क्या है तंत्र मंत्र चिकित्सा
जब देश में आज्ञानान्धकार फैला तो तंत्र मंत्र वाले या जादू-टोटके वालों ने लोगों को भ्रमित करना आरंभ कर दिया। क्योंकि परम्परा से हम मंत्रों के द्वारा चिकित्सा करते आ रहे थे, इसलिए मूर्ख, स्वार्थी और अज्ञानी लोगों के बहकावे में लोग आ गये। जिन्होंने तंत्र-मंत्र के द्वारा लोगों को भ्रमित करना आरंभ कर दिया था।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पूर्ण विधि विधान से जो यज्ञ किया जाता है, उसकी भस्मी से भी रोग निवारण होते हैं। यजुर्वेद (25/8) में ऐसा आया है। जिसकी व्याख्या करते हुए महर्षि दयानंद कहते हैं-‘जले हुए पदार्थ के शेषभाग (राख) से सबके प्रकाश करने हारे (सर्व जनहितकारी) अग्नि को जानना चाहिए।’
हमारे देश के ऋषि मुनि ऐसी बहुत सी विद्याओं को जानते थे जिनके आधार पर वे हवन की भस्मी से रोगों की औषधि तैयार कर लेते थे। यही कारण था कि ऋषि मुनियों के पास लोग अपने रोगों की चिकित्सा के लिए जाया करते थे। जब देश में अज्ञानांधकार फैला तो तपस्वी ऋषि मुनियों के स्थान पर कुछ पाखण्डी लोगों ने बैठकर देशवासियों को भ्रमित करना आरंभ कर दिया। इसमें देश के लोगों का कोई दोष नहीं था, दोष तो उन पाखण्डी लोगों का था जो स्वयं को तपस्वी ऋषि मुनि के रूप में प्रतिष्ठित कराकर अपनी पूजा करने-कराने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहे थे। वास्तव में इन लोगों का भारत की संस्कृति की महानता से कोई लेना-देना नहीं था, इसके स्थान पर इनका एक ही उद्देश्य था कि किसी भी प्रकार से अपना स्वार्थ सिद्घ किया जाए।
आज भस्मी को विदेशों में दवाई के रूप में मान्यता मिलती जा रही है। जर्मनी, भारत अमेरिका पोलैंड आदि देशों में भस्म पर अनुसंधान किया जा रहा है कि इसका चिकित्सकीय उपयोग क्या हो सकता है और कैसे यह रोग निवारक हो सकती है? पर ध्यान रहे कि अपने धूने की राख की भस्म से भूत भगाने वाले बाबाओं की भस्म और यज्ञाग्नि की भस्म में भारी अंतर है। हमें सावधान होकर और आंखें खोलकर दोनों का अंतर समझना होगा।
फ्रांस के वैज्ञानिक त्रिले ने यज्ञ-हवन क्रियाओं के संदर्भ में जो अनुसंधान किए हैं उनसे यह बात भली प्रकार सिद्ध हो चुकी है कि यज्ञ हवन से संसार के सभी प्राणियों का कल्याण होता है। त्रिले के अनुसार यज्ञ-हवन में जो काष्ठ या लकड़ी जलाई जाती है, उससे फार्मिक आल्डीहाइड नामक एक गैस उत्पन्न होती है। त्रिले के अनुसार यह गैस जीवाणुओं को नष्टकर वातावरण-पर्यावरण को स्वच्छ रखने मेंपूणर्त: समर्थ है। आजकल पर्यावरण संतुलन को लेकर विश्व के वैज्ञानिक चिंतित हैं । त्रिले की बात पर यदि आज के वैज्ञानिक विश्वास कर आगे बढ़ हैं तो निश्चय ही पर्यावरण प्रदूषण को यज्ञ हवन के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है।
भारत के अतिरिक्त चीन, जापान, जर्मनी और यूनान
आदि जैसे उन देशों में भी अग्नि को पवित्र माना जाता है जो कि प्राचीन काल में भारत की संस्कृति को अपनी संस्कृति मानकर उसी से शासित व अनुशासित होते रहे । ये वही देश हैं जिन पर जो कभी आर्यावर्त का एक अंग हुआ करते थे । कहने का अभिप्राय है कि यदि आजकल इन देशों में अग्नि को पवित्र माना जाता है तो इसका कारण यही है कि यह अग्नि वाले देश अर्थात भारत के साथ बहुत ही घनिष्ठता से जुड़े रहे हैं । इन देशों में विभिन्न प्रकार की धूप जलाने का चलन है।
वस्तुत: अग्नि में जो वस्तु जलाई जाती है उसका स्वरूप सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हो जाता है। आधुनिक परमाणु वैज्ञानिकों ने अब इस तथ्य को पूर्णत: आत्मसात कर लिया है कि स्थूल से सूक्ष्म कहीं अधिक
शक्तिशाली है। जबकि भारत प्राचीन काल से ही यह कहता आ रहा है कि सारा स्थूल सूक्ष्म पर टिका हुआ है। अग्नि में किसी पदार्थ के जलने पर उसके स्वरूप में गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है। जैसे अगर कोई व्यक्ति स्थूल रूप में किसी जहर को खा ले
तो वह शीघ्र ही मर जाएगा। वहींआयुर्वेद शास्त्र
कहता है कि यदि उसी विष को अग्नि संस्कार के
द्वारा सूक्ष्मतर बनाकर उसका उचित व सम्यक मात्र में
सेवन किया जाए तो वही विष अपने इस नए रूप-स्वरूप में व्यक्ति को रोगमुक्त कर उसे स्वस्थ व
बलशाली बना सकेगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत