चांदनी चौक कांप उठा-1
शांता कुमार
23 दिसंबर, 1912 का दिन था। दिल्ली में विशेष चहल पहल थी। आज भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग बड़े समारोह के साथ दिल्ली में प्रवेश करने वाले थे। उनके भव्य स्वागत के लिए दिल्ली को नई दुल्हन की तरह सजाया गया था। इस जुलूस में सैकड़ों घोड़े, हाथी, तोपें, बंदूकें व लाखों नर नारी सम्मिलित थे। दिल्ली के इतिहास में यह समारोह अभूतपूर्व था। वास्तव में अंग्रेज सरकार इस प्रदर्शन से अपनी शक्ति की प्रबलता दिखाना चाहती थी और यह बताना चाहती थी कि इतने बड़े शक्तिशाली साम्राज्य को हटाने की बात सोचना भी मूर्खता है। जिसके राज्य में सूर्य कभी अस्त नही होता, उसके प्रबल सामथ्र्य के प्रत्यक्ष दर्शन करके दिल्लीवासियों को ऐसा लग रहा था कि ब्रिटिश राज्य को भारत से कोई शक्ति समाप्त नही कर सकती। जनता के मन में इस प्रकार की धाक बिठाना ही इस समारोह का उद्देश्य था। अपने अपार ऐश्वर्य व शक्ति के मद में मस्त, मीलों लंबा जुलूस चला जा रहा था। अंग्रेजी साम्राज्य के प्रतिनिधि लॉर्ड हार्डिंग एक सजे हुए भव्य हाथी पर विराजमान थे।
भारत के कुछ देशभक्त नवयुवकों ने इस भव्य आडंबर को अपना अपमान समझा। भारत मां के हाथों व पैरों में गुलामी की बेडिय़ां डालकर उसके वक्षस्थल पर अंग्रेजी साम्राज्य का यह विकट नृत्य उनसे देखा न गया। उन्होंने उसे चुनौती देने का विचार किया। जुलूस लालकिला की ओर बढ़ रहा था। लॉर्ड हार्डिंग गर्वोन्नत मस्तक से चहुं ओर अपने साम्राज्य के क्रीत दासों को देख फूला न समा रहा था। इतने में किसी अज्ञात दिशा से एक अति भयंकर बम वायसराय के पास आकर फट गया। वायसराय पर निशाना कुछ गलत लगा। उसके सिर के पीछे कुछ चोट आई, पर वह बेहोश हो गया। उसके पीछे बैठा हुआ अंगरक्षक उसी समय बग्घी से गिरकर मर गया। वायसराय मरा नहीं, पर जुलूस के उद्देश्य पर पानी फिर गया। चारों ओर भगदड़ गच गयी। भागते हुए कितने ही लोगों को चोटें आ गयीं। दिल्ली के राजधानी बनाने पर वायसराय के प्रवेश के पहले ही दिन बम का विस्फोट यह अंग्रेजी साम्राज्य के लिए अपशकुन था।
दूसरे दिन समाचार पत्रों ने मोटे अक्षरों में इस घटना को लिखा। सारे देश में बड़े विस्मय से इस समाचार को पढ़ा गया। दिल्ली ही नही भारत भर की जनता ने यह अनुभव किया कि भारत मां की गोद अभी वीरों से बिलकुल खाली नही हुई है। अंग्रेजी राजय के विशिाल वैभव व अपार शक्ति के इस प्रदर्शन के बाद भी भारत की आत्मा उसकी आधीनता स्वीकार नही करती। वह उसका विरोध करती है। खुलेआम युद्घ करना उसके लिए संभव नही, इसलिए विरोध करने के लिए बम का विस्फोट किया गया। जहां उस जुलूस का उद्देश्य भारतवासियों के मनों में आतंक फेेलाने का था, वहां इस बम ने मानो यह घोषणा भी की, तुम्हारे इस सारे आतंक के बाद भी स्वतंत्रता का संग्राम चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा।
पुलिस ने सारे चांदनी चौक को घेर लिया। लोगों को पकड़कर पूछताछ होने लगी। आसपास के घरों की तलाशियां ली जाने लगीं। जहां भी जरा सा संदेह होता पुलिस खोज करती। कितना ही सिर पटकने के बाद भी पुलिस निराश रही। वास्तव में इस बम को फेंकने वाले हाथ व योजना बनाने वाला मस्तिष्क बड़ा कुशल था।
उन्हीं दिनों लिबर्टी नाम से कुछ परचे बांटे गये थे। जिनको बाद में पुलिस ने मास्टर अमीरचंद द्वारा लिखा हुआ बताया। एक परचे में लिखा था, हमारी धार्मिक पुस्तकों-गीता, वेद तथा कुरान की यही आज्ञा है कि देश का शत्रु किसी भी मत का संप्रदाय का हो, उसे नष्ट कर देना चाहिए। दिल्ली में सितंबर में जो घटना हुई उससे सूचित होता है कि भारतवर्ष के बुरे दिन अब खत्म होने को हैं और ईश्वर ने अपने वरद हस्तों में भारतवर्ष को ले लिया है।
लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस से पूर्व 12 दिसंबर को दिल्ली में जार्ज पंचम पधार चुके थे। बात यह थी कि 1920 में बादशाह एडवर्ड के मरने के बाद जार्ज पंचम सिहांसन पर बैठे। उस समय भारत में बंग-भंग के कारण गहरा असंतोष था। गत आठ-नौ वर्ष से बंगाल एक ज्वालामुखी की भांति जल रहा था। चारों ओर अंग्रेजों के विरूद्घ घृणा का वातावरण था। अंग्रेजों ने जार्ज पंचम को भारत लाकर इस अवस्था को ठीक करने का विचार किया। दिल्ली में 12 दिसंबर को एक अत्यंत वैभवशाली दरबार हुआ। सरकार इस बहाने से भारत में अंग्रेज भक्ति का वातावरण बनाना चाहती थी। इन्हीं दिनों सरकारी राजधानी के लिए नई दिल्ली की नींव डाली गयी। इस अवसर पर जार्ज पंचम से कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाने तथा बंगाल को फिर से एक करने की घोषणा करवाई गयी। उद्देश्य यह था कि इन दोनों घोषणाओं को बादशाह की उदारता समझकर लोगों में अंग्रेजी राज्य के प्रति सदभावना व सहानुभूति का वातावरण बने।
वास्तविकता यह थी कि बंग भंग अंग्रेजों को बड़ा महंगा पड़ा था। इसलिए वे इसे वापस लेना चाहते थे। किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा थी। बंगाल जैसे प्रांत में जहां सदा बम विस्फोट होते रहते थे, वे अखिल भारतीय राजधानी नही रखना चाहते थे। उन दिनों विश्वयुद्घ के बादल मंडरा रहे थे। इसलिए भी राजधानी को समुद्र से पर्याप्त दूर रखने की आवश्यकता का अनुभव किया गया। कहने को तो सम्राट ने यह कहा थ कि वे पांडवकालीन इंद्रप्रस्थ के वैभव को फिर से प्रस्थापित करना चाहते हैं। परंतु वास्तविकता कुछ और ही थी।
अभी दिल्ली पर गिराये गये बम का पुलिस को कोई पता न चला था कि 13 मई 1913 को लारेंस गार्डन में एकत्रित गोरों पर बम गिराया गया। एक भारतीय चपरासी के अतिरिक्त और कोई न मरा। इसके बाद मैमन सिंह, भद्रेश्वर और मौलवी बाजार में भी बम विस्फोट हुए। परंतु यह सब कुछ इतनी कुशलता से हुआ कि लाख सिर पटकने के बाद भी पुलिस को कुछ पता न चला। वायसराय पर बम गिरे पूरा एक वर्ष बीत चुका था, पर इस संबंध में पुलिस एक भी व्यक्ति को न पकड़ सकी थी। अपनी इस असफलता पर सरकार बड़ी झुंझलाई, पर बना कुछ नहीं।
वास्तव में पंजाब कई दिनों से एक क्रांति के लिए तैयार हो रहा थ। सरकार को भी इसकी कुछ गंध आ गयी थी। 1912 में जब माईकिल ओ. ड्वायर पंजाब का गवर्नर होकर आया तो उस समय उसे बताया गया था कि पंजाब में एक ज्वालामुखी सुलग रहा है जो कभी फूट सकता है। लाला हरदयाल जब विदेशों से लौटे तो उन्होंने दिल्ली में गुप्त रूप से क्रांति का प्रचार आरंभ किया। उन्होंने ही मास्टर अमीरचंद व अवधबिहारी जैसे कुछ लोगों को क्रांति की दीक्षा दी। हरदयाल के फिर विदेश लौट जाने के बाद दिल्ली के कार्य का भार मास्टर अमीरचंद संभालते रहे। उन दिनों मास्टर जी मिशन स्कूल में अध्यापक थे। बाद में रासबिहारी बोस जंगलात के महकम में नौकर होकर देहरादून आए तो उत्तर भारत का कार्य उनकी देख रेख होता रहा। लाला हनुमंत सहाय ने दिल्ली के किनारी बाजार में एक राष्ट्रीय स्कूल खोल रखा था ताकि उससे क्रांति के कार्य के लिए कुछ युवक मिल सकें। मास्टर अमीरचंद्र अवधबिहारी व गनेशीलाल उसी स्कूल में पढ़ाने लगे थे। भारत बालमुकुंद व बलराज थी इनके संपर्क में आ चुके थे। इस प्रकार पंजाब में भीतर ही भीतर एक आग सुलग रही थी जिसकी लपटें बम विस्फोट के रूप में प्रज्वलित हो उठीं।
किसी सूत्र द्वारा सरकार को संदेह हुआ कि इन सब घटनाओं के पीछे रासबिहारी बोस का हाथ है। उसी संदेह के आधार पर पुलिस उनके राजा बाजार वाले मकान की तलाशी लेने के लिए गई। रासबिहारी तलाशी से पूर्व ही वहां से चंपत हो चुके थे। तलाशी में पुलिस को कुछ बम तथा कुछ क्रांतिकारी परचे प्राप्त हुए। मास्टर अमीरचंद के साथ हुआ पत्र व्यवहार भी उनके हाथ लगा।
क्रमश: