‘एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला’ अर्थात शस्त्र और शास्त्र का उचित समन्वय बनाना आर्य हिंदू संस्कृति का एक बहुत ही गहरा संस्कार है । भारत की चेतना में यही संस्कार समाविष्ट रहा है । इसी संस्कार ने समय आने पर भारत में संत को भी सिपाही बनाने में देर नहीं की । इसी संस्कार के कारण अनेकों ऋषियों ने संसार के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए राजनीति को भी सही दिशा देने का काम किया है । माला और भाला , शस्त्र और शास्त्र , संत और सिपाही की उपासिका भारतीय संस्कृति का यह बेमेल सा दीखने वाला संस्कार केवल इसलिए काम करता रहा कि संसार के सज्जन लोगों का कल्याण हो सके । उनकी भलाई के लिए यदि समय आने पर संत को सिपाही बनना पड़े तो भारत की चेतना में समाविष्ट यह ‘माला और भाला’ का संस्कार उसे इस काम के लिए सहर्ष अनुमति देता है । स्पष्ट है कि संत होने का अभिप्राय निकम्मा हो जाना नहीं है , अपितु संसार के कल्याण के लिए यदि संत को भी शस्त्र उठाना पड़े तो भारतीय धर्म इसकी अनुमति देता है । कुछ लोग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के राजनीति में रहने को यह कहकर कोसते हैं कि संत का राजनीति से क्या लेना देना ? – ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि भारतीय परम्परा में संत अथवा ऋषि लोग ही वास्तव में शासन के सूत्रधार हुआ करते थे । जिनका उद्देश्य लोक कल्याण करना होता था । यहाँ तक कि संसार के सबसे पहले शासक बने मनु महाराज स्वयं भी एक ऋषि ही थे । ऋषि लोग ही यह भली प्रकार जान सकते हैं कि संसार को आर्य बनाना किस लिए आवश्यक है ? – और यह भी कि संसार को आर्य बनाया कैसे जा सकता है ? – ऋषि ही यह भी जानते हैं कि शत्रुओं का संहार करना राजधर्म होना चाहिए । साथ ही शत्रुओं का संहार भी इसलिए किया जाना चाहिए कि उससे सज्जन शक्ति को सुरक्षा प्रदान की जा सके।
इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ‘ कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ को आर्य समाज ने ध्येय वाक्य बनाया है । वेद का आदेश है :–
इंद्रम् वर्धन्तो अप्तुर: कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ।
अपघ्नन्तो अराव्ण: ॥ – ( ऋ. ९ . ६३ . ५ )
भावार्थ – क्रियाशील बनो , सज्जन शक्ति के कल्याण के लिए कार्य करते रहो , प्रभु-महिमा का प्रचार करो , जिससे संसार में सज्जन शक्ति का विस्तार हो , ऐश्वर्य को बढ़ाओ और उसे सज्जनों के कल्याण में लगाओ ,विश्व को आर्य बनाओ , राक्षसों का संहार करो अर्थात राष्ट्र और समाज को किसी भी प्रकार से क्षति पहुंचाने वाले लोगों का विनाश करो।
वास्तव में वेद का यह मंत्र हमारे राजधर्म को तो निश्चित करता ही है , साथ ही यह हमारे सामाजिक धर्म को भी निश्चित करता है । यह राजधर्म का निर्वाह करने वाले लोगों को ही इस बात के लिए अधिकृत नहीं करता कि तुम्हें सज्जन शक्ति के कल्याण के लिए दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का संहार करना है , अपितु यह समाज के भी जागरूक लोगों को इस बात के लिए प्रेरित , उत्साहित और अधिकृत करता है कि वह भी अनाचारी , दुराचारी और आतंकवादी सोच के लोगों के विनाश में शासन का सहयोग करें । जिससे सामाजिक सुरक्षा लोगों को प्राप्त होती रहे और राष्ट्रधर्म का सम्यक निर्वाह करने में सरकार को सहायता प्राप्त होती रहे।
योगक्षेमं वहाम्यहम्’
‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ यह ध्येय वाक्य भारतीय जीवन बीमा निगम का है । श्रीमद्भगवद्गीता के नौवें अध्याय के इस बाईसवें श्लोक का अर्थ है कि सफलता के लिए आवश्यक है कि हम एकाग्र चित्त से ,निश्चित किये हुए अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए सतत स्फूर्ति, उत्साह ,संयम एवं सामर्थ्य से कर्म करते रहें । सफलता हम तक स्वयं चल कर आयेगी ।
यह श्लोक इस प्रकार है—
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।
अर्थात् श्री कृष्ण जी अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हुए जो भक्त जन मेरी उपासना करते हैं , उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं स्वयं वहन करता हूँ ।
विद्वानों का मत है कि “अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करना योग और प्राप्त वस्तु का रक्षण करना क्षेम कहलाता है । ” यजुर्वेद में हम ऐसी ही योगक्षेमकारी स्वाधीनता की प्रार्थना ईश्वर से करते हैं । हम जीवन भर अप्राप्त की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते रहते हैं , साथ ही जो प्राप्त कर लिया है उसकी रक्षा भी पूरे जतन से करने का प्रयास करते हैं ।
कुछ अन्य संस्कृत ध्येय वाक्य
अब हम कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों / प्रतिष्ठानों के बारे में भी यहां पर विचार करते हैं । जिनके संस्कृत ध्येय वाक्य हैं । जैसे :–
— काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ है , जिसका अर्थ है कि विद्या से अमृत की प्राप्ति होती है। विद्या हीन व्यक्ति संसार में धरती पर बोझ होता है। उसी को हमारे यहाँ पर शूद्र कहा गया है । इसलिए इस ध्येय वाक्य का विशेष महत्व है । जिसका अभिप्राय है कि कोई भी व्यक्ति संसार में बिना विद्या के रहना नहीं चाहिए । यह भारत की चिंतनधारा का एक अनिवार्य अंग है।
— गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय हरिद्वार, उत्तराखण्ड का ध्येय वाक्य ‘ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत’ है । इसका अर्थ है ब्रहमचर्य के तप से देव लोग मृत्यु को जीत लेते हैं । ब्रह्मचर्य से जीवनी शक्ति का संचय और संरक्षण दोनों होते हैं , जो व्यक्ति को विद्यावान , तेजस्वी और यशस्वी बनाती है।
— अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने अपना ध्येय वाक्य ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम ‘ – को बनाया है , जिसका अर्थ है – शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। इस शरीर के माध्यम से ही सभी धर्मों का पालन किया जा सकता है । इसलिए शरीर की सुरक्षा और साधना करने के प्रति भी व्यक्ति को सदा सावधान रहना चाहिए अर्थात निरोग रहने के लिए शरीर साधना को अपनाना चाहिए।
— विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ‘ ज्ञान-विज्ञानं विमुक्तये’ – को अपना ध्येय वाक्य घोषित करता है , जिसका अर्थ है कि ज्ञान-विज्ञान से विमुक्ति प्राप्त होती है। ज्ञान विज्ञान में निष्णात होना मनुष्य जीवन का उद्देश्य है । ज्ञान विज्ञान ही मनुष्य को सत्य असत्य का विवेक कराता है । अतः ज्ञान प्राप्ति से ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
— आन्ध्र विश्वविद्यालय ने उपनिषद के संस्कृत वाक्य ‘तेजस्विनावधीतमस्तु ‘ – को अपना ध्येय वाक्य स्वीकार किया है । जिसका अर्थ है कि हमारा ज्ञान हमें तेजवान बनाने वाला हो। भारत ही एक ऐसा देश है जो अपनी मूल प्रार्थना में तेज की उपासना करता है। ईश्वर की तेजस्विता को धारण करने की प्रार्थना हम गायत्री मंत्र में करते हैं । यह इसीलिए किया जाता है कि हम तेजस्वी हों और ऊर्जा के उपासक होकर ऊर्जावान कार्यों में लगे रहें ।
— बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी ने ‘ज्ञानं परमं बलम्’ – को अपना ध्येय वाक्य घोषित किया है । जिसका अर्थ है – ज्ञान सबसे बड़ा बल है। संसार में किसी ज्ञानहीन को देखकर इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि ज्ञानहीन होना सचमुच कितनी निर्बलता का परिचायक है ?
— वनस्थली विद्यापीठ का ध्येय वाक्य है — ‘ सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात विद्या वही है जो मुक्ति अर्थात मोक्ष प्राप्त कराने में सहायक हो । संसार के अज्ञान के बंधन से विद्या ही मुक्त कराती है और जो अज्ञान के बंधनों से या संसार के पाशों से मुक्त हो गया , सचमुच उसका जीवन सफल हो जाता है
— बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय, शिवपुर का ध्येय वाक्य ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधयत’ – है । जिसका अर्थ है कि उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ । वास्तव में किसी भी व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए इससे बेहतर कोई सूक्ति नहीं हो सकती । भारत सदैव आशावादी दृष्टिकोण को अपनाकर चलने वाला देश रहा है । यहां निराशावाद को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाता । यह सूक्ति हमें प्रत्येक परिस्थिति में आशावादी व उत्साही बने रहने के लिए प्रेरित करती है।
— भारतीय प्रशासनिक कर्मचारी महाविद्यालय, हैदराबाद ने अपना ध्येय वाक्य ‘संगच्छध्वं संवदध्वम् ‘ को घोषित किया है , इसका अर्थ है कि साथ चलो, साथ बोलो। वेद संगठन को सबसे प्रबल मानता है। संगठन शक्ति की साधना के लिए व्यक्ति को प्रेरित करते हुए ही वेद ने अपना पूरा एक संगठन सूक्त बनाया है । जिसे अपनाकर व्यक्ति अपनी सांगठनिक क्षमताओं और शक्तियों का सदुपयोग कर सकता है।
— प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, त्रिवेन्द्रम का ध्येय वाक्य ‘कर्म ज्यायो हि अकर्मण:’ – है । जिसका अर्थ है कि कर्म, अकर्म की तुलना में श्रेष्ठ है ।
— देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इन्दौर ने अपना ध्येय वाक्य ‘ धियो यो नः प्रचोदयात् ‘ को स्वीकार किया है जिसका अर्थ है कि हे ईश्वर ! हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करते रहो ।
— गोविंद बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय (पौड़ी) ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को अपना ध्येय वाक्य स्वीकार करता है। जिसका अर्थ है कि हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलें । भारत सृष्टि प्रारंभ से ही प्रकाश की पूजा करने वाला देश रहा है । प्रकाश का अर्थ ऊर्जा से भी है । ऊर्जा अर्थात एनर्जी का उपासक होने से इस देश ने एनर्जी के विभिन्न स्वरूपों को समझा और उसके आधार पर अनेकों अनुसंधान किए।
— गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय ने वेद ‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ – को अपने ध्येय वाक्य की मान्यता प्रदान की है । इसका अभिप्राय है कि हमारी ओर सब दिशाओं से शुभ विचार आएँ। यह तभी संभव है जब हम सार्थक जीवन जीने वाले होंगे। यदि जीवन में निरर्थकता है और अनर्गल बातों में व्यक्ति फंसा रहेगा तो उसे चारों ओर से अशुभ समाचार ही प्राप्त होंगे । परंतु जिसका जीवन सार्थक हो जाता है वह निरर्थकता को समझ जाता है । यही कारण है कि फिर उसके पास सब ओर से शुभ विचार ही आएंगे । इस प्रकार शुभ विचारों का आगमन सार्थक जीवन का बोध कराता है।
— भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के द्वारा अपना ध्येय वाक्य ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ को माना गया है । इस सूक्ति का अर्थ है कि परिश्रम, उत्कृष्टता का मार्ग है । परिश्रम से हमारे कार्यशैली में उत्कृष्टता आती है। हम अपने प्रत्येक कार्य को जब परिश्रम पूर्वक उत्कृष्टता के साथ करते हैं तो वह कार्य योग से जुड़ जाता है।
— भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के द्वारा ‘ज्ञानं परमं ध्येयम् ‘ – अपने ध्येय वाक्य की मान्यता प्रदान की गई है । जिसका तात्पर्य है कि ज्ञान ही हमारा परम ध्येय है। जीवन से ज्ञान प्राप्ति के तथ्य को यदि निकाल दिया तो हम तत्वदर्शी नहीं बन सकते । तत्व दर्शन करने से ही ज्ञान की निर्मलता का बोध होता है।
— भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर ने ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को अपना ध्येय वाक्य घोषित किया है। जिसका अर्थ है कि हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।
— भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नई ‘सिद्धिर्भवति कर्मजा ‘ को अपना ध्येय वाक्य स्वीकार करता है । जिसका अर्थ है कि सफलता का मूलमन्त्र कठिन परिश्रम है। आलस्य और प्रमाद को भारत ने कभी स्वीकार नहीं किया है। इनके स्थान पर वह एक कर्मशील जीवन को प्राथमिकता देता है । परिश्रम से ही व्यक्ति के गुणों की पहचान होती है और परिश्रम के कांटो में ही उसका जीवन गुलाब की भांति खिलता हुआ अच्छा लगता है।
— भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की ‘श्रमं विना न किमपि साध्यम्’ को अपना ध्येय वाक्य घोषित करता है । जिसका अर्थ है कि कोई उपलब्धि श्रम के बिना असम्भव है। स्पष्ट है कि यहां पर श्रम को महत्ता दी गई है । जीवन श्रम के बिना निरर्थक है।
— भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद अपना ध्येय वाक्य ‘विद्या विनियोगाद्विकासः’ को स्वीकार करता है। जिसका तात्पर्य है – विद्या-विनियोग से विकास होता है।
— भारतीय प्रबंधन संस्थान, बंगलौर अपना ध्येय वाक्य ‘तेजस्विनावधीतमस्तु ‘को स्वीकार करता है जिसका तात्पर्य है – हमारा ज्ञान हमें तेजवान बनाए। तेजस्विता को धारण करने से जीवन चमकीला होता है । जीवन में शोध और बोध दोनों का अद्भुत समन्वय हो जाता है।
— भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ का ध्येय वाक्य है – ‘सुप्रबन्धे राष्ट्र समृद्धिः’ अर्थात सुप्रबन्ध से राष्ट्र समृद्ध होता है। सुप्रबंध व्यवस्था को जन्म देता है और प्रत्येक प्रकार की अराजकता को राज्य में फटकने ही नहीं देता।
— भारतीय प्रबंधन संस्थान, कोझीकोड का ध्येय वाक्य है ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ अर्थात कर्मों में कौशल ही योग है।
—- भारतीय सांख्यिकी संस्थान : भिन्नेष्वेकस्य दर्शनम् ‘ को अपना ध्येय वाक्य स्वीकार करता है । जिसका अर्थ है – अनेकता में एकता का दर्शन। वेद का संपूर्ण दर्शन बहुभाषियों और अनेकों संप्रदाय वाले लोगों के बीच समन्वय बनाकर चलने के लिए मानव को अपना उपदेश और संदेश देता है । उसी को भारतीय राजनीति शास्त्र में राजधर्म के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
— केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने ‘असतो मा सद्गमय ‘ को अपना ध्येय वाक्य घोषित किया है । जिसका अर्थ है — हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो । जीवन में किसी भी प्रकार का मिथ्यावाद या भ्रमवाद या मायावाद ना रहे और जीवन शुद्ध , निर्मल , पवित्र ज्ञान का उपासक बन जाए , यह भी भारत की परम्परा है । इसी को दर्शाती हुई यह सूक्ति हमारे मौलिक चिंतन का आधार है।
— केन्द्रीय विद्यालय ‘तत् त्वं पूषन् अपावृणु ‘ को अपना ध्येय वाक्य स्वीकार करता है । जिसका अर्थ है — हे ईश्वर ! आप हमारे लिए ज्ञान पर पड़े आवरण को हटाइए। ज्ञान पर पड़ा हुआ आवरण यदि हट जाता है तो उस परवरदिगार परमपिता परमेश्वर के साक्षात दर्शन हो जाते हैं । अभिप्राय है कि प्रत्येक प्रकार का ज्ञान हमारे अंतः करण से मिट जाए।
— जवाहर नवोदय विद्यालय का ध्येय वाक्य है – प्रज्ञानम ब्रह्म अर्थात उच्च ज्ञान ही ब्रह्म है। जब ज्ञान पूर्णत: तप जाता है तो वह ब्रह्म का ही स्वरुप हो जाता है।
— राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एन॰सी॰ई॰आर॰टी॰)का ‘ विद्ययाऽमृतमश्नुते’ ध्येय वाक्य है । इस संस्कृत सूक्ति का अर्थ है कि विद्या से अमृत की प्राप्ति होती है । देवताओं को समुद्र मंथन के पश्चात अमृत की प्राप्ति होती है । यहां पर समुद्र मंथन का अभिप्राय ज्ञान की प्राप्ति के लिए किए गए तप से है।
— मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, गोरखपुर का ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ ध्येय वाक्य है।जिसका अर्थ है कि कर्मों में कौशल ही हमारे लिए योग है।
— मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद का वाक्य है ‘सिद्धिर्भवति कर्मजा’ अर्थात सफलता का मूलमन्त्र कठिन परिश्रम है । कठिन परिश्रम हमारे जीवन के बारे में यह भी स्पष्ट करता है कि उसमें कहीं पर भी छल कपट या बेईमानी का भाव नहीं है । ऐसे जीवन में किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का हनन करने की प्रवृत्ति नहीं होती।
— इंडिया विश्वविद्यालय का राष्ट्रीय विधि विद्यालय ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ को अपना ध्येय वाक्य घोषित करता है । जिसका अर्थ है – जो धर्म की रक्षा करते हैं, वे धर्म द्वारा रक्षित होते हैं । धर्म वैदिक चिंतन का मूल आधार है । धर्म की रक्षा के लिए ही लगता है कि वेदों का आविर्भाव हुआ । भारत में वेद और धर्म दोनों अन्योन्याश्रित हैं।
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ने ‘श्रुतं मे गोपय’ को अपना ध्येय वाक्य घोषित किया है । जिसका अर्थ है — हे भगवान! मेरे श्रुत अर्थात सीखे हुए की रक्षा करें। सीखे हुए की रक्षा करने का अभिप्राय है कि मुझे इतना शक्ति , सामर्थ्य और विवेक दीजिए कि मैं जो सीखूं उसे आत्मसात भी कर सकूं।
— श्री सत्य सांई विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य है — ‘सत्यं वद् धर्मं चर ‘ अर्थात सत्य बोलें, धर्म के मार्ग पर चलें । भारत में विधि बनाने की अद्भुत परम्परा रही है। वेद भगवान ने भी हमारे लिए यह कहकर कि ‘सत्य बोलो और धर्म पर चलो’- एक विधि का निर्माण किया है ।संसार के लोग यदि वेद के इस आदेश को स्वीकार कर लें या इस विधि व्यवस्था पर चलना सीख लें तो संपूर्ण व्यवस्था में शांति स्थापित हो सकती हैं।
— श्री वैंकटेश्वर विश्वविद्यालय का वाक्य है – ज्ञानं सम्यग् वेक्षणम् अर्थात सम्यक् वेक्षण ही ज्ञान है। सम्यक वेक्षण से सम्यक सोच का निर्माण होता है और सम्यक सोच से वास्तविक सभ्य समाज का निर्माण करने में सहायता प्राप्त होती है।
— संत स्टीफन महाविद्यालय, दिल्ली ने ‘सत्यमेव विजयते नानृतम् ‘ को अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है जिसका अर्थ है – सत्य ही सदैव विजयी होता है, असत्य नहीं। सत्य जीवनाधार है , सत्य सिरजनहार है , सत्य सर्वव्यापक है । ऐसे में सत्य को कभी भी असत्य परास्त नहीं कर सकता।
— कालीकट विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य संस्कृत की यह सूक्ति है – ‘निर्माय कर्मणा श्री ‘अर्थात कर्म के द्वारा श्री अर्थात धनसंपदा का निर्माण करें । यहाँ पर कर्म का अभिप्राय यह नहीं है कि आप जैसे चाहे वैसे कर्म करें । कर्म का अभिप्राय है शुभ कर्मों के माध्यम से श्री प्राप्त करो । वैसे भी श्री शुभ कर्मों से ही प्राप्त हो सकती है। क्योंकि जीवन में श्रेय मार्ग तभी प्राप्त होता है जब शुभ कर्म हमारे जीवन में अंतर समावेशी रहते हैं ।
— कोलम्बो विश्वविद्यालय ने अपना आदर्श वाक्य ‘बुद्धि: सर्वत्र भ्राजते’ को घोषित किया है , जिसका अर्थ है – बुद्धि सर्वत्र प्रकाशमान होती है।
— दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपना आदर्श वाक्य संस्कृत की इस सूक्ति को स्वीकार किया है – ‘निष्ठा धृतिः सत्यम्निष्ठा ।’ अर्थात धृति और सत्य ।
— केरल विश्वविद्यालय ने ‘कर्मणि व्यज्यते प्रज्ञा’ को अपना आदर्श वाक्य माना है । जिसका अर्थ है कि प्रज्ञा अर्थात ज्ञान , कर्म के द्वारा अभिव्यक्त होती है।
— मोराटुवा विश्वविद्यालय ने ‘विद्यैव सर्वधनम ‘ को अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है । जिसका अर्थ है कि विद्या ही सारे प्रकार का धन है।
पेरादेनिया विश्वविद्यालय ने अपना आदर्श वाक्य ‘सर्वस्य लोचनं शास्त्रम् ‘ को माना है । जिसका अर्थ है कि शास्त्र (ज्ञान) सभी का नेत्र है।
— राजस्थान विश्वविद्यालय ‘धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा’ को अपना आदर्श वाक्य स्वीकार करता है। जिसका तात्पर्य है धर्म सारे जगत् की प्रतिष्ठा अर्थात आधार है।
— विश्वेश्वरैय्या राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर ने भी ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ को ही अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है । जिसका अर्थ है – कर्मों में कौशल लाना ही योग है ।
— पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय ने संस्कृत की इस सूक्ति को अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है- ‘युक्तिहीने विचारे तु धर्महानिः प्रजायते ‘ अर्थात युक्तिहीन विचार से धर्म की हानि हो जाती है।
— केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने ‘असतो मा सद्गमय’ अर्थात मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो – को अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है ।
आर्य वीर दल ‘अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्तु’ अर्थात हमारे वीर सर्वत्र विजय प्राप्त करते रहें – को अपना आदर्श वाक्य स्वीकार किया है।
— भारतीय डाक तार विभाग ‘अहर्निशं सेवामहे'(हम) दिनरात सेवा करते हैं को अपना ध्येय वाक्य स्वीकार करता है ।
— नेपाल सरकार ने संस्कृत की इस सूक्ति को अपना आदर्श वाक्य बनाया है – ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ‘अर्थात जननी (माँ) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
— इसी प्रकार इंडोनेशिया – जलसेना ‘जलेष्वेव जयामहे’ जल में ही जीतना चाहिए , बंगलुरु विश्विद्यालय ‘ज्ञानं विज्ञान सहितम’ – ज्ञान-विज्ञान सहित , उस्मानिया विश्वविद्यालय ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ‘अर्थात अन्धकार से मुझे प्रकाश की ओर ले चलो , पंजाब विश्वविद्यालय ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो , हरियाणा बोर्ड ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ‘अर्थात मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। सैनिक स्कूल चित्तौड़ ‘न दैन्यं न पलायनम्: न दीनता न पलायन , मैसूर विश्वविद्यालय ‘ न हि ज्ञानेन सदृशम्’ अर्थात ज्ञान के सदृश कुछ नहीं , असेह राज्य इंडोनेशिया ‘पंचचित : सेना कुमायूँ रेजिमेन्ट ‘ पराक्रमो विजयते ‘ पराक्रम ही विजयी होता है , सेना जम्मू काश्मीर रायफल ‘ प्रस्थ रणवीरता ‘ सेना कश्मीर लाइट इंफैन्ट्री बलिदानं वीर लक्षयं बलिदान ही वीर का लक्ष्य होता है , सैन्य अनुसंधान केंद्र ‘ बलस्य मूलं विज्ञानम ‘ विज्ञान ही बल का मूल अर्थात आधार है , सेना महार रेजिमेन्ट ‘ यश सिद्धि ‘ यश की सिद्धि सैन्य विद्यालय ‘ युद्धं प्रज्ञाय ‘अर्थात प्रज्ञा के लिए युद्ध , सेना गढवाल रायफल ‘ युद्धाय कृत निश्चय ‘ युद्ध करने का निश्चय करके , राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान ‘ योऽनूचानः स नो महान ‘ भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी ‘ योगः कर्मसु कौशलं ‘ कर्मों में कौशल ही योग है , संत जेवियर स्कूल बोकारो ‘ रूपान्तरीकरणीय ‘ भारतीय तट रक्षक ‘ वयम् रक्षामः: हम रक्षा करते हैं , सेना शिक्षा कोर ‘ विद्यैव बलम ‘ विद्या ही बल है , जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय ‘विद्या शक्तिः समस्तानां शक्तिः’ विद्या की शक्ति सबकी शक्ति है , सेना राजपूताना रायफल ‘ वीरभोग्या वसुन्धरा ‘ अर्थात धरती का भोग वीर ही करते हैं , नौ सेना ‘ शं नो वरुणः ‘ मुम्बई विश्विद्यालय ‘ शीलवृतफला विद्या ‘ श्रम मंत्रालय ‘श्रम एव जयते : श्रम ही विजयी होता है , आचार्य नागार्जुन विश्वविद्यालय ‘ सत्ये सर्वं प्रतिष्ठितम् ‘ अर्थात सत्य में सब कुछ प्रतिष्ठित है , मुंबई पुलिस ‘सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय ‘ अर्थात सच्चे लोगों की रक्षा के लिए, दुष्ट लोगों पर नियन्त्रण के लिए ,आल इंडिया रेडियो स:र्वजन हिताय सर्वजनसुखाय ‘ अर्थात सबके हित के लिये, सबके सुख के लिये , गोवा राज्य ‘ सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ‘ अर्थात हम सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े , थल सेना ‘ सेवा अस्माकं धर्मः ‘ अर्थात सेवा हमारा धर्म है , भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ‘ हव्याभिर्भगः सवितुर्वरेण्यं’ श्रीमद्द्यानन्द वेदार्ष महाविद्यालय गुरुकुल नई दिल्ली ‘ पावका नः सरस्वती ‘ सरस्वती हमें पवित्र करने वाली हैं , विश्व हिन्दू परिषद’धर्मो रक्षति रक्षितः ‘(धर्म की) रक्षा की जाय तो धर्म (भी) रक्षा करता है , जैसे आदर्श संस्कृत वाक्य , सूक्ति ,वेद वाक्य या किसी भी ग्रंथ के श्लोक की सूक्ति को अपना आदर्श वाक्य घोषित करते हैं।
संस्कृत के इन ध्येय वाक्यों को पढ़ व सुनकर लगता है कि जैसे आज भी न केवल भारत अपितु भारत के बाहर के वे देश भी भारतीय संस्कृति का गुणगान कर रहे हैं जो कभी भारत की ही परम्पराओं से शासित और अनुशासित रहे। सर्वत्र मां भारती का गुणगान होता हुआ दिखाई देता है। लगता है कि जैसे भारत के प्राण बनकर संस्कृत आज भी भारत का मार्गदर्शन कर रही है। यदि हिंदी भाषी क्षेत्र में स्थित गुरुकुल कांगड़ी में संस्कृत का सम्मान है तो तमिलनाडु या दक्षिण के अन्य भाषा भाषी राज्यों में भी उसे सम्मान मिल रहा है । इतना ही नहीं , श्रीलंका और इंडोनेशिया में भी संस्कृत को सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है। स्पष्ट है कि संस्कृत आर्य संस्कृति और हिंदुत्व की चेतना के मूल स्वर का काम कर रही है । संस्कृत के इतने सम्मान से यह भी पता चलता है कि भारत न केवल अपनी संस्कृति से जुड़े रहने में आनंद अनुभव करता है , अपितु संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो किसी भी शासन के लिए या सेवा प्रतिष्ठान या संस्थान के लिए आदर्श ध्येय वाक्य प्रदान कर सकती है । क्योंकि यह भाषा सनातन की उपासिका है । यह सनातन का प्रचार व प्रसार करने वाली भाषा है । भारत सनातन राष्ट्र इसीलिए है कि यह सनातन मूल्यों की भाषा संस्कृत का ध्वजवाहक राष्ट्र है । संस्कृत के रूप में सर्वत्र फैले इन ध्येय वाक्यों को देखकर लगता है कि संस्कृत भारत के प्राणों में समाई है । भारत आज भी अपने गौरवपूर्ण अतीत से ही मार्गदर्शन प्राप्त कर रहा है। सचमुच भारत का यह अतीत भारत की चेतना में समाया है। जो इन ध्येय वाक्यों के रूप में जीवंत हो उठा है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत