होता। उस समय उतने बड़े विशाल जनांदोलन के बाद भी केंद्र सरकार मानी नहीं और हठधर्मिता पुर्वक इस कुत्सित योजना मैं लगी रही थी। सेतू समुद्रम परियोजना को पूर्ण करने के लिए अमेरिकी दबाव मैं 300 मीटर चौड़ा और 12 मीटर गहरा मार्ग बनाने के लिए उसने विशाल स्वचालित और तेज गति कि मशीने रामेश्वरम के समीप धनुषकोटि पहुंचा दी थी। फलस्वरूप इस विध्वंसक कार्य को रोकने के लिए कई याचिकाएं न्यायलय मैं दायर की गई किन्तु अधिकांश याचिकाएं आश्चर्यजनक रूप से ख़ारिज हो गई थी ,सिवा एक सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के!!! 27 मार्च 2012 को सुब्रमण्यम स्वामी की इस याचिका पर विचार करते समय ही केंद्र सरकार से न्यायलय ने स्पष्ट कहा की वह रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर व स्मारक घोषित करनें के सम्बंध में केंद्र सरकार दो सप्ताह में जवाब देवें।इस सम्बन्ध मैं रोचक तथ्य है की श्रीराम को कथा का पात्र मात्र मानने वाली इस सरकार ने इस सेतू को मानव निर्मित सरंचना माना व यह भी माना की इसकी लम्बाई 30 कि मी है ,स्मरण रहे कि धनुषकोटि और श्रीलंका के मध्य दुरी भी 30 कि मी ही है। याचिका के सम्बन्ध मैं स्वामी ने देश के सेवानिव्र्वृत्त न्यायाधीश के। जी। बालकृष्णन पर सोनिया गांधी से प्रभावित होने का आरोप लगाते हुए देश को बताया था कि जब उन्होंने याचिका दायर कि तब न्यायाधीश के जी बालकृष्णन एक सप्ताह कि छुट्टी पर दक्षिण अफ्रिका चले गए थे।उनके लौटते तक सुनवाई टल जाती तो रामसेतु के विध्वंस का कार्य प्रारंभ हो जाता तब वे भागे भागे कार्यवाहक न्यायाधीश के पास पहुंचे । और उन्हें पूरा विषय निवेदन किया तब कही जाकर रामसेतु को तोडऩे पहुंची मशीने थम पाई थी और इस तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकार के मंसूबो पर रोक लग पाई थी।रामसेतु के सम्बन्ध मैं एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वर्ष 2004 मैं आई सुनामी का सामना यदि इस सेतू कि कि विशाल और सुद्रढ़ सरंचना से नहीं होता तों तमिलनाडु और केरल को भयंकर त्रासदी और नुक्सान झेलना पड़ता ।उस समय सुनामी कि लहरें इसकी सरंचना से टकराकर कई भागो मैं छिन्न भिन्न होकर भारत और श्रीलंका कि तरफ विभाजित हो गई जिससे न सिर्फ भारत के तटवर्ती राज्य बल्कि श्रीलंका भी सुनामी से बाल बाल बचा था।रामसेतु के सम्बन्ध मैं प्रसिद्ध वैज्ञानिक व पर्यावरणविद व कनाडा के ओट्टावा विश्वविद्यालय मैं अध्यापन करने वाले सत्यम मूर्ति से भारत सरकार ने राय मांगी थी तब उन्होंने स्पष्ट राय दी थी कि संपूर्ण विश्व पहले ही प्रकृति से खिलवाड करने कि गंभीर परिणाम भुगत रहा है। उन्होंने अपनी लिखित राय मैं मनमोहन सरकार को स्पष्ट कहा था कि रामसेतु वाले समुद्री भाग मैं कई सक्रिय ज्वालामुखी व गतिमान व विशाल प्रवाल भित्तियां है जिसके कारण रामसेतु को तोडऩे से कई भयंकर परिणाम सामने आ सकते है। साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा था कि रामसेतु को तोडऩे से पर्यावरण,समुद्री जल जीवन और इसमें रहने वाले जल जन्तुओ के साथ तटवर्ती इलाको मैं जन जीवन को दूरगामी दुष्परिणाम झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए।