स्वार्थ और अहंकार की लड़ाई के चलते बढ़ता आतंकवाद एक भयावह नाग के रूप में हमारे सामने उपस्थित है । आतंकवाद तभी पनपा करता है जबकि इदन्नम की परंपरा मर जाती है ,और व्यक्ति दूसरे के अधिकारों का रक्षक न होकर भक्षक बन जाया करता है । संसार के जितने भी युद्ध हुए हैं या हो रहे हैं या भविष्य में होंगे उन सबके मूल में स्वार्थ ही एक कारण रहा है और रहेगा । जब व्यक्ति ने परमाणु बम बनाया था तो परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र परमाणु शक्ति के प्रयोग को बहुत ही जिम्मेदार हाथों में देते थे , परंतु अब परिस्थितियां ऐसी बनती जा रही हैं कि परमाणु बम कब किस आतंकवादी के हाथ लग जाए और वह उसका उपयोग कहाँ कर बैठे , कुछ नहीं कहा जा सकता । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक पत्रकार के प्रश्न के उत्तर में एक बार कहा था कि उन्हें पाकिस्तान के परमाणु बमों के आतंकी हाथों में जाने की संभावना से कई बार नींद नहीं आती । क्योंकि वहां सरकार सेना और आतंकवादी मिलकर चलाते हैं ।
वायु और जल की प्रदूषित अवस्था ने मानव के मस्तिष्क में भी प्रदूषण उत्पन्न कर दिया है । ऐसे में हर विवेकशील व्यक्ति इस बात को लेकर व्याकुल है कि न जाने कब इस हंसते खेलते विश्व का अंत हो जाए ? महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज ‘ सत्यार्थ प्रकाश ‘ के तीसरे समुल्लास में लिखते हैं :– ” देखो जहां होम होता है वहां से दूर देश में स्थित पुरुष की नासिका से सुगंध का ग्रहण होता है , वैसे ही दुर्गंध का । इतने ही से समझ लो कि अग्नि में डाला गया पदार्थ सूक्ष्म होकर व फैलकर वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गंध की निवृत्ति करता है । यह अग्नि का ही सामर्थ्य है कि गृहस्थ की वायु और दुर्गंध युक्त पदार्थों को छिन्न भिन्न और हल्का करके बाहर निकालकर वायु का प्रवेश कर देता है । क्योंकि अग्नि में भेदक शक्ति विद्यमान है । ”
महर्षि जी के मत की पुष्टि करते हुए फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रोफेसर टिलवर्ट ने लिखा है :– ” जलती हुई खांड के धुए में पर्यावरण परिशोधन की बड़ी विचित्र शक्ति है । इससे क्षयरोग , बड़ी व छोटी चेचक हैजा आदि के विषाणु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।”
इसका अभिप्राय है कि विश्व के विद्वान भारत के यज्ञ की महत्ता को समझते हुए इस ओर आ रहे हैं। प्रोफेसर टिलवर्ट जैसी ही मान्यता डॉक्टर टीली की है। वह लिखते हैं — ” किशमिश , मुनक्का , मखाने इत्यादि सूखे मेवों को जलाकर हवन करने पर इससे पैदा होने वाले धुएं से सन्निपात ज्वर के कीटाणु मात्र आधे घंटे में तथा अन्य रोगों के विषाणु लगभग 2 घंटे में नष्ट हो जाते हैं । ”
इस प्रकार स्पष्ट है कि यज्ञ से वायु प्रदूषण को ठीक रखने में बड़ी भारी सफलता मिलती है। हमारे पूर्वजों ने यज्ञ का आविष्कार कर मानवता पर भारी उपकार किया था । पर आज की धर्मनिरपेक्ष सरकारों ने इस महान उपकार को विश्व में प्रचार-प्रसार करने के स्थान पर इसे अपनाने में अपमान समझा है। यदि इस याज्ञिक परंपरा को राष्ट्रीय पहचान दे दी गई होती और हमारी सरकारें इसका विश्व स्तर पर प्रचार – प्रसार करती तो आज चाहे जितना भौतिकवाद फैल गया हो इसके उपरांत भी भारत एक ऐसा देश होता जो पर्यावरण प्रदूषण से न केवल स्वयं मुक्त होता बल्कि संसार को भी मुक्त करने में अहम भूमिका निभाता । हमने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से अब तक का समय व्यर्थ ही खो दिया है ।
भारत की इस महान परंपरा को अपनाकर अमेरिका 9 सितंबर 1972 से मैरीलैंड बाल्टीमोर में अखंड यज्ञ कर रहा है । जिस स्थान पर यह यज्ञ हो रहा है उसका नाम अमेरिका ने ‘अग्निहोत्र प्रेस फार्म ‘ रखा है ।अमेरिका इस यज्ञ को वायु और जल की पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखने के लिए ही कर रहा है । आज भारत को विश्व गुरु बनाने की आवश्यकता नहीं है , अपितु समय कह रहा है कि विश्व में प्रचलित सभी मजहबी मान्यताओं को ध्वस्त कर विश्व के लोग स्वयं ही भारत को विश्वगुरु मान लें। अभी भी समय है अन्यथा धरती पर प्रलय आ जाने से कोई रोक नहीं पायेगा । भारत की वैदिक सदपरंपराओं में ही जीवन का रहस्य छिपा है ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत