अंग्रेजी भाषा: सभी भाषाओं में भविष्य काल का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होती है हम जिस ज़बान में बातचीत करते हैं क्या उसका असर भविष्य के लिए बचत किए जाने वाली रकम पर पड़ता है? अंग्रेजी भाषा को तरजीह देने वालों के मुकाबले क्या हिंदी या मैंडरिन भाषा में बात करने वाले बुढ़ापे के लिए ज्यादा रकम बचा लेते हैं? यह एक विवादास्पद सिद्धांत है जिसे येल विश्वविद्यालय के व्यवहार अर्थशास्त्री कीथ चेन ने अपने ताज़ा निष्कर्षों में दिया है। प्रोफेसर चेन का कहना है कि उनके शोध से यह बात साबित होती है कि क्लिक करें हम जिस भाषा में बात करते हैं उसके व्याकरण का असर हमारी वित्तीय योजना और सेहत पर भी नजऱ आता है। इससे जुड़ी ख़बरें:उनका कहना है कि मैंडरिन, योरूबा और मलय भाषा में बात करने वाले लोगों की तुलना में अंग्रेजीभाषी लोग बुढ़ापे के लिए कम बचत करते हैं और उनमें ज्यादा धूम्रपान करने करने की प्रवृति होती है और वे शारीरिक व्यायाम भी कम करते हैं। भविष्य पर ज़ोर:प्रोफेसर चेन ने समय की अवधारणा के लिहाज से क्लिक करें दुनिया की भाषाओं को दो समूहों में बांटा है। एक समूह ऐसा है जो भविष्य के बारे में बात करते हुए विभिन्न कालों का इस्तेमाल करता है जबकि दूसरा समूह इस बात पर ज़ोर नहीं देता। उनका कहना है कि यूरोपीय भाषाओं में भी भविष्य के बारे में बात करने के लिए स्पष्ट तौर पर व्याकरण से जुड़े मतभेद हैं। जिन भाषाओं में भविष्य की बात करते वक्त केवल वर्तमान काल का इस्तेमाल किया जाता हैं उनके वक्ता में ज्यादा पूंजी बचाने की प्रवृति होती है वहीं जिस भाषा में भविष्य काल का इस्तेमाल कर बातचीत की जाती है उसे बोलने वाले लोग कम बचत करते हैं।
अंग्रेजी भाषी:अंग्रेजी भाषी लोगों में कम होती है बचत की प्रवृत्ति चेन ने बीबीसी के बिजनेस डेली से कहा, बचत की प्रवृत्ति बुनियादी तौर पर भविष्य से जुड़ी होती है। अगर आपकी भाषा अपने व्याकरण में भविष्य और वर्तमान को अलग करती है तो इसका मतलब यह है कि आप बात करते वक्त वर्तमान से भविष्य को अलग करते हैं। इसलिए इसका असर बचत पर दिखता है। क्या है अंतर: प्रोफेसर चेन ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि भाषायी अंतर की वजह से लोगों के क्लिक करें व्यवहार में भी व्यापक अंतर दिखता है। उन्होंने अपने शोध पत्र में कहा है कि जिन भाषाओं में भविष्य काल का इस्तेमाल होता है उन्हें बोलने वालों की तुलना में जिन भाषाओं में कोई वास्तविक भविष्य काल नहीं होता, उसके वक्ता रिटायरमेंट के वक्त तक 39 फीसदी ज्यादा बचत करते है, उनमें धूम्रपान करने की आदत भी 24 फीसदी कम होती है और वे 29 फीसदी ज्यादा शारीरिक रूप से सक्रिय होते हैं। लेकिन प्रोफेसर चेन के निष्कर्षों की आलोचना अर्थशास्त्री और बहुभाषाविद् दोनों ही कर रहे हैं। अंग्रेजी भाषा भाषाविदों का कहना है कि हमारे सोचने के तरीके पर भाषा का प्रभाव बेहद कम होता है उनका यह तर्क है कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों की वजह से विभिन्न भाषा में बात करने वाले लोग अलग व्यवहार करते हैं। हालांकि प्रोफेसर चेन का कहना है कि उन्होंने नौ बहुभाषी देशों में शोध के दौरान इन कारणों पर भी ध्यान दिया था।
दावे को चुनौती: दुर्हम यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर बिहेवियरल इकॉनमिक्स के निदेशक मॉर्टेन लाउ का कहना है कि आम लोगों की बचत की प्रवृत्ति का भाषा से बेहद कम लेना-देना है। वह कहते हैं कि ब्याज़ दर के लिहाज़ से बचत का रुझान तय होता है। उनका कहना है कि भाषायी समूहों के बीच महत्वपूर्ण अंतर देखने को मिलता है और विश्लेषण में इन नतीजों के औसत का इस्तेमाल मुश्किलें खड़ी कर सकता है। उनका कहना है, मिसाल के तौर पर डेनमार्क में हमने अपने शोध में यह पाया कि धूम्रपान न करने वाले लोगों के मुकाबले धूम्रपान करने वाले पुरूष अपनी बचत पर ज्यादा ब्याज दर चाहते थे। अगर प्रोफेसर चेन की बात सही हैं तो क्या अपने रिटायरमेंट के वक्त के लिए ज्यादा बचत करने के लिए अंग्रेजीभाषी लोगों को वर्तमाल काल में बात करनी शुरू कर देनी चाहिए? इस पर उनका कहना है, यह दरअसल खुद को प्रोत्साहित करने के लिए वर्तमान काल में सोचा जा सकता है जिससे आत्मनियंत्रण करना आसान हो जाता है।
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