मरकज में किस दिन रहे शख्स का खुलासा : एक ही थाली में 6 – 7 लोग खाना ही सेक्स करना भी सिखाते थे

मरकज में 21 दिन रहे शख्स का खुलासा : एक ही थाली में 6-7 लोग खाना ही नहीं, सेक्स करना भी सिखाते थे

तबलीगी जमात का नजामुद्दीन स्थित मरकज यूॅं ही देश में कोरोना वायरस संक्रमण का केंद्र बनकर नहीं उभरा है। वहॉं न केवल सरकार निर्देशों का उल्लंघन कर आयोजन हुए, बल्कि मरकज की दिनचर्या भी कुछ ऐसी थी जिससे संक्रमण फैलना ही था। यहॉं तक कि एक ही थाली में बैठकर 6-7 लोग खाना खाते थे।

यह खुलासा तेलंगाना के एक व्यक्ति ने किया है। वह मरकज में बीते साल नवंबर में 21 दिनों तक ठहरा था। उक्त व्यक्ति ने ‘स्वराज्य’ के स्वाति गोयल शर्मा से बातचीत की। इस दौरान उसने कई चौंकाने वाले दावे किए। यहाँ हम इस व्यक्ति का बदला हुआ नाम ‘जॉनी’ इस्तेमाल करेंगे।

जॉनी शुरू में ईसाई था। धर्मांतरण कर इस्लाम अपना लिया। उसने अपनी प्रेमिका के परिवार को ख़ुश करने के लिए ऐसा किया। एक डॉक्टर ने उसका लिंग-विच्छेद (खतना) किया। उसकी सलाह पर ही जॉनी ने तबलीगी जमात में शामिल होने का फ़ैसला किया। नवंबर में मरकज़ में जाने से पहले वह कई दिनों तक तेलंगाना की विभिन्न मस्जिदों में प्रवास कर चुका था।

उसने बताया कि तबलीगी जमात पूरी दिनचर्या तय करता है। खाने-पीने से लेकर मल-मूत्र त्याग करने तक सब कुछ। यहाँ तक कि सेक्स कैसे करना है, ये भी जमात ही सिखाता था। जॉनी को भी उस ‘ऑर्थोडॉक्स’ संस्था से जुड़ाव हो गया था और वो सब कुछ करता था, जैसे कहा जाए।

हालाँकि, जॉनी को जमातियों के रहन-सहन का तरीका पसंद नहीं आया। उसने कहा कि मरकज़ आज कोरोना वायरस का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन गया है, ये आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं है। उसने वहाँ के तौर-तरीकों का जिक्र करते हुए बताया कि ये निश्चित है कि अगर वहाँ एक व्यक्ति को कोई ऐसा संक्रमण हुआ तो फिर बाकियों को भी हो ही जाएगा। जॉनी ने बताया:

“वहाँ 4 लोग एक साथ बैठ जाते हैं और एक ही प्लेट में भोजन करते हैं। रोटी, चावल और करी वगैरह भी एक ही प्लेट में खाते थे। यहाँ तक कि हम चम्मच का भी प्रयोग नहीं किया करते थे और साथ ही खाते थे। कभी-कभी 6-7 लोग भी ऐसा ही करते थे। अंदर बाथरूम बहुत कम हैं और सभी को शेयर करना पड़ता है। हालाँकि, एक समय पर मरकज़ में निश्चित लोग ही रहते हैं। लोग वहाँ आते-जाते रहते हैं। कभी-कभी तो वहाँ हज़ार से भी अधिक लोग एक साथ रह रहे होते हैं। इतनी भीड़ होती है कि आप दिन में कभी भी बाथरूम जाएँ, अंदर कोई न कोई होता है और आपको 5-7 मिनट इन्तजार करना ही करना पड़ेगा।”

जॉनी ने बताया कि मरकज़ के बाथरूम को रोज साफ़ किया जाता था लेकिन टॉयलेट्स से हमेशा दुर्गन्ध आती ही रहती थी। इतनी संख्या में लोग उसका प्रयोग करते थे कि ऐसा हेमशा होता था। दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य विभाग की डायरेक्टर डॉक्टर नूतन मांडेजा ने भी कहा था कि मरकज़ में जिस तरह लोग रहते थे, उसी का पारिणाम है कि आज इतनी संख्या में वहाँ से कोरोना मरीज निकले हैं। उन्होंने कहा था कि वाशरूम और बर्तन साझा करने से ऐसा हुआ।

मरकज़ में स्विमिंग पूल की तरह एक पानी का पूल है, जिसे ‘वुडू’ कहते हैं। ये एक प्रक्रिया है, जिसके तहत मुसलमान नमाज़ पढ़ने से पहले अपने हाथ-पाँव और मुँह को धोते हैं। इसके लिए वहाँ के मुसलमान उसी पानी का प्रयोग करते थे, जिससे वायरस का फैलाव हुआ होगा। जॉनी ने अपने परिवार को नहीं बताया था कि वो दिल्ली में है। वो अभी भी कहता है कि जमात जीवन जीने के सही तौर-तरीके सिखाता है। यहाँ तक कि वहाँ अंदर मोबाइल फोन तक निकालना मना है। बाहर भी सेल्फी वगैरह क्लिक करने पर बाकी मुसलमान ताना देते हैं और पूछते हैं कि तुम किस किस्म के मुसलमान हो?

जनवरी में जॉनी को भी सर्दी-बुखार और कफ हो गया था। उसने कोई दवा नहीं ली। वो बताता है कि 20-25 दिन में वो अपने-आप ठीक हो गया। बकौल जॉनी, जमात ने सिखाया है कि डॉक्टरों के पास नहीं जाना चाहिए और अल्लाह में यकीन करना चाहिए। जॉनी कहता है कि वो इन चीजों को पूरी तरह फॉलो नहीं करता, क्योंकि अगर उसकी तबीयत ज्यादा ख़राब हुई तो उसे अस्पताल जाना ही पड़ेगा।(साभार)

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