चीन को लेकर लोग तरह तरह की नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ दे रहे हैं। पर इस पूरे प्रकरण से दो बातें निकल कर आई हैं।
पहला : डेमोक्रेसी, स्वतंत्रता, मानवाधिकार…ये सारे नरम मुलायम गुलाबी मुहावरे शांतिकाल में बहुत बढ़िया हैं, पर विपदा काल मे ये बहुत बड़ी विपत्ति का कारण बन सकते हैं।
दूसरा : राष्ट्रीय चरित्र, यह भी कोई चीज है और यही हमें बचाएगा। चीन ने दिखाया, इटली ने नहीं।
चीन और इटली में जनसंख्या का अनुपात और मरने वालों की संख्या की तुलना करके लोग बहुत कुछ कह रहे हैं कि चीन ने मृतकों की संख्या छुपाई है या उसके पास कोई वैक्सीन है जो वह जानबूझ कर दुनिया को नहीं बता रहा…
नहीं; सीधी सी बात है, चीन ने राष्ट्रीय चरित्र दिखाया है जो आज के दिन यूरोप से गायब है। जब मैं कहता हूँ, शायद लोग इसे सीरियसली ना लें… आज के दिन चीन संभवतः दुनिया का वामपंथ से सबसे कम प्रभावित देश है। वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का शासन तो है, पर एक वामपंथी समाज नहीं है। और इसीलिए देश में एक राष्ट्रीय चरित्र बचा हुआ है जो विपत्ति में काम आया। लोगों ने अनुशासन रखा, नियम माने, एक दूसरे की मदद की। आज यूरोप के पास कोई राष्ट्रीय चरित्र नहीं है। लोगों को हर बात सरकार से माँगने की आदत है, पर अपना कोई कर्तव्य बोध नहीं है।
भारत में कुछ बिगड़ैल लोगों ने बहुत ही गैरजिम्मेदाराना बर्ताव दिखाया है, क्वारंटाइन से भागे हैं और ट्रेवल हिस्ट्री छुपाई है। पर आज सामान्यतः पूरा देश संगठित और सचेत है। हमें पता है कि इस विपत्ति का पूरा प्रकोप झेल पाने की हमारी क्षमता नहीं है, बचाव ही उपाय है।
हम इस विपत्ति से कैसे निकल पाएँगे यह सिर्फ और सिर्फ इसपर निर्भर करेगा कि हमारा नागरिक व्यवहार कैसा रहेगा, हम कैसे एक संगठित और अनुशासित समाज की तरह व्यवहार कर पाएंगे।
कुछ व्हाट्सअप मैसेज घूम रहे हैं जो पैनिक फैला रहे हैं और लोगों को तीन महीने का राशन और किराने का समान जमा करने को उकसा रहे हैं। इनसे बचिए। मैं श्योर हूँ यह देश में पैनिक फैलाने के लिए देश विरोधी शक्तियों की साजिश है। कुछ लोगों को अच्छा नहीं लग रहा कि भारत इस आपदा से बचा हुआ कैसे है और क्यों इतना अनुशासित व्यवहार कर रहा है?
वे अफवाहें फैलाएंगे, लोगों को इस तरह की पैनिक खरीददारी करने के लिए उकसाएंगे। उनसे बचें, अपने आस पास की दुकानों पर खुद सजग होकर नजर रखें कि कोई पागलों की तरह खरीददारी ना कर रहा हो। उसे रोकें, कोरोना फैला है, अनाज की कमी नहीं हुई है। महामारी के ऊपर अकाल ना हो जाये, उसका ख्याल रखें। अपने आस पास का, भाई बंधुओं का, अपने समाज का और अपने लोगों का ख्याल रखें। इसे युद्ध काल समझें। इटली नहीं, चीन की तरह व्यवहार करें। यह चीन को कोसने का नहीं, चीन से सीखने का समय है।
मेरी पुस्तक विषैला वामपंथ पर कुछ लोगों ने प्रतिक्रिया दी है कि उसका चीन वाला भाग बोरिंग था…
मेरी पुस्तक में चीन पर कुल 6 चैप्टर और 34 पृष्ठ हैं, यानि पुस्तक का 1/6th.
आज लोगों में चीन को समझने की उत्सुकता जागी है. तो अगर आपके पास यह पुस्तक है और आपने चीन वाला भाग स्किप कर दिया है तो फिर से पढ़ें. चीनी समाज को समझें.
चीन कुछ भी झेल सकता है और कुछ भी कर सकता है.
चीन ने कम्युनिस्ट क्रांति के समय की मानव निर्मित त्रासदियाँ देखी हैं जिसमें 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए थे.
फिर चीन ने देंग के नेतृत्व में कम्युनिज्म से मुक्ति भी पायी है और उस त्रासदी से निकल कर प्रगति की राह भी पकड़ी है.
चीन ने समय रहते कम्युनिज्म से मुक्ति पायी है और अपने समाज को वामपंथी थॉट वायरस से मुक्त रखा.
आज चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन तो है पर चीन एक वामपंथी समाज नहीं है.
चीनी राष्ट्रवाद का भाव नष्ट नहीं हुआ है,
परंपरागत चीनी सांस्कृतिक मूल्य सुरक्षित हैं.
उनका संगठन, उनका एकात्मकता का भाव कमाल का है.
वे मधुमक्खियों जैसे हैं. जैसे एक मधुमक्खी अपने अलग अस्तित्व के लिए नहीं, अपने छत्ते के लिए जीती है वैसे ही एक चीनी व्यक्ति चीनी समाज और राष्ट्र के लिए जीता है.
विपदा में ये सांस्कृतिक मूल्य ही काम आएँगे.
सरकार और संविधान से राष्ट्र नहीं खड़े होते,
राष्ट्र सांस्कृतिक मूल्यों से बनता है.
भारत के लिए हमारा हिंदुत्व ही हमारा मूल है,
वही हमें इस आपदा से निकालेगा.
✍🏻डॉ राजीव मिश्र
मुख्य संपादक, उगता भारत