पूर्वोत्तर भारत में चर्च का फैलता साम्राज्य देश के लिए चिंता का विषय : अश्विनी दत्ता
गुवाहाटी । अखिल भारत हिंदू महासभा के पूर्वोत्तर भारत के प्रभारी अश्विनी दत्ता का कहना है कि पूर्वोत्तर भारत में भयानक रूप से फैलता चर्च का जंजाल देश के विघटन की एक नई प्रक्रिया को शुरू कर रहा है जिसके प्रति पूरे हिंदू समाज को और सरकारों को समय रहते कठोर कदम उठाने होंगे । उन्होंने कहा है कि उत्तर पूर्वांचल भारत का वह क्षेत्र है जिसमें ईसाई बहुल तीन प्रदेश अस्तित्व में आ गये हैं-नागालैंड, मिजोरम व मेघालय। ये तीनों क्षेत्र पहले असम प्रदेश के अंग थे। इसके बाद ईसाई मिशनरियों का विस्तार त्रिपुरा, अरूणाचल व मणिपुर में लक्ष्यित है। पूर्वोत्तर के सात प्रदेश असम, अरूणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर के साथ सिक्किम भी ईसाई षडयंत्र का केन्द्र है। अब पड़ोसी देश नेपाल भी इस समस्या से ग्रस्त हो चुका है।
1951 में भारत में 70 लाख ईसाई थे जो अब लगभग ढाई करोड़ हो गये हैं। भारत का लगभग 66,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ईसाइयत के प्रभाव में है। गृह मंत्रालय के अनुसार 66 देशों के लगभग 3 हजार विदेशी मिशनरी भारत में कार्यरत है। लगभग दो लाख ईसाई मिशनरी चर्च के विभिन्न कार्यक्रमों व हिंदुओं के धर्मांतरण में लगे हुए हैं। धर्मांतरण करने के लिए भारत को ईसाई मिशनरियों ने 138 क्षेत्रों में बांटा हुआ है और लगभग 2 लाख हिंदुओं को प्रतिवर्ष ईसाई बनाने का जाल फैलाया हुआ है। लगभग 200 ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र हैं जहां से प्रतिवर्ष 2000 मिशनरी प्रचारक तैयार किये जाते हैं। भारत के सरकारी सूत्रों के अनुसार केवल 1980 से 1986 तक प्रतिवर्ष 200 से 448 करोड़ रूपया विदेशों से ईसाई संस्थाओं को प्राप्त हुआ है।
हिंदू महासभा के नेता ने कहा कि वर्तमान में चर्च दलित ईसाइयों के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है जिससे कि हिंदू दलितों को मिल रही आरक्षण सुविधाओं का आर्थिक लाभ ईसाइयों को दिलाकर और अधिक धर्मांतरण कराया जा सके।
श्री दत्ता ने कहा कि विश्व का चर्च अमेरिका आदि देशों के सहयोग से भारत के चार टुकड़े करना चाहता है जिससे भारत कभी महान शक्तिशाली देश न बन सके। युनाईटेड स्टेट्स ऑफ असम इन इंडिया नाम देकर ईसाई बहुल क्षेत्र बनाने का एक प्रारूप इस प्रकार है-नागालैंड (87.5 प्रतिशत ईसाई), मिजोरम (85.7 प्रतिशत ईसाई) मणिपुर (34.1 प्रतिशत ईसाई) त्रिपुरा (2 प्रतिशत ईसाई)।
सी.आई.ए. (अमेरिका गुप्तचर सेवा) ने यह योजना इसलिए बनाई जिससे अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद भी पूर्वोत्तर भारत का ईसाई बहुल उपनिवेश बना रहे। बहुत बड़ी मात्रा में शस्त्र व धन देकर नागा विद्रोह जैसी षडयंत्रकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। 1982 में त्रिपुरा में कार्यरत एक अमरीकी मिशनरी एवं इससे पूर्व असम में एक मिशनरी को अलगाववादी गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण भारत से निकाला गया।