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घर में घुसकर रावण मारा।
साहस अपराजेय तुम्हारा।
मर्यादा में राम सरीखा ।
हमने सुना न कोई दीखा।
राम न होते तो क्या होता।
न्याय रात दिन आंसू बोता ।
राम राज्य का भाईचारा।
उदाहरण है जग में न्यारा।
दीन हीन को गले लगाया।
अनुपम कौशल्या का जाया।
ऋषि मुनियों का मान बढ़ाया
भू पर ऐसा वीर न आया।
प्रण माना प्राणों से प्यारा।
हार गया तुम से ध्रुव तारा।
कर सोहे कोदण्ड सुहाना।
पापी कर न सके मनमाना।
जब तक है सरयू में पानी।
खत्म न होगी राम कहानी।
वामांगी सोहे मां सीता।
राम रहे संयम की गीता।
पूरी धरती रही अभीता।
राम लखन सबके मनमीता।
मन मन्दिर में राम बसाओ।
थोड़े बहुत राम बन जाओ।
अपना पौरुष ही मन भाया।
संकट में घर याद न आया।
रावण से पापी को धोया।
भू पर बीज पुण्य का बोया।
जो भी नाम राम का लेगा।
दुख में सुख बल विक्रम देगा।
राम न रहे कभी प्रणभंगी।
सदा सहायक थे बजरंगी।
केवल उनके गीत न गाओ।
न्यूनाधिक रामत्व दिखाओ।
बेशक नहीं धाम को मानो।
लेकिन कहा राम का मानो।
सभी “मनीषी” निज मन खोलो।
ऊंचे स्वर में जय जय बोलो।
प्रथम न छेडो़ फिर मत छोड़ो।
अश्व मेध का रथ मत मोड़ो।
संकट तो आते जाते हैं
राह राम भी दिखलाते हैं।
पुरखों से बस आशिष मांगो।
अपने बल पर सागर लांघो।।
राम जन्म की बांट बधाई।
हारेगी अन्ततः बुराई।
वाल्मीकि तुलसी पढ़ जाओ।
फिर से वही मूल्य गढ़ जाओ।
कर संग्राम न राम बचेंगे
कैसे तीरथ धाम बचेंगे।
आई नव रोगों की आंधी।
मिल जुल कर मर्यादा बांधी।
-प्रोफेसर सारस्वत मोहन ‘मनीषी’
अन्तर्राष्ट्रीय कवि