महामारी कोरोना तथा मोटी बुद्धि मोटी चमड़ी वाले मार्क्सवादी
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वामपंथी प्रायः मोटी बुद्धि और मोटी चमड़ी वाले होते हैं l बुद्धि मोटी है तभी तो अपने शासन में विश्व के अनेक देशों को भुखमरी के कगार पर ला दिया l चमड़ी मोटी ना होती तो उन्हीं देशों की जनता के द्वारा दुत्कारे जाने के बाद भी आज इतनी बेशर्मी से बे-शर्म हरकतें ना कर रहे होते l कोरोना-महामारी की इस आपदा के समय भी पूरे विश्व में अपनी मोटी बुद्धि और अपनी मोटी चमड़ी की बे-शर्म नुमाइश करने से आखिर नहीं चुके ये वामपंथी उर्फ़ लेफ्ट-लिबरल या लेफ्टिस्ट l l अब देखिये, चीन के वामपंथियों ने कोरोना-संक्रमण के दौर में आवश्यक जानकारियों को छुपा कर पूरे विश्व को संकट में डाल दिया l इटली में इन बुद्धिहीन मक्कार-मसखरे वामपंथियों ने चीनियों को गले लगा कर पूरे इटली को मौत के मुंह में धकेल दिया l भारत में, जहाँ तीन प्रतिशत जनता ने भी इनमें चुनावी-विश्वास प्रकट नहीं किया, ये बुद्धिहीन-वामपंथी इस संकट की घड़ी में भी अपनी मोटी बुद्धि के प्रदर्शन से बाज नहीं आ रहे l पूरा देश जब डॉक्टरों के लिए तालियाँ बजा रहा था, तो इन मसखरे-वामपंथियों की मोटी बुद्धि ने ये समझ लिया कि यह तालियाँ कोरोना को भगाने के लिए बजाई जा रही हैं; बस फिर क्या था, फब्तियों की शक्ल में लगे अपनी बुद्धिहीनता का प्रदर्शन करने ! यही नहीं, लगभग नब्बे करोड़ वयस्क-भारतीयों में अगर चालीस प्रतिशत ने भी तालियाँ बजाई होंगी, तो छत्तीस करोड़ हुए l अब छत्तीस करोड़ लोगों में अगर हज़ार लोग प्रोटोकॉल तोड़ सडकों पर आ गये तालियाँ बजाते, तो ऐसे लोगों का प्रतिशत होता है 0.003 % l यानि 99 प्रतिशत से भी अधिक लोगों ने अनुशासन और प्रोटोकोल का पालन किया l सुरक्षा की दृष्टि से इन 0.003 प्रतिशत लोगों का भी प्रोटोकॉल तोड़ना उचित नहीं था लेकिन इन आंकड़ों के आधार पर पूरे देश की जनता पर तो नहीं हंसा जा सकता l लेकिन चूंकि आंकड़े, सांख्यिकी, और बारीक तथ्य वामपंथियों की मोटी बुद्धि में नहीं जा पाते, तो बेचारों ने उसी 0.003 % को ही पूरा देश समझ लिया और पूरे देश की जनता का उपहास उड़ाने लगे l एक डॉक्टर – जो पीपल्स पार्टी ऑफ़ इंडिया की सक्रिय सदस्य हैं और चुनाव भी लड़ चुकी हैं – ने ताली-शंख द्वारा डोक्टरों का आभार व्यक्त करने पर नकारात्मक बातें लिखीं l फिर क्या था, मोटी बुद्धि वामपंथी ताता-थैया करने लगे : “ये देखो देश के डोक्टरों को भी पसंद नहीं आया”, “वो देखो डोक्टरों की राय क्या है” आदि आदि l अब देखिये, देश में दस लाख से भी अधिक डॉक्टर हैं जिनमें से कईयों ने खुल कर इस ताली-थाली-शंख कैम्पेन पर हर्ष प्रकट किया : जे जे अस्पताल की डीन डॉ पल्लवी, व कई अन्य ने l लेकिन नहीं, वामपंथियों की बुद्धि तो मोटी हैं; अब भला उस मोटी बुद्धि में यह साधारण गणित भी कैसे समाए कि लाख में एक माने लगभग शून्य प्रतिशत डॉक्टर ने ही नकारात्मक बातें कहीं ! कोरोना से युद्ध में अभी प्रयास और बढाने हैं, यह सच है l लेकिन यह भी सच है कि भारत ने प्रशंसनीय रूप से पचास से भी अधिक बड़े कदम उठाए हैं और निर्णय लिए हैं, जिनकी प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई अन्य संगठनों या विश्व-नेताओं ने की है; प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किये हुए कई विदेशियों ने की है, संक्रमण के बाद ठीक हो चुके भारतीयों ने की है l चीन, ईरान, इटली आदि देशों से जिन सैकड़ों भारतीयों को बचा कर भारत सरकार ले कर आयी है वो प्रशंसा कर रहे हैं l लेकिन नहीं, बेचारे वामपंथी तो मोटी बुद्धि के साथ साथ हीन भावना से भी ग्रसित होते हैं; और इस हीन भावना के कारण एक मोटी चमड़ी इन बुद्धिहीनों की आँखों पर भी चढ़ जाती है; फलस्वरूप प्रतिदिन छपती इन तमाम सकारात्मक खबरों को वे देख ही नहीं पाते l हाँ, हीन भावना ग्रसित इन मोटी बुद्धि वामपंथियों की एक तीसरी आँख अवश्य खुल जाती है जब पूरे विश्व में प्रोपगंडा और पीत-पत्रकारिता के लिए कुख्यात न्यू यॉर्क टाइम्स या वायर जैसे समाचार-पत्रों/पोर्टल पर भारत सरकार के प्रयासों के सम्बन्ध में गैर-तथ्यात्मक या संदर्भहीन बातें परोस दी जाती हैं l लेकिन कर भी क्या कर सकते हैं बेचारे वामपंथी – न बुद्धि है, न आँखें, न बारीक तथ्यों को समझने की हैसियत, और ऊपर से चमड़ी भी मोटी ! खैर जो हो, आप सब देशवासी तो कोरोना की इस संकट घड़ी में अपना ध्यान रखिये, डॉक्टरों और सरकार के निर्देशों का सख्त पालन कीजिये, और सकारात्मक बने रहिये l मोटी बुद्धि वामपंथियों की मसखरी वाली हरकतों पर जी भर कर हंसिये, सकारात्मकता बनाए रखने में यह सहायक होगा l हम सब को हंसाने का तो सद्कर्म कर रहे हैं आखिर ये मोटी बुद्धि मसखरे वामपंथी !
✍🏻पारिजात सिन्हा