– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
जिंदगी आज दो पाटों के बीच पीस रही है। चारो तरफ हाहाकार मची है। गांव से लेकर शहर तक सभी लोग अपने घरों, झोपड़ियों में कैदी की जिंदगी जी रहे हैं। अगर इसे हाई प्रोफाइल तरीके से देखी जाए तो पूरा देश ‘बिग बॉस’ के घर जैसा बनकर रह गया है। सुबह की दिनचर्या से लेकर रात को सोने तक बस अपने घरों में सारे कामों को निपटाना पड़ रहा है। आखिर इंसान करे भी तो क्या ? दरअसल इस महामारी के दौर में सरकार हो या आम इंसान बस एक ही उपाय है सोशल डिस्टेंसिंग ताकि जो लोग इस संक्रमण के शिकार हो चुके हैं वो इसे आगे न बढ़ाएं और सभी की जिंदगी सुरक्षित हो सके। धीरे ही सही लेकिन बढ़ते इस वायरस के प्रकोप को देखते हुए जहां 22 मार्च को देश के प्रधानमंत्री जनता कर्फ्यू लगाकर इस कोरोना वायरस की जंग से लड़ने के लिए लोगों से अपील किए। अक्षरसः उनकी बातों का पूरे देश ने पालन किया। इस एक दिन की बंदी ने संक्रमण की गति को थोड़ी धूमिल कर दिया। इससे विश्वास बढ़ी और आगे चलकर 21 दिनों के लिए देश को लॉकडाउन कर दिया गया।
थम गई जिंदगी की रफ्तार !
जिंदगी अचानक से थम सी गई। जो जहां थे वहीं के होकर रह गए। किसी के पास कोई काम नहीं रह गया। देश के विभिन्न हिस्सों से मेट्रोपॉलिटन सिटी में गए कामगार घर बैठे धूल फांकने लगे। तब उन्हें ये उदासी, बेरोजगारी काटने को दौड़ने लगी। वो सड़कों पर उतर आए और अपने घर की बाट देखने लगे। उनका घर की तरफ लौटना गुनाह नहीं है, क्योंकि हर कोई काम नहीं रहे तो घर लौटना ही बेहतर समझेगा। मगर क्या करे सरकार उसके पास कोई और दूसरा उपाय भी तो नहीं है कि लॉकडाउन में ढील दे दे। अगर ढील दे देगी तो यह वायरस का संक्रमण देश को अपनी चपेट में ले लेगी और जो आज सड़कों पर हैं किसी वजह से संक्रमित हो गए तो न जाने कितने अंजानों को अपना ग्रास अंजाने में ही बना लेंगे। इतना ही नहीं अपने घर लौटे तो समझो की पूरा घर इसकी चपेट में आ जाएगा और कम्यूनिटी ट्रांसमिशन का शिकार हो जाएगा। फिर चाहकर भी कोई कुछ नहीं कर पाएगा। इसलिए जहां हैं थोड़ी कष्ट को काट लीजिए, किसी तरह की कोई दिक्कत हो रही हो तो उसे सरकार द्वारा दिए गए नंबरों पर इत्तला करें। हां, आपकी बातों में सच्चाई भी है कि इन दिए गए नंबरों पर सही जानकारी नहीं मिलती और न ही किसी तरह की कोई सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं। लेकिन घबराने से कुछ नहीं होता। धीरे-धीरे सरकार मॉनिटरिंग करके आप तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। कहा जाता है कि समस्या है तो निदान भी है। इसलिए इस वक्त आपके द्वारा उठाए गए हर कदम एक चुनौती की तरह है।
काश! पहले से सचेत होतेः
देश के बाहर के देशों में इटली, चीन, स्पेन और अमरीका सरीखे देशों को जरा देखिए और समझिए कि अगर उन देशों ने भारत की तरह लॉकडाउन का पालन पहले ही किया होता तो शायद इन हो रही हजारों मौतों की संख्या पर काबू पायी जा सकती थी। चीन के वुहान से इस महामारी की हवा चली और देखते ही देखते दुनिया के लगभग 187 देशों को अपनी चपेट में ले लिया।
जहां कल तक सड़कों पर सरपट जिंदगी दौड़ रही थी उसकी रफ्तार अचानक से थम गई। दुनिया जहां इंसानी चहलकदमी से गुलजार रहा करती थी वो खामोश हो गई। रह गई तो सुनसान सड़कें और यदा कदा भूख से व्याकुल मरघट की तरह जानवर। जहां कल तक शहरों में रेलमपेल लगी हुई थी वहीं शहरों की आबादी अचानक से कम हो गई है और उसका बोझ गांवों पर बढ़ गया है। क्योंकि दो जून की रोटी कमाने आए लोग इन समस्याओं से बचने के लिए शहरों को प्रणाम कर गांवों में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
प्रकृति के मर्म को अब तो समझना होगाः
हम हमेशा से पढ़ते आए हैं कि प्रकृति खुद से ही सभी चीजों को नियंत्रित करती है। क्य़ा ये उसी का उदाहरण पेश कर रही है। अगर हां, तो हमें बहुत पहले ही इसको लेकर संवेदनशील हो जाना चाहिए था। हम अपनी सुविधाओं के लिए पेड़ों की कटाई से लेकर कंक्रीट सड़कों के निर्माण से मिट्टी की अहमियत को खोते जा रहे हैं। पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करने की वजह से हम प्रदूषित वातावरण में जीने के विवश हैं। बिना जरुरत के सड़कों पर फर्राटे भरती गाड़ियां लेकर निकल गए और उसे अपनी शानोंशौकत के साथ जोड़कर खुद से ही खुद की पीठ थपथपा रहे थे। लेकिन ऊपर वाले की एक दस्तक ने आपको अलर्ट कर दिया है। अभी भी वक्त है, संभल जाइये किसी पर टीका टिप्पणी करने का ये वक्त नहीं है बल्कि इस विषम परिस्थिति से निपटने का वक्त है। हम साथ होकर यह लड़ाई लड़ेंगे तो हमें उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि कोरोना को भी हम पराजित कर देंगे।
मुख्य संपादक, उगता भारत