एक आख्यायिका है कि किसी शहर में लुहार और सुनार की दुकानें पास पास थीं। सुनार सोने के तार को लकड़ी की हथौड़ी से पीटता था किंतु आवाज बहुत कम होती थी। इधर लुहार जब लोहे को लोहे की हथौड़ी से पीटता था तो आवाज बहुत दूर दूर तक जाती थी।
सहसा, सोने ने लोहे से एक दिन पूछा, मेरे मित्र पिटाई तो मेरी भी होती है किंतु मैं इतनी आवाज नही निकालता जितना कि तुम्हारी आवाज का शोर होता है। तुम्हारी चीख तो कलेजे को बींध देती है। रोंगटे खड़े
तब मेरा हृदय फूट फूटकर रोता है और हृदय को बींधने वाली चीख निकल जाती है, क्योंकि अपनों द्वारा पहुंचायी गयी चोट बडी घातक होती है जो सही नही जाती। इस संदर्भ में कवि कहता है-
गैरों से चोट खाई तो,
बर्दाश्त हो जाता है। लेकिन जब अपने चोट पहुंचाते हैं, तो बर्दाश्त नही होता।।
आंखें तो रोती ही हैं।
दिल भी फूट फूटकर रोता है।।