क्या आज कोई जगाएगा सचमुच मेरे मन का फाग।
और देगा मुझे वो परिवेश जिसे कहूं मैं निज सौभाग्य।।
सचमुच मैं रूष्ट हूं, असंतुष्ट हूं पर थका नही हूं।
चरेवैति-चरेवैति कहता हूं पर अभी रूका नही हूं।।
मंजिलें मेरी मोहताज हैं मैं मंजिलों का मोहताज नही,
मैं सच कहता हूं ऐ दोस्तो जो कल था वो आज नही।
कौन सुलझाएगा आज मेरे मन की इस उलझन को,
मैं लाज में जला और जिससे जला उसमें कोई लाज नही।।
‘राकेश’ तेरी प्रार्थना में परमार्थ हो स्वार्थ नही,
परहित चिंतन हो है भारत का पुरूषार्थ यही।
होली का पावन पर्व देता है हमें संदेश यही,
यज्ञशेष हो भोग हमारा वेदों का उपदेश यही।।
–राकेश कुमार आर्य