कोरोना महामारी पर विजय सहित वेदों व धर्म की रक्षा पर विचार
ओ३म्
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हमारा देश ही नहीं अपितु विश्व के अधिकांश देश इस समय कोरोना वायरस के संक्रमण के संकट से जूझ रहे हैं। हमारे देश का नेतृत्व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के सुयोग्य हाथों में है। देश सुरक्षित है और कोरोना के संक्रमण से हमें कम हानि हो रही है। यह केवल हमारा मानना नहीं है अपितु यह अनेक विद्वानों व विशेषज्ञों का अनुभव है जो यह बातें टीवी चैनलों पर भी बताते हैं। कोरोना से इस समय हमारे देश के एक हजार से अधिक लोग संक्रमित हैं। यह छूत का रोग है। यह किसी संक्रमित रोगी के सम्पर्क में आने अर्थात् उसे स्पर्श करने व मिलने से होता है। सरकार देश के संक्रमित लोगों की पहचान कर रही है तथा उन्हें अलग-थलग रखकर उनका यथासम्भव उपचार कर रही है। यद्यपि इस रोग का उपचार अभी तक खोजा नहीं जा सका है तथापि हमारे देश में बहुत से रोगी इस जानलेवा संक्रमण से स्वस्थ भी हुए हैं। कुछ लोगों ने सरकार के प्रयासों में सहयोग नहीं किया जिससे इसके कुछ विस्तार की सम्भावना है। पहले दिल्ली आदि के बहुत से श्रमिक अपने परिवारों के साथ अपने-अपने गृह प्रदेश को जाने के लिये पैदल ही निकल गये थे जिससे इस रोग के प्रसार का भयावह खतरा दिखाई दे रहा था। कल व आज का समाचार है कि दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह के समीप के एक इस्लामिक सेन्टर पर दो-तीन हजार लोग एकत्र हुए। इनकी इस समय टीवी चैनलों पर चर्चा चल रही हैं। इन लोगों में संक्रमण की जांच हो रही है। अनेक लोग संक्रमित पाये गये हैं। इसमें 250 से अधिक लोग विदेशी हैं जो यहां अपने मत का प्रचार करने आदि कुछ उद्देश्यों से आये थे। ऐसा भी बताया जा रहा है कि इस संकट के समय लोगों को यहां दिल्ली में एकत्र करने में सरकार के नियमों व निर्देशों की अवहेलना की गई है। सरकारी आदेश से कुछ लोगों के विरुद्ध एफ.आई.आर. की जा सकती है। इस प्रकार के कार्य सरकार को इस रोग को दूर करने में बाधक बनने सहित इस रोग के अनेकानेक लोगों में विस्तार के द्योतक हैं। ऐसे कार्य देश के हितों के विरुद्ध हैं। सभी देशभक्त लोगों को पूरी तरह से देश की केन्द्र व राज्य सरकारों को इस रोग को समाप्त करने में सहयोग देना चाहिये जिससे जानमाल की कम से कम हानि हो तथा देश की अर्थव्यवस्था भी नष्ट होने से बच जाये। हम इस रोग पर विजय प्राप्त करने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों की सराहना एवं प्रशंसा करते हैं।
कोरोना वायरस व रोग जनवरी, 2020 के बाद देश में आया है। इससे पूर्व भी देश में अनेक समस्यायें थी। वह समस्यायें कोरोना रोग ने दबा दी हैं। उनकी चर्चा होना ही बन्द हो गया है। हम समझते हैं कि हमें धरातल की सच्चाईयों को दृष्टि से ओझल नहीं करना चाहिये। हमें विचार करना चाहिये कि क्या हमारा प्रिय सनातन वैदिक धर्म पूर्णतः सुरक्षित है? इसे किसी से कहीं से कोई भय व खतरा तो नहीं है? इस विषय पर जब विचार करते हैं तो हमें लगता है कि 12 शताब्दी पूर्व हमारे धर्म व संस्कृति पर जो आक्रमण किये गये थे तथा उनसे धर्म की जो क्षति हुई थी वह आज भी यथावत जारी ही नहीं है अपितु पहले से भी अधिक वीभत्स रूप में प्रवृत्त है। अनेक विधर्मी संगठित होकर हमारे धर्म के विरुद्ध अन्दरखाने साजिशें करते रहते हैं और हम लक्षणों को देखकर उन समस्याओं को दृष्टि से ओझल करते रहते हैं। हमारे बन्धुओं का अतीत में धर्मान्तरण कर उन्हें हमसे अलग किस मानसिकता के कारण किया गया था? हमें उस मानसिकता को जानना, समझना व उन प्रयासों को विफल करना है। हम उनके ग्रास क्यों बन जाते हैं इसका कारण यह है कि हम अविद्या व अन्धविश्वासों सहित कुरीतियों वा मिथ्या परम्पराओं से ग्रस्त हैं। हममें अनेक सामाजिक बुराईयां भी हैं। इसमें जन्मना जातिवाद प्रमुख है जो हमें सबसे अधिक क्षति पहुंचाता रहा है। ऋषि दयानन्द (1825-1883) ने इसे समाप्त करने का परामर्श दिया था परन्तु हमने इसे अब तक माना नहीं है। आज भी यह हानिकारक प्रथा हिन्दू व आर्यसमाज में प्रचलित है। इससे अतीत में हानियां हुई हैं, वर्तमान में भी निरन्तर हो रही हैं। हमारे विरोधी इसका लाभ अपने कुत्सित इरादों को पूरा करने के लिये करते हैं। यदि हमें हिन्दू समाज व धर्म की रक्षा करनी है तो हमें सभी अन्धविश्वासों तथा अहितकर अविद्या से युक्त परम्पराओं व प्रथाओं को बन्द करना ही होगा। हमें जन्मना जाति को समाप्त कर मनुष्य की पहचान केवल उसकी शिक्षा, चरित्र, नैतिक गुणों तथा उसके कार्यों से करनी होगी। हिन्दू व आर्य कहलाने वाले किसी व्यक्ति में किसी प्रकार का भेदभाव व पक्षपात समाप्त करना होगा। ऐसा करके ही हमारी जाति शक्ति व बल से युक्त होगी। इस स्थिति के प्राप्त होने पर ही हमारे विरोधी हमें हानि पहुंचाने के वह कार्य नहीं कर पायेंगे जो वह अतीत में करते रहें हैं व वर्तमान में भी कर रहे हैं। हम आशा करते हैं कि हमारे धर्मबन्धु वास्वविक स्थिति को समझेंगे और अपने धर्म संस्कृति की रक्षा के सभी उपाय करेंगे। हमारे सभी विद्वानों व नेतृत्व करने वाले लोगों को भी कुछ अन्तराल पर व्यक्तिगत चिन्तन सहित सामूहिक चिन्तन करते हुए धर्म व संस्कृति की रक्षा व उपायों पर विचार करते रहना चाहिये।
जब हम धर्म व संस्कृति की रक्षा पर विचार करते हैं तो यह भी आवश्यक है कि हमारे सभी बन्धुओं को अपने धर्म व संस्कृति को यथार्थस्वरूप में जानना चाहिये। हमारा धर्म 1 अरब 96 करोड़ वर्ष से अधिक पुराना है। सृष्टि की आदि में विश्व के सभी लोगों के पूर्वज अमैथुनी सृष्टि में आर्यावर्त के तिब्बत में जन्में थे। सभी का धर्म व मत ईश्वर प्रदत्त ज्ञान ‘‘वेद” था। वेद के आधार पर ही हमारे देश की राजनीति चलती थी, धर्म के सभी सिद्धान्तों का स्रोत भी वेद था तथा वेद प्रतिपादित ईश्वर, जीवात्मा एवं प्रकृति विषयक विचार व मान्यतायें ही हमारी आस्था व विश्वास के विषय थे। ईश्वर का साक्षात्कार किये हुए हमारे सहस्रों ऋषियों व विद्वानों ने वेदों की सत्यता को जाना था और उसी का प्रचार व प्रसार वह तर्क एवं युक्तियों सहित जनमानस में करते थे। जिज्ञासुओं का शंका समाधान भी किया जाता था। महाभारत काल के बाद धर्म व संस्कृति का यह प्रवाह बाधित हो गया। इसी कारण देश व विश्व के कुछ देशों में कुछ नये मतों का आविर्भाव हुआ। इन मतों की मान्तयायें वेदों के सर्वथा अनुकूल नहीं है। समीक्षा करने पर उनकी अनेक बातें अविद्यायुक्त सिद्ध होती है। ऋषि दयानन्द ने सभी मतों का तुलनात्मक अध्ययन किया था जिसे उन्होंने अपने ‘सत्यार्थप्रकाश’ ग्रन्थ में प्रस्तुत किया है। इस ग्रल्थ्र में उन्होंने तर्क, युक्ति एवं समीक्षा आदि प्रमाणों सहित मत-मतान्तरों की मान्यताओं का अविद्या से युक्त होना सिद्ध किया है। अतः सब सत्य विद्याओं का पर्याय वेद ही हमारा धर्म ग्रन्थ हो सकता है व है।
वेद की मान्यताओं एवं सिद्धान्तों को जीवन व देश की सभी व्यवस्थाओं में लागू करने से ही हमारे देश, हमारे धर्म व संस्कृति की रक्षा हो सकती है। हम इस काम में सजग नहीं है। हमें सजग होना होगा नहीं तो जो बची हुई धर्म व संस्कृति है, वह भी आने वाले समय में विलुप्त व नष्ट हो सकती है। ऋषि दयानन्द प्रणीत सत्यार्थप्रकाश ऐसा ग्रन्थ है कि यदि सभी हिन्दू व आर्य इसका अध्ययन व पाठ करें, इसकी शिक्षाओं को जानें व समझे, इसके अनुसार ही अन्धविश्वासों से सर्वथा रहित आचरण व व्यवहार करें, वैदिक विधि से ईश्वर की उपासना व देवयज्ञ अग्निहोत्र आदि करें और इसके साथ ही सब एक ईश्वर, एक धर्मग्रन्थ वेद, एक ओ३म् ध्वज, एक मनुष्य जाति, एक सिद्धान्त व मान्यतायओं पर स्थिर हो जायें तो हम अभेद्य व अजेय हो सकते हैं।
एक प्रमुख प्रश्न हमारी जाति की जनसंख्या का भी है जिसका आजादी के बाद से अनुपात अन्य आबादियों की तुलना में निरन्तर कम होता जा रहा है। इस ओर भी ध्यान दिया जाना है। सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर कानून कब बनायेगी, बना पायेगी या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन हमें सावधानी बरतनी है। इस प्रश्न पर भी हमारे नेताओं को विचार करना चाहिये। स्वामी रामदेव जी भी इस विषय में अपने विचार व्यक्त कर कह चुके हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कानून बनना चाहिये। देश के एक प्रमुख टीवी चैनल सुदर्शन न्यूज पर भी कई बार इस विषय पर चर्चा की गई है। चर्चा में विद्वानों ने स्थिति को विस्फोटक बताया है। यदि हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले 30 वर्ष बाद देश का स्वरूप बदल सकता है। अतः धर्म व संस्कृति व इसकी रक्षा के साधनों की उपेक्षा न करें और अपनी सन्ततियों के भविष्य का ध्यान रखें। यही निवेदन करने के लिये हमने यह लेख लिखा है। हम आशा करते हैं कि हमारे सभी धर्मबन्धु इस विषय पर विचार करेंगे और अपने कर्तव्य का पालन करेंगे। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत