इटली में कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आकर अब तक कुल 3,405 लोगों की मौत हो चुकी है। कोविड-19 की वजह से होने वाली मौतों का यह आंकड़ा किसी भी अन्य देश से ज़्यादा है।
यहां तक कि संक्रमण के केंद्र चीन में होने वाली मौतों से भी ज़्यादा। गुरुवार को इटली में मौत के 427 नए मामले दर्ज किए गए जिससे मौतों का कुल आंकड़ा अचानक से बढ़ गया।
चीन में कोरोना की वजह से होने वाली कुल मौतों का आधिकारिक आंकड़ा 3,245 है,हालांकि इस आंकड़े की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
वैसे चीन में संक्रमण के कुल मामलों की संख्या (81,000) अब भी इटली से ज़्यादा (41,035) है।इटली के प्रधानमंत्री गुज़ेपे कॉन्टे का कहना है कि स्वास्थ्य तंत्र को बचाए रखने के लिए ऐसे क़दम उठाना ज़रूरी है।
आम जनता से लॉकडाउन के नियमों का सख़्ती से पालन करने के लिए कहा जा रहा है,
नियम इतने सख़्त हैं कि इमरजेंसी की स्थिति में ही लोगों को बाहर निकलने की इजाज़त है और वो भी प्रमाण के साथ, अगर कोई झूठ बोलता पाया गया तो उसे जेल की सज़ा भी हो सकती है।हालात इतने ख़राब हैं कि लोग बाल्कनी और छत से तालियां बजाकर और संगीत के ज़रिए एक-दूसरे की हौसला अफ़जाई कर रहे हैं।
हालांकि इन सारी कोशिशों के बावजूद वहां मौतों और नए मामलों का आंकड़ा थमने का नाम नहीं ले रहा है।
लगातार बढ़ते संक्रमण और मौतों के मामलों से जूझते इटली की हालत किसी बेबस देश जैसी हो गई है,मरीज़ इस कदर बढ़ते जा रहे हैं कि अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ गए हैं और डॉक्टरों के सामने ये दुविधा है कि वो किसका इलाज करें और किसे छोड़ें,
इटली में क़रीब 5,200 इंटेंसिव केयर बेड हैं, लेकिन सर्दियों में इनमें से कई रेस्पिरेटरी दिक्क़तों वाले मरीज़ों से भर गए हैं।आमतौर पर जंग में इस तरह के हालात पैदा होते हैं, लेकिन इटली को शांतिकाल में इस तरह की चुनौती भरी स्थिति से दो-चार होना पड़ रहा है।
इसके उलट संक्रमण के केंद्र चीन में नागरिकों के बीच गुरुवार को कोई नया मामला नहीं दर्ज किया गया।
संक्रमण फैलने के बाद ये पहली बार है जब चीन में कोई नया मामला सामने नहीं आया,चीन के लिए यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। हालांकि चीन में 34 ऐसे नए मामले उन लोगों में दर्ज किए गए जो हाल ही में विदेश से वापस लौटे हैं।
यानी एक तरफ़ चीन जहां कोरोना से धीरे-धीरे उबरने लगा है वहीं इटली अब भी इससे बुरी तरह जूझ रहा है।संक्रमण के केंद्र चीन ने कोरोना से लड़ने के लिए कई अभूतपूर्व क़दम उठाए थे।
इन उपायों में पूरे हूबे प्रांत और यहां रहने वाले 5.6 करोड़ लोगों को क्वरंटीइन करने (घर से बाहर निकलने और किसी से मिलने जैसी पाबंदियां लगाना) और इस वायरस की चपेट में आए लोगों के इलाज के लिए महज 10 दिनों में एक अस्थायी अस्पताल का निर्माण करना शामिल था।
इन क़दमों से चीन में यह वायरस क़ाबू में आता दिखा लेकिन बाक़ी की दुनिया में यह दो हफ़्तों में ही 13 गुना बढ़ गया।
(डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख टेड्रस एडॉनम ने कोरोना वायरस को एक पैनडेमिक (एक ऐसी महामारी जो दुनिया के बड़े हिस्से में फैल चुकी हो) घोषित करते हुए कहा कि इससे निबटने के लिए ‘दुनिया भर के देशों को तत्काल और आक्रामक क़दम’ उठाने चाहिए।
हालांकि जानकारों के बीच एक विवाद ये भी है कि क्या लोकतांत्रिक देशों में भी चीन जैसी पाबंदियां लगा पाना संभव है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के सलाहकार डॉक्टर ब्रूस अलवार्ड का कहना है कि दुनिया ने चीन के अनुभव के असली सबक को अभी तक नहीं सीखा है।
उन्होंने कहा, “लोगों को समझाया गया है कि हम किस तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं।उन्हें समझाया गया है कि यह कितना गंभीर है और उन्हें इस लायक बनाया गया है कि वो सरकार के साथ मिलकर उठाए गए क़दमों के प्रभावी होने के लिए काम कर सकें.”
सिंगापुर / दक्षिण कोरिया
इधर दक्षिण कोरिया ने कहा है कि 22 मार्च के बाद से वो यूरोप से आने वाले सभी लोगों का टेस्ट करेगा.पॉज़िटिव पाए जाने पर उन्हें क्वारंटीन कर उनका इलाज किया जाएगा।
अगर टेस्ट के नतीजे निगेटिव रहे तो नागरिकों और लंबी अवधि वाले वीज़ा धारकों को घर पर या फिर सरकारी क्वारंटीन होम में 14 दिनों के लिए दूसरों से अलग-थलग रहने के लिए कहा जाएगा।
इस दौरान यूरोप से आने वालों को रोज़ाना स्वास्थ्य कर्मियों के साथ संपर्क में रहने के लिए कहा जाएगा.दुनिया भर में कोरोना वायरस संक्रमण मामलों की संख्या कुल संख्या अब 220,000 तक पहुंच चुकी है और मौतों का आंकड़ा 9,000 के पार हो चुका है।
वहीं, सिंगापुर ने चीन से सबक लेकर जिस तरह कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखी है, उसकी काफ़ी तारीफ़ हो रही है. सिंगापुर उन देशों में से एक है जहां वायरस का संक्रमण सबसे पहले पहुंचा था।
हालांकि सिंगापुर पूरी मुस्तैदी से संक्रमित व्यक्तियों का पता लगाने और संक्रमण की कोशिशों में जुटा है. यहां तक कि वहां इस काम के लिए ‘कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग’ और जासूसों का इस्तेमाल किया जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सिंगापुर की सक्रियता की तारीफ़ की है।
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