जन्मदिन : इंदिरा गांधी ने जनरल मानेक्शा से पूछा था कि आप मेरा तख्ता पलटना चाहते हैं
भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल मानेकशॉ का 3अप्रैल जन्मदिन है. उनकी बहादुरी और सेंस ऑफ ह्यूमर के बहुत से किस्से मशहूर हैं. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भी उनके एक नहीं कई किस्से हैं. जिन्हें कई किताबों में लिखा गया.
भारतीय सेना के दमदार और मजबूत जनरल सैम मानेकशॉ (sam manekshaw) का 03 अप्रैल को जन्मदिनहोता है. उनका पूरा नाम सैम होरमूज़जी फ़्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था लेकिन शायद ही कभी उनके इस नाम से पुकारा गया. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनके कई किस्से हैं, इसी में एक ये भी है कि वर्ष 1971 के युद्ध के बाद इंदिरा ने उनसे पूछा था कि क्या आप मेरा तख्त पलटना चाहते हैं. इस पर जनरल मानेकशॉ ने क्या कहा था.
वह भारतीय सेना के ऐसे जनरल रहे, जो अपनी बहादुरी और जबरदस्त पर्सनालिटी को लेकर हमेशा से चर्चित रहे हैं.
1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ी
वर्ष 1971 के युद्ध में जब भारत ने सैन्य ताकत के बूते पर पाकिस्तान की कमर तोड़ दी थी, तब इंदिरा के साथ उस युद्ध के बड़े हीरो आर्मी चीफ सैम मानेकशॉ थे, जिन्होंने रणनीति रचने से लेकर सेना की अगुवाई की थी. मानेकशॉ के नेतृत्व ही था जिसकी बदौलत महज 14 दिनों में पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए थे.
उन्हें सात गोलियां लगीं तब भी बच गए
सैम मानेकशॉ की बायोग्राफी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह की किताब के मुताबिक दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर वो जापानी सैनिकों से लोहा ले रहे थे. युद्ध के दौरान एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन से 7 गोलियां उनके शरीर में उतार दी. इन गोलियों ने उनके आंतों, जिगर और गुर्दे को छलनी कर दिया था.
युद्ध के दौरान एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन से 7 गोलियां उनके शरीर में उतार दी. इन गोलियों ने उनके आंतों, जिगर और गुर्दे को छलनी कर दिया था. तब भी वो अपने विलपॉवर के कारण अस्पताल में इलाज कराकर बचकर निकले
बावजूद इसके वो गोलियां भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाईं. सैम की हालत देखकर डॉक्टरों को भी यकीन नहीं था कि वो बच जाएंगे. डॉक्टर ने शरीर में घुसी गोलियों को निकाला और उनकी आंत का क्षतिग्रस्त हिस्सा हटा दिया. ऑपरेशन की बदौलत सैम बच गए. बाद में उन्हें मांडले ले जाया गया, जहां से फिर रंगून और फिर वापस भारत लाया गया.
आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकतीं
1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण ने सीमा क्षेत्रों का दौरा किया था. नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी भी उनके साथ थीं.
सैम के एडीसी ब्रिगेडियर बहराम पंताखी अपनी किताब सैम मानेकशॉ- द मैन एंड हिज़ टाइम्स में लिखते हैं, “सैम ने इंदिरा गाँधी से कहा था कि आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकतीं, क्योंकि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है. इंदिरा को तब यह बात बुरी जरूर लगी लेकिन रिश्ते इससे ख़राब नहीं हुए.”
तब इंदिरा गांधी को नाराज कर दिया था
वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच दिसंबर में लड़ाई छिड़ी थी. दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्च में ही पाकिस्तान पर चढ़ाई करना चाहती थीं. सैम ने ऐसा करने से मना कर दिया, क्योंकि भारतीय सेना तैयार नहीं थी. इंदिरा गांधी नाराज भी हुईं.
तब मानेकशॉ ने उनसे पूछा, “आप युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं. उन्होंने कहा, हां.” इस पर मानेकशॉ ने कहा, मुझे छह महीने का समय दीजिए. मैं गारंटी देता हूं कि जीत आपकी होगी.
क्या आप मेरा तख्ता पलटने वाले हैं
वर्ष 1971 के बाद ये किस्सा भी काफी चर्चित रहा था कैसे 1971 की लड़ाई के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें पूछा कि ऐसी चर्चा है कि आप मेरा तख़्ता पलटने वाले हैं, सैम मानेकशॉ ने अपने जिन्दादिल अंदाज़ में कहा, ‘क्या आपको नहीं लगता कि मैं आपका सही उत्तराधिकारी साबित हो सकता हूं. क्योंकि आप ही की तरह मेरी भी नाक लंबी है.’
फिर सैम ने कहा, ‘लेकिन मैं अपनी नाक किसी के मामले में नहीं डालता. सियासत से मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं और यही अपेक्षा मैं आप से भी रखता हूं.
देश के पहले फील्ड मार्शल
वो भारतीय सेना के सबसे ज्यादा चर्चित और कुशल सैनिक कमांडर रहे हैं. उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. वो देश के पहले ‘फ़ील्ड मार्शल’ थे. अपने 40 साल के सैनिक जीवन में उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के अलावा चीन और पाकिस्तान के साथ हुए तीनों युद्धों में भी भाग लिया. उनके दोस्त उन्हें प्यार से ‘सैम बहादुर’ कहकर बुलाते थे.
पारसी परिवार में जन्म
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ. उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आ गया था. मानेकशॉ ने प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में की. बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए. वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए 40 छात्रों में एक थे.
दोस्ती प्यार में बदली और शादी हुई
वहां से वे कमीशन मिलने के बाद वह भारतीय सेना में भर्ती हुए. 1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए सैम मानेकशॉ की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई. दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को विवाह में बदल गई. 1969 को उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया. 1973 में सैम मानेकशॉ को फ़ील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया. 15 जनवरी, 1973 में मानेकशॉ सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए.
वर्ष 2008 में 94 साल में निधन हुआ
वृद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बीमारी हो गई थी वो कोमा में चले गए. उनकी मृत्यु 94 वर्ष की उम्र वेलिंगटन, तमिलनाडु के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में हुई. रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक 27 जून 2008 को रात 12:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.