सत्यजीत कुमार
पिटनी बहु, पुराने समय मे एक मोहल्ले में एक पति पत्नी रहते थे , पति अत्यंत क्रोधी स्वभाव का था। पत्नी को छोटे छोटे से कारण से या बिना कारण भी पीट देता था, पत्नी जोर जोर से चिल्लाती थी, अरे मैय्या बचाओ, दइया बचाओ, पूरा मोहल्ला सुनता था, जब पति काम पर चला जाता था तो पत्नी तैयार हो कर खूब श्रृंगार करके सज धज कर मोहल्ले की महिलाओं को साथ ले कर गाती बजाती थी।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी
सरकार का भी अभी वही हाल है । पुलिसवाले रोज पिट रहें हैं, उन पर चाकू गोली से आक्रमण होता है, पुलिस वाले घायल होते हैं, मारे भी जातें हैं, पहले सेना भी जम्मू कश्मीर में रोज पत्थर खाती थी, पिटती थी, डाकटर स्वास्थ्य कर्मी पीटते हैं, उन पर, पुलिस पर कोरोना आतँकवादी थूक कर उनको भी संक्रमित करने की कोशिश करते हैं, गंदगी फैलाते हैं, और सरकार कड़ी कार्यवाही करने की जगह रोज आकर जनता का ज्ञानवर्धन करती हैं, देखो जमातियों ने ऐसा किया वैसा किया, पुलिस आकर बताती है, वो कैसे पीटी गयी, सरकारी कर्मचारी बताते हैं वो कितने प्रताड़ित हो रहें हैं, तो सरकार क्या कर रही है ?
सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में क्यों नही शिकायत करती, या अमेरिका से मदद क्यों नही मांगती, सवाल ये है कि लाचार पुलिस नागरिकों की सुरक्षा कैसे कर पायेगी, बहुसंख्यक हिन्दू तो वैसे भी अहिंसक है वो तो बेमौत मारा जायेगा, जहां प्रशासन, पुलिस, न्यायालय, सरकार रोज अपनी बेचारगी, का रोना रोये, वहां आम नागरिक किससे सुरक्षा मांगें या उसकी अपेक्षा करे, आज अगर कोरोना के हालात में कोई भी कड़े से कड़े निर्णय को लेकर उसे लागू करे तो कहीं विरोध की सम्भावना नही, वैश्विक स्तर भी समर्थन ही मिलेगा, जो कोरोना आंतकवादी मनुष्यों को संक्रमित कर उनकी कोरोना हत्या करना चाहते हैं, उनका इलाज एक सामान्य रोगी की तरह क्यों, क्यों न उन पर आतंक विरोधी कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत उचित कार्यवाही की जाये, व ऐसे कोरोना आंतकवादियों को मनुष्यों की आबादी से कही दूर रख कर उनका इलाज किया जाये, जिससे ये मनुष्य समाज को संक्रमित करने की अपनी कुचेष्टा में सफल न हो । कोरोना से या किसी भी प्रकार से मृत्यु का भय नही, पर इन आतंकियों की साजिश का शिकार बन क्यों मरें,
सरकार को चाहिये, समय रहते उचित कार्यवाही करें, अन्यथा बहुत बड़े पैमाने पर अव्यवस्था फैल सकती है, जिसे संभालना किसी भी व्यवस्था के लिये कठिन हो सकता है।
मुख्य संपादक, उगता भारत