बजट में चिदंबरम ने ‘संतुलन’ साधने की कर दी है सर्कस!
वीरेन्द्र सेंगर
नई दिल्ली। वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने 2013-14 के प्रस्तुत किए गए बजट में काफी चतुराई दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने तमाम बजट पूर्वानुमानों को खासे झटके दिए हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस के हलकों में पक्के तौर पर उम्मीद की जा रही थी कि वित्तमंत्री इनकम टैक्स में कर छूट का दायरा जरूर बढ़ाएंगे। ताकि चुनावी वर्ष में पार्टी की राजनीति को ज्यादा चमकदार बनाया जा सके। लेकिन वित्तमंत्री ने इन उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया। इनकम टैक्स के स्लैब में भी कोई बदलाव नहीं किया गया। इतना जरूर हुआ कि उन्होंने एक करोड़ रुपए से अधिक की आय वाले अमीरों पर दस प्रतिशत का सरचार्ज ठोंक दिया है। मध्यवर्ग को वित्तमंत्री ने कोई राहत तो नहीं दी। यदि यह वर्ग चाहे, तो अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगने से अपने मन को कुछ तसल्ली दे ले।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव चौधरी बीरेंद्र सिंह कहते भी हैं कि कांग्रेस की नीतियां हमेशा सच्चे समाजवाद से प्रेरित रहती हैं। वित्तमंत्री ने अगर अमीरों पर टैक्स बढ़ाया है, तो यह हर तरह से उचित कहा जा सकता है। उन्होंने यही कहा है कि वैश्विक मंदी के इस दौर में यूपीए सरकार ने बहुत अच्छे ढंग से भारत को बड़ी आर्थिक चपेट से बचा लिया है। तमाम खराब स्थितियों में भी वित्तमंत्री ने बजट में किसी वर्ग पर ज्यादा बोझ नहीं डाला। इसकी सराहना तो विपक्ष को करनी चाहिए। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का सवाल है कि कांग्रेस के नेता इस बजट के ‘कीर्तन’ गाकर भला देश के लोगों को और कितना चिढ़ाएंगे? सुषमा कहती हैं कि बात-बात में आम आदमी की दुहाई देने वाली कांग्रेस के वित्तमंत्री ने 100 मिनट के बजट भाषण में एक बार भी आम आदमी का जिक्र नहीं किया। शायद इसीलिए कि उनके वित्तीय एजेंडे में कहीं आम आदमी के लिए कोई गुंजाइश भी नहीं है।
चिदंबरम ने माना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। ऐसे में प्रत्यक्ष करों में वे किसी बड़ी छूट का तोहफा नहीं दे पाए। यदि वे ऐसा कुछ करते, तो इसके परिणाम सेहतमंद नहीं हो सकते थे। आर्थिक और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ यही कयास लगा रहे थे कि चिदंबरम का यह बजट चुनावी ज्यादा होगा। लेकिन बजट को देखकर सीधे तौर पर यह कहना मुश्किल है कि वित्तमंत्री ने पार्टी की राजनीतिक जरूरतों को ही तरजीह दी है। यह जरूर है कि उन्होंने बड़ी बारीकी से कुछ ऐसी कारीगरी दिखाई है, जिससे कि पार्टी के वोट बैंक की राजनीति को सीधे तौर पर कोई झटका न लगे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को बजट में विशेष विकास के लिए 100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, तो राजनीतिक संतुलन साधने के लिए बनारस हिंदू विश्व विद्यालय (बीएचयू) को भी इतनी ही रकम आवंटित करने की व्यवस्था है। क्योंकि चिदंबरम की पार्टी अपनी झोली में हर समुदाय का वोट बैंक देखना चाहती है। सीपीआई के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अनजान का मानना है कि कांग्रेस की धर्म निरपेक्षता में राजनीतिक स्वांग ज्यादा होता है। उसकी चिंता सही मायने में गरीब अल्पसंख्यक वर्ग के कल्याण की नहीं होती। ये लोग तो सरकारी रेवडिय़ां बांटकर वोट बैंक की चिंता में लगे रहते हैं। बजट को कांग्रेसी अक्सर वोट बैंक की राजनीति का हथियार ही बनाते हैं। इस बार भी कुछ-कुछ ऐसी ही कोशिश हुई है।
अतुल अनजान का मानना है कि वित्तमंत्री ने किसानों और समाज के कमजोर वर्गों के साथ धोखा ही किया है। ऐसे कोई प्रावधान नहीं किए गए जिससे कि कृषि की अर्थ व्यवस्था को और मजबूती मिलती। सच तो यह है कि वित्त मंत्री चिदंबरम की अर्थिक नीतियों से विदेशी पूंजी वाले मस्त हो रहे हैं। जबकि देश की कामगार जनता पस्त हो रही है। हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चिंता आम आदमी की आर्थिक सेहत पर नहीं रहती। उन्हें तो यही चिंता सताती है कि ऐसा सब कुछ कर दो, जिससे कि विदेशी निवेशक खुश हो जाएं। भले ही ये लोग देश का कितना माल यहां से उड़ा कर ले जाएं? यह शायद उनकी चिंता का विषय नहीं है। यदि यही अर्थिक नीतियां लंबे समय तक चलीं, तो देश को बहुत बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह कहते हैं कि आज के दौर में वामदालों को भी अपना घिसापिटा आर्थिक दर्शन बदल लेना चाहिए। क्योंकि दुनिया तेजी से बदल रही है। ऐसे में हम चार दशक पहले वाले आर्थिक सोच के साथ जकड़े नहीं रह सकते। वित्तमंत्री ने टैक्सों के जरिए करदाताओं से 18 हजार करोड़ का अतिरिक्त कर वसूलने का प्रावधान किया है। उनका दावा तो यही है कि ये प्रावधान बहुत सोच समझकर किए गए हैं। इससे किसी वर्ग को ज्यादा तकलीफ नहीं होनी चाहिए। बजट में स्वास्थ्य बीमा का दायरा बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इस प्रावधान से यह जताने की कोशिश हुई है कि सरकार हेल्थ सेक्टर के विकास को लेकर खास पहल कर रही है। इससे लोगों के जीवन स्तर में भी बेहतरी जरूर आएगी।
घर बनाने के लिए अब 25 लाख की रकम का कर्ज लेने वालों को भी कर में रियायत का प्रावधान है। उन्हें इस मद में अब एक लाख रुपए तक की छूट मिल जाएगी। खाद्य सुरक्षा गारंटी विधेयक को संसद के इसी सत्र में पारित कराने की तैयारी है। क्योंकि इसकी पहल खास तौर पर कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने की है। पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि ‘मनरेगा’ की तरह खाद्य सुरक्षा गारंटी कानून अगले चुनाव में यूपीए के लिए राजनीतिक वरदान बन सकता है। क्योंकि 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ‘मनरेगा’ को खूब भुना लिया था। खाद्य
सुरक्षा विधेयक अभी लंबित है, लेकिन वित्तमंत्री ने इस मद के लिए 10 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया है। इसके जरिए खास राजनीतिक संदेश देने की कोशिश जरूर दिखाई पड़ती है। पिछले वर्ष 16 दिसंबर को दिल्ली में एक पैरामेडिकल छात्रा के साथ दुष्कर्म की वारदात हुई थी। इसको लेकर पूरे देश में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। यहां तक कि महिलाओं से जुड़े अपराधों पर और ज्यादा सख्त सजा का कानूनी प्रावधान किया गया है। नए कानून के लिए इसी सत्र में एक विधेयक भी पारित होने जा रहा है।
दिल्ली में हुए बहुचर्चित गैंगरेप की पीडि़ता का नाम कई मीडिया संस्थानों ने ‘निर्भया’ दिया था। क्योंकि इस लड़की ने बलात्कारियों से जूझने में अभूतपूर्व बहादुरी का परिचय दिया था। वित्तमंत्री ने महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया है। इसके लिए 1 हजार करोड़ रुपए से ‘निर्भया फंड’ बनेगा। जाहिर है कि इस प्रावधान से आधी आबादी को खुश करने की कोशिश हुई है। हालांकि, कोई भी वित्तमंत्री के इस कदम पर शायद ही ऊं गली उठा पाए? विपक्ष ने यही कहा है कि सरकार ने अभी तय ही नहीं किया है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या-क्या कदम उठाने हैं, ऐसे में बजट के प्रावधान से ही क्या हो जाएगा?
तमाम विकास परियोजनाओं के लिए सरकार को जमीन अधिग्रहित करनी होती है। कई सालों से यह आवाज उठती आ रही है कि किसानों से मुआवजे की राशि पर टैक्स न वसूला जाए। इस बार चिदंबरम ने साफ तौर पर प्रावधान किया है कि खेती की जमीन खरीदने और बेचने पार कोई टैक्स नहीं रहेगा। वित्तमंत्री ने इस बार कुछ नायाब कदम भी उठाए हैं। अब सरकार ‘महिला बैंक’ खोलेगी, जिसमें सारा स्टाफ महिलाओं का होगा। अक्टूबर में पहला महिला बैंक खोलने का लक्ष्य भी रखा गया है। अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कोशिश है कि अल्पसंख्यकों का एक मुश्त वोट बैंक उसकी ही झोली में आ जाए। शायद इसी कोशिश में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए जोरशोर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। इस बार बजट में अल्पसंख्यक विकास के लिए 3511 करोड़ रुपए की भारी रकम का प्रावधान किया गया है। अल्पसंख्यकों के विकास के लिए चिदंबरम ने इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था की है, कायदे से इस प्रावधान से मुलायम सिंह जैसे नेताओं को खुश होना चाहिए। क्योंकि ये भी अल्पसंख्यकों के बड़े हिमायती हैं।
लेकिन राजनीति की लकीर हमेशा सीधी नहीं चलती। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह ने कह दिया है कि यह बजट किसान और गरीब विरोधी है। अल्पसंख्यकों के विकास के लिए कांग्रेस की नीतियों में ईमानदारी ही नहीं है, तो बजट देने से ही क्या हो जाएगा? कांग्रेस के नेता यही ढिंढोरा पीटने में लगे हैं कि वैश्विक मंदी के दौर में भला इससे बढिय़ा बजट और क्या होता? वित्तमंत्री ने कहा भी है कि इस दौर में सकल विकास दर में कुछ गिरावट जरूर है, लेकिन इससे वे चिंतित नहीं हैं। क्योंकि जीडीपी के मामले में चीन और इंडोनेशिया ही हमसे कुछ आगे हैं। ऐसे में अपनी इसी विकास दर पर खुश होने के हमारे पास पर्याप्त कारण हैं। अच्छा यही रहेगा कि आर्थिक विकास के मामले में संकीर्ण दलगत राजनीति से ज्यादा से ज्यादा परहेज हो। शायद यही देश की आर्थिक सेहत के लिए ठीक है।