आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
जब मिडिल स्कूल में पढ़ते थे, तब हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में एक अध्याय था, क्रमशः “ईश्वर जो करता है अच्छा करता है”, “ईश्वरम येत करोति शोभनम एव करोति”, “It’s all for the best” नाम से सबने अपने-अपने दिमाग से कहानियां लिखी थी। वास्तव में उस समय बहुत ही दार्शनिक और दूरदर्शी शिक्षा दी जाती थी।
कहने का अभिप्राय यह है कि नागरिकता संशोधक कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शन और धरनों में अलगाववादी, हिन्दुत्व, मोदी, योगी और अमित शाह विरोधी नारे लगने के साथ-साथ कहा जाता था, “कागज नहीं दिखाएंगे” उसकी असलियत कोरोना संक्रामक बीमारी ने उजागर कर दी। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए घुसपैठियों के अलावा जमात के नाम पर देश का माहौल ख़राब करने आए इन घुसपैठियों को बचाने के लिए कहा जाता था कि “कागज नहीं दिखाएंगे”? यदि ये लोग इस्लाम प्रचार के लिए आये थे, फिर मस्जिदों में क्यों छुपकर बैठे थे? केंद्र और राज्य सरकारों को मस्जिदों में छुपाकर रखने वालों से पूछताछ करनी चाहिए। इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।
“क्या कोरोना संक्रामक बीमारी भारत के लिए वरदान बनकर आयी है?”
यह संक्रामक बीमारी देश में नागरिकता संशोधक कानून विरोधियों और विरोधियों के समर्थक को बेनकाब करने में सार्थक सिद्ध हो रही है। जिसे देख यह सोंचने को मजबूर होना पड़ता है कि “क्या कोरोना संक्रामक बीमारी भारत के लिए वरदान बनकर आयी है?” इसीलिए कहते हैं “सकारात्मक काम करो, सकारात्मक सोंचों, हर काम सकारात्मक होगा।” कहावतें गिल्ली डंडा खेलकर नहीं बनी, जीवन के अनुभव के आधार पर बनी हैं।
भारत में लॉक डाउन केवल जनता को कोरोना संक्रामक बीमारी से बचाने के लिए जरूर किया है, साथ में यह भी सिद्ध कर रहा है कि सरकार एक साथ कितने मोर्चों पर लड़ रही है। यदि इस बीमारी का डर नहीं होता, शायद मस्जिदों में छुपे बैठे विदेशियों का पता भी नहीं चलता।
क्या “कागज नहीं दिखाएंगे” से देश में अराजकता फ़ैलाने वाले चीन से आए मौलवियों से पूछेंगे कि “चीन में मुसलमान ही नहीं इस्लाम की इतनी दुर्गति होने पर क्यों मुंह में दही जमाए बैठे हो?” क्या वहां इस तरह की हरकत करने का साहस है। चीन में लगी पाबंदियों पर यदा-कदा इस ब्लॉग पर लिखता रहा हूँ।
लिखते-लिखते फेसबुक पर एक मित्र द्वारा भेजे Capital TV की इस निम्न वीडियो में संपादक डॉ अनिल कुमार शंकाओं की पुष्टि कर रहे हैं।
कोरोना वायरस के आतंक की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन घोषित किया गया है। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए हर तरह के उपाय किए जा रहे हैं। विदेशों खासकर चीन से आने वाले लोगों की गहन जांच की जा रही है। इसी दौरान बिहार, झारखंड और तमिलनाडु के मस्जिदों में छिपे विदेशी मौलवियों की सूचना से हड़कंप मच गया है। इनमें से दो को कोरोना टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया है। कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित चीन के मौलवियों की मौजूदगी से लोगों के मन में उत्सुकता के साथ ही भय व्याप्त हो गया है। पुलिस ने सभी विदेशी मौलवियों को हिरासत में लेकर कोरोना वायरस की जांच के लिए अस्पताल भेज दिया है।
झारखंड में रांची पुलिस ने तमाड़ स्थित राड़गांव मस्जिद में छिपे 11 मौलवियों को हिरासत में लिया, जिसमें 3 मौलवी चीन से हैं, जबकि 4-4 किर्गिस्तान और कजाकिस्तान से हैं। जांच के दौरान प्राप्त पहचान पत्रों से इनकी शिनाख्त चीन के मा मेंनाई, ये देहाइ, मा मेरली, किर्गिस्तान के नूर करीम, नारलीन, नूरगाजिन, अब्दुल्ला और कजाकिस्तान के मिस्नलो, साकिर, इलियास आदि के रूप में हुई है। डीएसपी अजय कुमार ने बताया कि सभी के कागजात की जांच की जा रही है। तमाड़ चिकित्सा प्रभारी आशुतोष त्रिपाठी ने बताया कि सभी 11 विदेशियों की प्रारंभिक जांच कर ली गई है। किसी के कोरोना संक्रमित रोग के लक्षण नही मिले हैं। फिर भी सभी मौलवियों को क्वारनटाइन के लिए मुसाबनी स्थिति कांस्टेबल ट्रेनिंग स्कूल भेज दिया गया।
इन मौलवियों ने भी खुद को अब तक पूछताछ में मजहब प्रचारक बताया है। इनका कहना है कि इन्होंने 1 महीने से भारत के विभिन्न मस्जिदों में पनाह ली और 19 मार्च को रांची से बस द्वारा जमशेदपुर जाने के दौरान तमाड़ में राड़गांव के पास स्थित एक मस्जिद में रुके। यानि ये सभी रांची के इस मस्जिद में पिछले 5 दिन से थे।
इससे पहले बिहार के पटना में 12 विदेशियों को एक मस्जिद से हिरासत में लिया गया था। जानकारी के मुताबिक, ये मामला राजधानी के भीड़भाड़ वाले इलाके कुर्जी का है। यहां गेट नं 74 के पास स्थित एक मस्जिद में कुछ विदेशी लोगों को छिपाकर रखा गया था। छिपे हुए विदेशी लोगों की संख्या 12 बताई जा रही है। जब आसपास के मोहल्ले वालों को इसका पता चला तो लोगों ने विरोध किया और हंगामा शुरू कर दिया। हंगामे की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस आई जिसके बाद पुलिस ने 12 विदेशियों को अपनी कस्टडी में ले लिया।
इनसे पूछताछ में पता चला कि सभी तजाकिस्तान के निवासी हैं और पटना में धार्मिक प्रचार प्रसार के लिए आए थे। दीघा थानेदार मनोज कुमार सिंह ने बताया कि एहतियातन जाँच के लिए सभी को एम्स भेजा गया। ये सभी चार महीने पूर्व धार्मिक प्रचार के लिए भारत आए थे और सोमवार की सुबह नमाज के लिए दीघा मस्जिद गए थे, पुलिस ने सूचना पर जाँच के लिए एम्स भिजवाया।
उधर तमिलनाडु के अंबुर, इरोड और सलेम से 38 इस्लामिक प्रचारकों को हिरासत में लिया गया है। जिनमें 23 इंडोनेशिया, 8 म्यांमार और 7 थाईलैंड से हैं। जिनमें से दो को कोरोना वायरस की जांच में पॉजिटिव पाया गया है।