वैद्य रामनाथ आर्य
परोपकारी सितंबर प्रथम 2012 में श्री शिवनारायण उपाध्याय ने मेरे लेख जो परोपकारी जुलाई द्वितीय 2012 में छपा है, उस पर लिखा है कि मैंने एक लेख वैदिक संपत्ति एवं आचार्य वैद्यनाथ शास्त्री के विचारों के आधार पर लिखा है। ऐसा नही है, मैंने उपरोक्त पुस्तकों को आज तक देखा भी नही है, पढऩा तो दूर की बात है। ऐसा मालूम होता है कि मेरा लेख व भावना वे समझ नही पाए। मुख्य आशय था सृष्टिसंवत व महर्षि दयानंद संवत पृथक पृथक व्यवहार किये जा रहे हैं। इस पर सभी विद्वान विचार कर एक निर्णय करें व सब पर लागू करें। यह लेख आर्य जगत के सभी विद्वानों अधिकारियों के सामने अपील के रूप में था। उस लेख में मैंने यह भी लिखा था कि जो गणना मैंने की है, वह लगातार छह दशकों तक विद्वानों से पत्राचार द्वारा प्राप्त हुई है। उन विद्वानों में से तीन विद्वानों के नाम लिख रहा हूं। महात्मा ओममुनि जी, वैदिक भक्ति साधना आश्रम, आर्यनगर, रोहतक 2. आचार्य बुद्घदेव जी शास्त्री, गुरूकुल सर्वदानंद साधू आश्रम, अलीगढ़ उ.प्र. 3. श्री ओमकृष्ण जी भटनागर 2/308 विवेकखंड जैमनीनगर, लखनऊ।
सभी विद्वानों ने एक करोड़ बीस लाख 96 हजार वर्ष मानव उत्पत्ति से पूर्व सृष्टि निर्माण में बताए। परंतु गणना में फर्क आया। पत्राचार करने पर महात्मा ओममुनि ने लिखा कि जल उत्पन्न होने के साथ गणना शुरू हुई। श्री ओमकृष्ण जी भटनागर ने लिखा कि सूर्य की पहली किरण के साथ गणना शुरू हुई। इन दोनों पर विचर करने से एवं सत्यार्थ प्रकाश व ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका के स्वाध्याय से गणना सही हो गई जो मैंने लेख में दी है। सृष्टिकाल 4 अरब 32 करोड़ वर्ष में ही सभी गणना आती हैं, अलग अलग नही जोड़कर सभी को सृष्टिकाल के अंतर्गत ही समझें, परंतु विचारों पर संधिकाल का भूत सवार है, जो भ्रम पैदा कर रहा है।
श्री शिवनारायण जी का दूसरा लेख परोपकारी नवंबर प्रथम 2012 में महर्षि दयानंद व सृष्टि संवत शीर्षक से छपा है। यहां भी भ्रम है। खुद भ्रम में है एवं उल्टे सीधे गुणा भाग किये हैं। इतनी मेहनत की जगह यदि सत्यार्थप्रकाश के अष्टम समुल्लास में सृष्टि उत्पत्ति विषय को ध्यान पूर्वक पढ़ते तो फिर कोई भ्रम नही रहता। हम उस विषय को सत्यार्थ प्रकाश से लिख रहे हैं। वहां प्रश्न है मनुष्य की सृष्टि प्रथम हुई या पृथ्विी की? उत्तर में लिखा है-पृथिवी आदि की, क्योंकि पृथिव्यादि के बिना मनुष्य की स्थिति एवं पालन नही हो सकता। इसका अर्थ है कि महर्षि भी मानव वेदसंवत से पहले सृष्टि निर्माण शुरू होना मानते हैं। श्री शिवनारायण जी से निवेदन है कि सृष्टिकाल चार अरब 32 करोड़ वर्ष है, सभी इसी के अंदर है। जहां भी + चिन्ह का प्रयोग किया है, वह गलत है, अंतर्गत का प्रयोग करो।
मेरे विचार जो स्वाध्याय व विद्वानों के निर्देशों से बने हैं वे इस प्रकार हैं। सृष्टिकाल उपस्थित होने पर परमाणुओं में गति होती है, वे अणु बनना शुरू हो जाते हैं। जितने धनीभूत आकाश प्रकट हो जाता है। आगे अणु+अणु मिलकर द्विसरेणु बनते हैं। 1. अणु और मिलकर त्रसरेणु हो जाते हैं। त्रसरेणु+त्रसरेणु मिलने पर वायु उत्पन्न हो जाता है। आकाश बड़ा होता जाता है। वायु के कण जब अग्नि कणों से मिलते हैं तब अग्नि उत्पन्न होती है एवं हमारे सौरमण्डल में किसी एक स्थान पर गोलाकार घूमने से सूर्य की निर्माण क्रिया शुरू होती है। यह सब घोर अंधकार में होता है, जिसका समय 834000 वर्ष है।
सूर्य बनने पर जब उससे प्रथम किरण फूटती है, तब प्रकाश होता है, उसी समय से सृष्टि संवत की गणना शुरू होती है। सूर्य करणों से जलकण टकराने पर जल उत्पन्न होता है। जल से पृथिवी निर्माण शुरू हो जाता है। पहले दलदली फिर कड़ी होती हुई ऊपर उठती जाती है। घास के मैदान, जंगल, पहाड़, कंचनजंघा की चोटयां बर्फ से ढकी हुई ऊपर मानसरोवर झील आदि बनते बनते एक करोड बीस लाख 96 हजार वर्ष पूरे होते हैं, तब अमैथुनी सृष्टि द्वारा मनुष्य पैदा होता है एवं के 2-4 घंटे के फर्क से शुरू के चार मोक्ष से लौटे व्यक्तियों को वेदज्ञान परमात्मा उनके अंत:करण में प्रकाशित कर देता है। इस प्रकार मानव व वेद संवत की गणना शुरू हो जाती है, जो वर्तमान में 1960853113 चल रहा है।
निर्माण प्रक्रिया के अंतर्गत जल में रहने वाले सभी तरह के जलचर, पृथिवी पर हर प्रकार के कीड़े शाकाहारी व मांसाहरी जानवर पक्षी आदि भी पैदा होते हैं। लताएं, औषधियां, फूलों के वृक्ष, अन्न आदि भी पैदा होते हैं। जो सड़कर गलकर जमीन के अंतर वीर्याणु एवं रजोअणु के रूप में संग्रह होते हैं। जो परमात्मा के विधान से आपस में मिलकर शरीर बनाना शुरू करते हैं। 25-30 वर्ष की अवस्था वाले शरीर हो जाते हैं, तब प्रभु उनमें मोक्ष से वापस लौटी आत्माओं का योग कराकर अमैथुनी सृष्टि द्वारा मनुष्य उत्पन्न करते हैं व वेदज्ञान होते हैं।
मेरी गणना सूर्य की प्रथम किरण से मनुष्य एवं वेद उत्पत्ति काल 1,20,96,000 वर्ष, वेद उत्पत्ति से आज तक का काल 1,96,08,53,113 वर्ष कुल योग 19722949113 वर्ष आता है, जो वर्तमान सृष्टि संवत चल रहा है। इस गणना में कहीं भी किसी भी संधिकाल आदि का विवरण नही है। मात्र सृष्टि निर्माण है।
मैं शुरू के लेखों में कहा आया हूं कि सृष्टिकाल चार अरब 32 करोड़ वर्ष में सृष्टि संवत काल चार अरब 31 करोड़ 82 लाख 72 हजार वर्ष एवं वेद व मानव संवत चार अरब 29 करोड़ चालीस लाख अस्सी हजार वर्ष है। आपके विचारों पर संधिकाल का भूत चढ़ गया है, जिससे शुद्घ निर्माण प्रक्रिया की गणना को नही समझकर संधिकाल बताते हैं।
आपने लिखा है कि हठ छोड़ दूं। जबकि मेरा कोई हठ नही है। आपने मुझे चुनौती दी है कि मैं बताऊं कि महर्षि ने संधिकाल स्वीकार किया है। मैंने विद्वानों से निवेदन किया है, किसी भी लेख में चुनौती नही दी। परंतु आप चुनौती की बात करते हैं तो सितंबर प्रथम 2012 में स्वामी ब्रह्मानंद जी ने चुनौती दी है कि कोई विद्वान महर्षि संधिकाल को नही मानते, यह सिद्घ करके बतलावें। अत: इस चुनौती को आप स्वीकार करें एवं उत्तर देने की कृपा करें।
सत्यार्थ प्रकाश का अष्टम समुल्लास सृष्टि उत्पत्ति विषय के अंतर्गत जो सृष्टि निर्माण क्रम व प्रश्नोत्तर आदि दिये हैं, उनके रहते हुए आप एक अरब 96 करोड़ 8 लाख तिरेपन हजार 113 वर्ष मानव व वेदसंवत को सृष्टि संवत सिद्घ करके बतालावें।
सृष्टि गणना में कई प्रश्न पैदा होते हैं। उनमें से मात्र दो प्रश्न आपसे पूछ रहा हूं यदि जानते हो तो बताकर ज्ञानवृद्घि करें 1. सभी परमाणुओं का आकार एवं भार एक सा है या पृथक पृथक? यदि पृथम पृथक है तब कितनी तरह के परमाणु है? 2. अमैथुनी सृष्टि किस वार तिथि पक्ष में हुई एवं मास ऋतु अयन कौन से शुरू हुए?