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मनुष्य को सभी खिला देंगे,बेजुबान पशुओं को कौन खिलाएगा?

मनुष्य में फैल सकता है कोरोना, अभी पशुओं में नहीं
भूखे पशुओं की आखिर जिंदगी कैसे कटेगी ?
जैव विविधता में मनुष्य के साथ पशुओं का अद्भुत सामंजस्य है
– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
कौन सुनेगा, किसको सुनाएं, इसलिए चुप रहते हैं….इस गीत के बोल आज देश-दुनिया के पशुओं पर पूरी तरह से सटिक बैठता है। जुबान वाले लोग अपने घरों में लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही घरों में भोजन का भंडारण कर लिए, ताकि बंद के दौरान अपने तथा अपने घर वालों की भूख मिटा सकें। मगर ये बिना जुबान वाले पशुओं के बारे में किसी ने एक बार भी नहीं सोची, कि इनकी भूख आखिर कैसे मिटेगी। जब तक पशु दूध दे तो घरों की शोभा होती है दूध देना बंद कर दिया तो सड़कों पर छोड़ देते हैं। आवारा पशु सड़कों पर अपनी भूख मिटाने के लिए यूं ही विचरण करते रहते हैं, इन्हें कोई खिलाने वाला नहीं है। भूख से बिलबिलाते पशुओं की आवाज कोई बनने को तैयार नहीं है। इंसानी दुनिया में पशुओं की उपयोगिता के अनुसार ही पूछ होती है, इस वक्त के हालात से स्पष्ट हो गया है। इन पशुओं के चारे और देखभाल के लिए न तो सरकार आगे आ रही है और न ही कोई गैर सरकारी संगठन। अब ऐसे में भूख से पशुओं की मौत होने लगेगी तो किसी अन्य बीमारी के फैलने की आशंका प्रबल हो जाएगी। जहां कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टेंशिंग की बात की जा रही है वहीं पशुओं के कहीं मृत अवस्था में उठाने और हटाने के लिए सोशल डिस्टेंशिंग के सारे नियम ताख पर चले जाएंगे।
पशुओं की मदद के लिए भी बढ़े हाथः
आदिकाल से इंसान के सहयोगी के रुप में जाने जाते हैं पशु। कभी इन्हीं पशुओं की सवारी हुआ करती थी, जिसके माध्यम से सारे कार्यों को अंजाम तक पहुंचाया जाता था। धरती पर मां के बाद मासूम के लिए गौ माता ही हैं जो सहारा बनती हैं। आज उस गौ माता को भी भूख से बिलबिलाते सड़कों पर देख सकते हैं। अगर सही मायनों में इन अनबोलता पशुओं के मर्म को आप समझते हैं, इनकी उपयोगिता और इनका आपके प्रति सहयोग समझ में आता है तो इनकी भूख को मिटाने के लिए भी हमें आगे आना होगा। वर्ना घरों में रहने वाले मासूम इनके अमृत समान दूध को पाने से वंचित रह जाएंगे। ये मुसीबत की घड़ी है, इसमें जिस प्रकार एक दूसरे के लिए इंसान खड़ा है उसी प्रकार इनके लिए हमें भी खड़ा रहना होगा, वर्ना अनर्थ हो जाएगा।

भूख से सड़कों पर बिलबिला रहे हैं पशुः
संकट की घड़ी है। इससे सभी वाकिफ हैं। मगर इस संकट की घड़ी में सभी का किसी न किसी रुप में पेट भर रहा है। परंतु शहरी इलाकों में सड़कों पर घूमने वाले पशुओं की स्थिति बहुत नाजूक हो गई है। कल तक चौक चौराहों पर लगी दुकानों, ठेले से फेंके गए लोगों के सामानों से इनके पेट भर जाया करते थे। पर! आज स्थिति ये आ गई है कि दुकान बंद हो गए हैं। एक-दो दिन की बात हो तो काम चल भी जाए। यहां तो 21 दिनों के लिए लॉकडाउन हो गया है, सुनी सड़कों पर इंसान तक नहीं दिख रहा है तो इन बेजुबानों की आखिर भूख कैसे मिटेगी।

चारे की व्यवस्था भी करवा दीजिए सरकारः
जिस प्रकार देश के कोने-कोने में आम लोगों के लिए सरकार व्यवस्था कर रही है। उसी प्रकार बेजुबानों के लिए भी चारे की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि इन बेजुबानों की भूख मिट सके। इसके अलावे सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा कुतों की स्थिति तो यहां तक हो गई है कि सड़कों पर भूख से बिलबिलाते कुत्ते राहगीरों को अपना शिकार बना रहे हैं। अब इंसान को रैबिज के टीके के लिए दौड़ लगानी पड़ रही है। आपको बता दूं कि एंटी रैबिज की भी देश में बहुत कमी है। पर, इस बात को कोई समझता क्यों नहीं। आखिर इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार तत्पर नहीं हुई तो कई समस्याओं का आगमन हो सकता है।
देश संक्रमणकाल से गुजर रहा है। इसमें सबका सहयोग जरुरी है। शिलर ने कहा था कि जियो और जीने दो। इसका पालन भी इंसानी दुनिया में बहुत हद तक होता है। मगर इंसान अपने निवाले से एक-दो निवाले बेजुबानों के लिए भी निकाल दें तो शायद बेजुबानों की भी भूख मिट जाएगी। बेजुबान अपनी बिलबिलाहट को दर्शाने के लिए कई असमान्य तरीके का मनुष्य के साथ व्यवहार करने लगे हैं। इस परिस्थिति से सभी आहत भी हो रहे हैं। मगर इन पशुओं की स्थिति को समझते हुए उनके लिए कारगर कदम क्यों नहीं उठायी जाती है। सरकार को भी इनके लिए न्यायोचित कदम उठाया जाना चाहिए ताकि ये भी जिंदगी को जी सकें और किसी मनुष्य को किसी प्रकार हानि न पहुंचा सकें और जैव विविधता में मनुष्य के साथ पशुओं का अद्भुत सामंजस्य बना रह सके।

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