कोलकाता । अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष सुंदर गिरी जी महाराज ने कहा है कि देश में मुस्लिम सांप्रदायिकता से केंद्र सरकार को कठोरता से निपटना चाहिए । उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में आजादी के समय 22 प्रतिशत हिंदू थे। आज 1.5 प्रतिशत ही बचे हैं। बांग्लादेश में 1947 में 28 प्रतिशत हिंदू थे। आज 8 प्रतिशत रह गए हैं। इंडोनेशिया में 87 प्रतिशत, मलेशिया में 62 प्रतिशत मुस्लिम हैं। शेष समाज बौद्ध हिंदू, ईसाई आदि इतनी अल्पसंख्या में है कि इन देशों में भी कोई सांप्रदायिक समस्या नहीं है।
हिंदू महासभा के नेता ने कहा कि आज जिन देशों में यह समस्या नहीं है तो वहां इसका मुख्य कारण जनसांख्यिकी के अनुपात का पूरी तरह से एक धर्म के पक्ष में होना है। जहां समस्या है, उनमें प्रमुख है चीन के उइगर मुस्लिमों वाला इलाका और म्यांमार का र्रोंहग्या क्षेत्र। चीन ने समाधान के लिए प्रशिक्षण कैंपों का सहारा लिया है। 1933 में उइगर और चीनी आबादी का अनुपात जो क्रमश: 77 और 5.5 प्रतिशत था, वह 2015 में 45 और 42 प्रतिशत हो गया है। स्पष्ट है कि चीनी शासक जनसांख्यिकी में परिवर्तन के माध्यम से समस्या का समाधान करते मालूम पड़ रहे हैं। म्यांमार में र्रोंहग्या मुसलमानों की संख्या 10 लाख थी। 2015 से वहां उत्पीड़न का क्रम प्रारंभ हुआ और 9 लाख र्रोंहग्यों ने भागकर बांग्लादेश, फिर चोरी छिपे भारत में भी शरण ली है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार की बड़ी आलोचनाएं हो रही हैं, किंतु उन्होंने अपनी समस्या का, जैसा उनकी समझ में आया, समाधान कर लिया।
ऐसे में संवैधानिक दायरे में रहकर केंद्र की मोदी सरकार को ही सांप्रदायिक समस्या से निपटने के लिए कठोर नीति पर विचार करना चाहिए । अन्यथा हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक होकर रह जाएगा और फिर एक समय आएगा जब हिंदू केवल इतिहास की चीज बनकर रह जाएगा।