वाह ! क्या पर्सनैलिटी है आपकी अपने बारे में ऐसा सुनने के लिए लोग हमेशा लालायित रहते हैं। इसके लिए व्यक्ति अपना तन मन धन और यहाँ तक कि अपना जीवन भी लगा देते हैं। समाज में स्वयं की पहचान बनाना यह आज के युग की आवश्यकता बन गई है। इसलिए लोग सुंदर आकर्षक तथा विविध कलागुणों से युक्त बनना चाहते हैं। चाहे इसके लिए कितना भी धन क्यों न खर्च करना पड़े लोगों की इस प्रवृत्ति के कारण ही आज पर्सनैलिटी डेवलपमेन्ट की दुकानें लग चुकी हैं। विविध सामाजिक संगठन शिक्षण तथा धार्मिक संस्थाओं ने भी ऐसे शिविरों का आयोजन करना प्रारंभ कर दिया है। शिविरों के माध्यम से नये बालकों को अपने विद्यालय में प्रवेश के लिए आकर्षित किया जाता है। इन शिविरों में गायन वादन नृत्य कराटे स्केटिंग चित्रकला आदि कलाओं पर आधारित वर्ग चलाए जाते हैं। इसके प्रचार प्रसार के लिए पॉम्पलेट होर्डिंग्स टीवी तथा अखबारों में विज्ञापन दिए जाते हैं और विज्ञापन के जादू से कोई बच नहीं पाता। पर्सनैलिटी डेवलपमेंट कैम्प का आयोजन करने वाले अनेक संस्थाओं के प्रशिक्षकों से पूछा कि पर्सनैलिटी इस शब्द का क्या अर्थ होता है सबने कहा व्यक्तिव। आप भी सोच रहे होंगे कि उत्तर सही है। परंतु ऐसा नहीं है। व्यक्तित्व और पर्सनैलिटी दोनों ही शब्द पर्यायवाची नहीं हैं क्योंकि दोनों के अर्थ भिन्न भिन्न हैं। पर्सनैलिटी मतेवदंसपजल यह अंग्रेजी शब्द लेटिन भाषा के परोसना मतेवदं शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है मुखौटा।
बचपन में हम सभी ने एक कहानी जरूर सुनी होगी । एक बार एक सियार को शेर की खाल मिल जाती है और वह उस खाल को ओढ़ लेता है। शेर की खाल ओढऩे से वह भी शेर जैसा दिखने लगता है । तालाब में जब वह पानी पीने गया तो उसे देखकर सभी प्राणी डर के भाग गये । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सभी उससे डर रहे हैं परंतु वह खुश था कि हमेशा डरकर जीने वाला सियार आज केवल एक शेर की खाल की वजह से शक्तिशाली लगने लगा है । वह सबको दौड़ दौड़कर डराता और ऐसा करने में उसे बड़ा मजा आता । पर एक दिन उसकी मुलाकात असली शेर से हो गई । तब उसका क्या परिणाम हुआ होगा हम सभी जानते हैं । शेर के एक पंजे के वार ने सियार के ऊपर चढ़ी खाल को खींच निकाला और दूसरे पंजे से सियार को यमलोक भेज दिया । पर्सनैलिटी डेवलपमेंट वालों का हाल भी ऐसा ही होता है । क्योंकि अधिक ऊँचा उठने की हो में वे स्वयं का विकास नहीं करते वरन् ह्रास ही करते हैं। अपने स्वयं के स्वभाव तथा क्षमता को भूल कर बाहरी दुनिया के आकर्षण के अनुरूप खुद को ढालने में लग जाते हैं । परंतु वे वैसा दिखना चाहते हैं जैसे वे है ही नहीं । कुछ वर्ष पहले सलमान खान अभिनेता तेरे नाम फि ल्म में सलमान की हेयर स्टाइल से प्रभावित होकर महाविद्यालय के हजारों छात्रों ने अपने बालों को श्तेरे नामश् का लुक दे दिया। आँखों पर आते बालों से स्टाइल मारकर हाथों में सिगरेट का कश लेने में इन युवाओं को शर्म नहीं आती । बॉडी बनाने में लगे हैं ऋतिक और सलमान की तरह । पूछो तो बतायेंगे किए स्टाइल में रहने का ! इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं । सलमान की तरह बॉडी बनाने सेए आमिर की तरह स्टाइल मारने से लड़कियाँ आकर्षित होती हैं । इसलिए वे ऐसा करते हैं । युवाओं के इस बुद्धि भ्रम से उनका जीवन आज संशय ग्रस्त हो गया है । कब कौन सा गलत कदम उठायेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता । आत्महत्या करने के मामले में युवाओं की संख्या सर्वाधिक है । डिप्रेशन आदि के तनाव में जी रहे बेरोजगार आलसी व मोटी कमाई करने वाले युवाओं को हम अपने आस पास देख ही सकते हैं । ये सब इस पर्सनैलिटी डेवलपमेंट का ही परिणाम है । अत: बाहरी दिखावे व व्यर्थ आकर्षण के लिए स्वयं के स्वभाव के प्रतिकुल मुखौटे को बाहर फेंकना होगा तभी हमारा आंतरिक विकास हो पायेगा और इसी विकास से प्रकट होगा हमारा व्यक्तित्व ।
पर्सनैलिटी डेवलपमेंट नहीं हमें व्यक्तित्व विकास की ओर अग्रसर होना होगा । स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति एक अव्यक्त ब्रम्ह है। उसके भीतर व्याप्त दिव्यत्व का प्रगटीकरण ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए । अर्थात अपने भीतर की क्षमताओं का विकास करना हमारा प्रयास हो। ज्ञानेंद्रियों का विकास तथा कर्मेंद्रियों की क्षमता वृद्धि इन दोनों मे संतुलन बनाये रखना ही व्यक्तित्व का विकास है। व्यक्तित्व का अर्थ ही है कि स्वयं आनंदित रहना और सम्पर्क में आने वाले सभी को आनंदित करना। हमें देखकर उदास निराश व्यक्ति में यदि उत्साह व विश्वास निर्माण होता है तो समझिये कि हम अच्छे व्यक्तित्व के धनी हैं । इसलिए अपने आप को सतत ऊर्जावान श्रद्धावान निरहंकारी व प्रसन्न बनाये रखने के लिए व्यक्तित्व विकास के पांच स्तरों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा ।
योगी अरविन्द ने मनुष्य के व्यक्तित्व की पूर्णता के लिए पांच प्रकार के विकास पर जोर दिया है
शारीरिक विकास मनुष्य के जीवन का प्रथम परिचय उसके रंग रूप अर्थात शरीर से होता है । इसलिए अपने शरीर को निरोगी रखने के लिए हमें नियमित सूर्यनमस्कार योगासन प्राणायाम करना चाहिए । क्योंकि स्वस्थ शरीर भगवान का मंदिर होता है और अस्वस्थ शरीर आत्मा का कारागार । स्वामी विवेकानंद कहते थे,मुझे चाहिए लोहे की मांसपेशियाँ और फ़ौलाद के स्नायु । ऐसे युवा जो समुद्र को लांघने एवं मृत्यु को भी गले लगाने की क्षमता रखते हों ऐसे मुझे सौ भी मिल जायें तो मैं भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का कायापलट कर दूंगा । शारीरिक क्षमता पर इतना प्रचंड विश्वास था स्वामीजी का ! अत: शरीर को कष्ट देकर मेहनत करके अपनी शारीरिक क्षमता का विकास करना व्यक्तित्व विकास की प्रथम आवश्यकता है ।
मानसिक विकास मन की गति हवा से भी तेज होती है शरीर नहीं थकता मन थकता है । मन इंद्रियों का स्वामी है । मन के अनुसार ही इंद्रियाँ कार्य करती हैं और इंद्रियों के कार्यों पर ही सफ लता या असफ लता निर्भर करती है । इसलिए तो संत कबीर ने कहा है मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में तनाव के कारण अपनी क्षमताओं को भूल जाना आम बात है । हाँ मैं यह काम कर सकता हूँ इस आत्मबोध को सदैव बनाये रखने के लिए आत्ममंथन की आवश्यकता होती है । ध्यान करना ही इसके लिए आवश्यक उपाय है ।
बौद्धिक विकास शरीर और मन के बाद बुद्धि विकास का क्रम आता है । बुद्धि बढ़ती है नियमित स्वाध्याय से । श्रवण वाचन मनन चिन्तन आचरण तथा सम्प्रेषण ये स्वाध्याय के छह चरण हैं । स्वाध्याय के इन छह प्रकारों में पूर्णता के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है । स्वामी विवेकानंद को किसी ने पूछा कि छात्रों को क्या सिखाना चाहिए घ्श् स्वामीजी ने कहा एकाग्रता ! व्यक्ति यदि एकाग्रता प्राप्त कर ले तो वह दुनिया का हर ज्ञान अर्जित कर सकता है। अत: मनुष्य को एकाग्रता की शिक्षा दो ।
स्वस्थ शरीर पवित्र मन तथा नियमित स्वाध्याय से ही बौद्धिक विकास सम्भव है ।
भावनात्मक विकास शरीर मन तथा बुद्धि से पूर्ण व्यक्ति में श्रेष्ठ भावों का होना आवश्यक है । बलशाली होकर दूसरों को दुख देनाए मन से शक्तिशाली होने पर अन्यों को डरपोक समझना तथा बुद्धि से होशियार होने पर बाकी मनुष्यों को मूर्ख समझना व्यक्तिगत नहीं है । स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को कनिष्ठ न समझते हुए समाज की उन्नति के लिए चिन्तन करना ही नहीं बल्कि सहयोग की भावना लेकर कार्य करना ही भावनात्मक विकास है । ज्ञान बाँटने से ज्ञान बढ़ता हैए ऐसे विचार भावनात्मक विकास के अंतर्गत आते हैं ।
आध्यात्मिक विकास शरीर मन बुद्धि तथा भावनात्मक दृष्टि से पूर्ण व्यक्ति में अहंकार आना स्वाभाविक है । अहंकार मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है । अतरू शरीर मन बुद्धि व श्रेष्ठ भावना से प्राप्त सफ लता ईश्वर के श्री चरणों में अर्पित कर देने से अहंकार का नाश होता है । सब ईश्वर की इच्छा से हो रहा है इस भाव से ईश्वर पर श्रद्धा रखना आध्यात्मिक विकास के अंतर्गत आता है । नाम स्मरण दान धर्म तथा सेवा कार्य यह सब ईश्वरीय कार्य हैं । इन कार्यों से ही आध्यात्मिक विकास होता है । इसे आत्मिक विकास भी कहते हैं ।
शरीर, मन, बुद्धि, भावना व आत्मा का विकास यह सभी आंतरिक हैं। बाहरी मुखौटा मतेवदं पहनकर इन पांचों का विकास नहीं हो सकता। पूर्णत्व को प्राप्त करना ही व्यक्तित्व विकास है और पूर्णत्व की प्राप्ति अंदर से होती है ।
हमारी संस्कृति में आंतरिक विकास को महत्व दिया गया है । इसलिए कहा जाता है नृत्य साधना शरीर साधना, संगीत, साधना आदि प्रत्येक कार्य ईश्वर की पूजा के रूप में किये जाते हैं दिखावे के लिए नहीं । अत: पर्सनैलिटी की ओर नहीं हमें व्यक्तित्व विकास की ओर जाना चाहिए क्योंकि पर्सनैलिटी के प्रवाह में स्वयं के आंतरिक विकास को खो देने का खतरा रहता है और आंतरिक विकास हो जाये तो सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है ।
लखेश चंद्रवंशी
संपादक भारतवाणी