अखबारों – पत्रिकाओं से कोरोना फैलने का भ्रामक प्रचार
योगेश कुमार गोयल
विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित दुनियाभर के तमाम वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कहा है कि अभी तक दुनिया में कहीं भी ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है, जिसमें अखबार से कोरोना वायरस का प्रसार देखा गया हो।
पूरी दुनिया पर इस समय कोरोना नामक महामारी कहर बनकर टूट रही है। इससे अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है और उद्योग क्षेत्र भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। खासतौर पर पहले से ही इलैक्ट्रॉनिक तथा डिजिटल मीडिया की चुनौतियों से जूझ रहे प्रिंट मीडिया की तो कोरोना ने कमर ही तोड़ दी है। स्थिति यह हो गई है कि देश के कई शहरों में अखबारों का वितरण बंद हो गया है और इसी कारण कई अखबारों को अपना प्रकाशन बंद करना पड़ा है या कुछ संस्करण बंद कर दिए गए हैं अथवा मजबूरन पृष्ठों की संख्या कम करनी पड़ी है। कई अखबारों और पत्रिकाओं को अपने प्रिंट संस्करण बंद करते हुए केवल डिजिटल संस्करणों का सहारा लेना पड़ रहा है।
दरअसल बहुत सारे आवासीय परिसरों में लोगों ने हॉकरों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है और बहुत सारे स्थानों पर हॉकरों ने स्वयं भी अखबार बांटना बंद कर दिया है। इसका एक बड़ा कारण अखबारों से कोरोना फैलने को लेकर सोशल मीडिया पर व्यापक स्तर पर उड़ी अफवाहें रही हैं, जिनमें कहा जाता रहा कि अखबारों तथा पत्रिकाओं के जरिये भी कोरोना फैल सकता है। यही वजह रही कि लोगों ने अपने हॉकरों से अखबार लेने से इन्कार कर दिया और भारत में अखबारों की बिक्री में 60 से 80 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। सोशल मीडिया पर तेजी से फैलती फर्जी खबरें और जानकारियां समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का कार्य करती हैं। ऐसे में अखबार और पत्रिकाएं समाज में फैलने वाली ऐसी अफवाहों के खिलाफ एक मजबूत हथियार की भूमिका निभाते रहे हैं लेकिन भारत में फर्जी खबरें फैला-फैलाकर ऐसा माहौल बना दिया गया है कि लोगों ने इनके झांसे में आकर पत्र-पत्रिकाओं से दूरी बना ली है। मेदांता अस्पताल के चेयरमैन तथा भारत के प्रमुख हृदय शल्य चिकित्सक डॉ. नरेश त्रेहन ने स्पष्ट किया है कि अखबार से कोरोना संक्रमण के प्रसार की आशंका केवल अफवाह मात्र ही है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन का भी दावा है कि अखबार की डिलीवरी से कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने की संभावना न के बराबर है।
प्रधानमंत्री सहित दुनियाभर के तमाम स्वास्थ्य विशेषज्ञ बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि कोरोना संक्रमण अखबारों और पत्रिकाओं के जरिये नहीं फैलता। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा है कि अखबार पढ़ने से कोरोना नहीं फैलता, इसे पढ़ने के बाद हाथ धोना ही काफी है लेकिन सोशल मीडिया पर अखबारों से कोरोना फैलने को लेकर अफवाहों का बाजार इस कदर गर्म कर दिया है कि कोरोना के भय से बहुत सारे लोगों ने अखबार और पत्रिकाएं पढ़ना ही छोड़ दिया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा पिछले दिनों सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे गए पत्र में कहा गया था कि लोगों में जागरूकता पैदा करने और उन तक सही सूचनाएं पहुंचाने के लिए अखबारों की छपाई और उनका वितरण बेहद जरूरी है। इसी से फर्जी खबरों और अफवाहों पर अंकुश लगाया जा सकेगा। राज्य सरकारों से इसमें सहायता की अपील भी की गई थी लेकिन उसके बावजूद इस समय प्रिंट मीडिया के समक्ष बहुत बड़ा संकट मौजूद है।
एक ओर जहां प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों अखबारों की सराहना करते हुए कहा था कि महामारी के समय में अखबार जनता और प्रशासन के बीच पुल का काम करते हैं, वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित दुनियाभर के तमाम वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कहा है कि अभी तक दुनिया में कहीं भी ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है, जिसमें अखबार से कोरोना वायरस का प्रसार देखा गया हो। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) में महामारी विज्ञान की प्रमुख निवेदिता गुप्ता के मुताबिक कोरोना श्वसन तंत्र का संक्रमण है और अखबार छूने से इसके फैलने का कोई खतरा नहीं है। अधिकांश चिकित्सकों का एक स्वर में यही कहना है कि अखबारों या पत्रिकाओं को असुरक्षित कहने का कोई तर्क नहीं है। हां, यदि आप भीड़-भाड़ वाली जगहों पर अखबार पढ़ रहे हैं तो संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा है लेकिन इसका कारण अखबार नहीं बल्कि सामाजिक दूरी नहीं बनाए रखना ही है। यही वजह रही कि पूरी दुनिया में कहीं भी कोरोना संक्रमण के भयानक कहर के बाद भी लोगों ने अखबार पढ़ना बंद नहीं किया गया। संक्रामक बीमारियों पर महाराष्ट्र सरकार के तकनीकी सलाहकार डा. सुभाष सालुंके के अनुसार जो देश कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित हैं, वहां भी अखबारों का प्रसार बंद नहीं हुआ क्योंकि अखबारों को छूना पूर्णतया सुरक्षित है।
दुनियाभर के तमाम वायरोलॉजिस्ट का कहना है कि जब आप अखबार को छूते हैं तो संक्रमण फैलने की आशंका लगभग ना के बराबर होती है। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के निदेशक सुजीत सिंह के मुताबिक शोध करने वाले वायरलॉजिस्टों को ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि कोरोना वायरस कागज पर सक्रिय या जीवित रह सकता है। विश्वभर में संक्रमण रोगों के विशेषज्ञों का साफतौर पर कहना है कि इस बात के अभी तक कोई प्रमाण नहीं हैं कि अखबार और पत्रिका संक्रमण फैला सकते हैं। यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक जीवित कोशिकाओं के बाहर अधिकांश सतहों पर कोरोना वायरस ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहता है। दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया भी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि किसी व्यक्ति को संक्रमित करने के लिए अखबार या पत्रिकाओं के कागज पर वायरस इतने लंबे समय तक जिंदा नहीं रहते और न ही इनका वितरण कोविड-19 के मरीज करते हैं, इसलिए अखबार या पत्रिकाएं पढ़ने से कोरोना संक्रमण का कोई जोखिम नहीं है। दरअसल आज लगभग सभी अखबारों और बड़ी पत्रिकाओं की छपाई काफी उच्च तकनीक के साथ होती है, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप न के बराबर होता है। इसके अलावा कोरोना संक्रमण को देखते हुए पाठकों की सुरक्षा के मद्देनजर सभी अखबारों द्वारा सुरक्षा के कुछ अन्य जरूरी उपाय भी किए गए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन कह चुका है कि कोविड-19 को रोकने की लड़ाई में अखबार लेना और पढ़ना पूरी तरह सुरक्षित है। संगठन के मुताबिक अखबार का बंडल, जो लगातार सफर करता है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है, अलग-अलग परिस्थितियों व तापमान से गुजरता है, उसमें कोरोना वायरस होने की संभावना न्यूनतम हो जाती है। डब्ल्यूएचओ ने तो यहां तक कहा है कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि कोई संक्रमित व्यक्ति किसी वस्तु को संक्रमित कर सकता है। इसलिए बाहर से आये पैकेट को लेने में कोई खतरा नहीं है। संगठन के अनुसार जिन इलाकों से कोविड-19 के मामले सामने आए हैं, वहां भी पैकेट रिसीव करना सुरक्षित है। हार्टफोर्ड हैल्थकेयर ने भी कहा है कि अपने घर आये डिलीवरी को लेने से डरें नहीं क्योंकि कोरोना वायरस लंबे समय तक किसी वस्तु पर जिंदा नहीं रहता। वैज्ञानिकों का मानना है कि करंसी नोट, कपड़े और हवा गुजरने वाली छिद्रदार वस्तुओं पर वायरस लंबे समय तक जीवित नहीं रहता क्योंकि ऐसी वस्तुओं में रिक्त स्थान या छिद्र सूक्ष्म जीव को फंसा सकते हैं और इसे प्रसारित होने से रोक सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक कोरोना वायरस निर्जीव सतह पर धीरे-धीरे एक संक्रामक एजेंट बनने की क्षमता खो देता है और पराबैंगनी विकिरण के सम्पर्क में आने पर इसकी संक्रामक क्षमता कम हो सकती है।
नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हैल्थ, सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल, यूसीएलए तथा प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना वायरस चिकनी तथा बिना छिद्र वाली सतहों पर सबसे ज्यादा लंबे समय तक टिका रहता है, जिनमें लकड़ी, प्लास्टिक, कांच, स्टील, पीतल, तांबा शामिल हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक स्टील तथा प्लास्टिक पर कोरोना वायरस तीन दिन तक जिंदा रहता है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति ने इन तीन दिनों में से किसी संक्रमित सतह को छू दिया तो वह कोरोना वायरस का शिकार हो सकता है। यह वायरस प्लास्टिक और इस्पात पर तीन दिनों से भी ज्यादा समय तक सक्रिय रहता है लेकिन हवा के सम्पर्क में आने के बाद इसकी ताकत तेजी से कम हो जाती है। प्रत्येक छियासठ मिनट में वायरस की क्षमता आधी हो जाती है। पहली बार सतह पर आने के तीन घंटे बाद इसके संक्रमित करने की क्षमता कुल क्षमता का आठवां हिस्सा रह जाती है और छह घंटे बाद इसकी यह क्षमता सिर्फ दो फीसदी रह जाती है। कार्डबोर्ड पर चौबीस घंटे रहने के बाद कोरोना वायरस निष्क्रिय हो जाता है। अगर बात की जाए अखबारी कागज की तो यह कार्डबोर्ड के मुकाबले बहुत ज्यादा छिद्रदार होता है, इसलिए इस पर वायरस के सक्रिय रहने की अवधि बेहद कम है। वायरस संक्रमण के शुरूआती वैज्ञानिक अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है कि झिरझिरे सतह पर वायरस के टिकने की संभावना और अवधि न्यूनतम होती है। अगर बात अखबारों या पत्रिकाओं की जाए तो इनमें इस्तेमाल होने वाली स्याही और प्रकाशन प्रक्रिया के कारण ये कहीं अधिक जीवाणुरहित होते हैं।
इंटरनेशनल न्यूज मीडिया एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक व सीइओ अर्ल जे विलकिंसन का कहना है कि तमाम वैज्ञानिक निष्कर्षों से यह स्पष्ट हो चुका है कि झिरझिरे पेपर की सतह, जिसमें अखबारी कागज भी शामिल है, कोरोना वायरस से सुरक्षित है और अखबार के माध्यम से कोविड-19 के फैलाव की अभी तक कोई घटना सामने नहीं आई है। बहरहाल, कई वैज्ञानिक शोधों में बताया जा चुका है कि अखबारों तथा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में उपयोग होने वाला कागज कोरोना संक्रमण के खतरे से सुरक्षित है। ग्राहकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के मद्देनजर तमाम प्रकाशक अपने प्रकाशन केन्द्रों, वितरण केन्द्रों, न्यूज स्टैंड तथा होम डिलीवरी के दौरान हर पर्याप्त सावधानी भी बरत रहे हैं। संक्रामक बीमारियों के तमाम विशेषज्ञ लगातार कह रहे हैं कि अखबारी कागज पर वायरस लंबे समय तक जीवित नहीं रहते और अखबार से संक्रमण फैलने की आशंका नहीं के बराबर है। ऐसे में अखबारों से कोरोना संक्रमण को लेकर भ्रामक प्रचार करना सर्वथा अनुचित है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)