भयभीत होकर कोरोना से नहीं लड़ सकते
ललित गर्ग
इस बात में बड़ी सचाई है कि सबसे बुरा वह रोग होता है, जो आपको भीतर तक भयभीत एवं असुरक्षित कर देता है। असुरक्षा का भाव एवं भय बहुत खतरनाक चीज है। इनदिनों यह भय एवं भाव सम्पूर्ण दुनिया में व्याप्त है, सम्पूर्ण मानव जाति के लिये गंभीर खतरा बन गया है, उसे तबाह कर रहा है। इस भय एवं असुरक्षा के भाव का कारण है कोरोना वायरस। 81 भारतीयों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर आई है। दिल्ली में कोरोना से एक महिला के मौत की खबर भी है। ये सारे वे लोग थे, जो अपनी विदेश यात्रा या विदेश प्रवास के दौरान इस वायरस के संपर्क में आए और उनके साथ ही यह महामारी इस देश में आ गई और जीवन में अनेक संकटों का कारण बन गयी।
कहा जाता है कि अच्छे और बुरे दिन दुनिया में आते-जाते रहते हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि दुनिया की कुछ बड़ी महाशक्तियां सम्पूर्ण मानव जाति के हितों का सौदा अपने तुच्छ निजी स्वार्थों के लिये कर बैठती है। कोरोना वायरस के इस दौर में अमेरिका और चीन के बीच जो जुबानी जंग चल रही है, वह इसका सबसे ताजा उदाहरण है। यह महामारी सबसे पहले चीन के वुहान शहर में फैली और इसी आधार पर अमेरिका ने इसके वायरस को वुहान वायरस का नाम दे दिया। भले ही चीन ने इस पर नाराजगी जाहिर की हो, तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की हो और अपने को निर्दोष साबित करने हुए उसने कोरोना महामारी के लिये अमेरिका को दोषी ठहराने की भी कोशिश की है। लेकिन यह एक बड़ा सत्य है कि बड़ी शक्तियां अब हथियारों एवं परमाणु विस्फोटों से दुनिया को तबाह करने की बजाय अब तरह-तरह के नए कीटाणुओं, जीवाणुओं और वायरस इजाद करने में जुटी है, जो मानव जाति के लिये गंभीर खतरा है और कोरोना वायरस ऐसा ही क्रूर, विनाशकारी एवं विध्वंसक वायरस है, अब जब इसने महामारी का रूप लिया तो लोगों ने चार दशक पहले लिखी गई डीन कूंटज की किताब द आईज ऑफ डार्कनेस खोज निकाली, जिसमें यह दावा किया गया था कि चीन जीवाणु युद्ध के लिए वुहान में वायरस विकसित कर रहा है। इस किताब में इस वायरस को वुहान-400 का नाम दिया गया था। अमेरिका द्वारा दिया गया नाम वुहान वायरस बहुत से लोगों को इसी ओर इशारा करता हुआ दिखा।
चीन दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये इस वायरस से जीवाणु युद्ध चाहता था, लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया इस महामारी से तबाह होती, उससे पहले चीन इसका शिकार हो गया। चूंकि अब यह वायरस समूची दुनिया में फैल चुका है, तो भारत भी उसकी चपेट में है, उसकी चिंताएं भारत से ही जुड़ी नहीं हैं, बल्कि विश्व-व्यापी हो गई हैं और इस समय सिर्फ कोरोना की वजह सम्पूर्ण मानव जाति विनाश के कगार पर पहुंच गयी है और इसकी आशंका से आर्थिक मंदी ही नहीं, बल्कि जन-जीवन ठप्प है, भारत में स्कूलें, कालेज, सिनेमा हाल 31 मार्च 2020 तक बन्द कर दिये गये है, सार्वजनिक कार्यक्रम भी प्रभावित है।
कोरोना वायरस के भय एवं आशंकाओं का असर केवल शेयर बाजार पर ही नहीं, यह भय दूसरे बाजारों एवं जीवन में भी दिखने लगा है, इन विनाशकारी स्थितियों में भी इंसान कितना अनैतिक एवं स्वार्थी बना हुआ है कि सैनेटाइजर से लेकर मास्क तक की वायरस से लड़ने के साधनों की वह कालाबाजारी कर रहा है। जब जीवन ही नहीं रहेगा तो यह कालाबाजारी का धन क्या काम आयेगा? कोरोना वायरस को परास्त करने के लिये हर इंसान को पहले इंसान बनना होगा, तभी वह इस भय को मात देने की क्षमता अर्जित कर सकेगा। एक भयभीत एवं लालची समाज किसी भी दुश्मन को शिकस्त नहीं दे सकता, चाहे वह दुश्मन कोई महामारी ही क्यों न हो। पहली जरूरत यह है कि भय को भगाया जाए, जागरूकता फैलाई जाए, इंसानियत का चैला पहना जाये। किसी महामारी को मात देने के लिए बुद्धि से ज्यादा विवेक कारगर हथियार साबित होते हैं। बुद्धि जितनी प्रखर, तेज होगी उतना भय बढ़ेगा। बुद्धि का काम भय को मिटाना नहीं है। उसका काम है नए-नए भयों को उत्पन्न करना। कोरोना वायरस में यही सब देखने को मिल रहा है।
यह संकट का समय है, महामारी को परास्त करने के लिये संगठित एवं ईमानदार प्रयत्न करने होंगे। यह समय हाथ पर हाथ धरकर बैठने का समय नहीं है। कोरोना वायरस जैसी महामारियां एक बार जब फैलना शुरू करती हैं, तो रातोंरात परेशानियों को कई गुना बढ़ा देती हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पिछले महीने के अंत में इटली में कोरोना वायरस के 600 मरीज थे, लेकिन सिर्फ दस दिनों के अंतराल में ही यह संख्या बढ़कर दस हजार से अधिक हो गई और रातोंरात इटली उन देशों में गिना जाने लगा, जहां कोरोना का आतंक सबसे ज्यादा है। खुद भारत में भी सबसे ज्यादा संक्रमित लोग वहीं से आए हैं। अभी जो स्थिति है, उसमें भारत की तैयारियां संतोषजनक दिख रही हैं, लेकिन हमें भविष्य की आशंकाओं को देखते हुए भी अभी से तैयारी करनी होगी। प्रभावी कदम उठाने होंगे। भले ही हमारे देश में कोरोना प्रभावित लोगों की संख्या चिन्ताजनक नहीं है, फिर भी हमारे देश में भी एकबारगी यही लगता है कि कोरोना वायरस का भय काफी गहरे तक पैठ गया है। दुनिया के अनेक कोरोना प्रभावित देशों में भारतीय फंसे हैं, सरकार ने फिर एक बार ईरान और अन्य देशों में रहने वाले भारतीयों को वहां से लाने का संकल्प दोहराया है। भारतीय लोगों के जीवन रक्षा के लिये यह समय सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती का समय है।
भय का एहसास हमारे सारे उत्साह और इस महामारी से लड़ने की ताकत को फीका कर सकता है। कभी-कभार भयभीत सब होते है, स्वाभाविक भी है। पर हर समय भयभीत बने रहना अनेक समस्याओं को आमंत्रण देना है। भय की यह चरम पराकाष्ठा बताती है कि सोच, विश्वास, जीवन व काम के स्तर पर बदलाव की जरूरत है। स्वामी विवेकानन्द ने कभी कहा था कि भय से दुःख आते हैं, भय से मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयों जन्म लेती है।’ सिर्फ कोरोना का डर ही बाधक नहीं बनता और भी बाधक बनते हैं। मौत का डर, कष्ट का डर, अनिष्ट का डर, अलाभ का डर, जाने-अनजाने अनेक डर सताने लग जाते हैं, पर जिस व्यक्ति का निश्चित लक्ष्य होता है, दृढ़ संकल्प होता है, वह कभी डिगता नहीं और वह कोरोना से लड़ने की क्षमता अर्जित कर लेता है, हमें मिलकर इस वायरस से लड़ना है।
भारत में भयमुक्त वातावरण बनाना जरूरी है। महामारी से जितने लोगों का नुकसान होता है उससे कई गुणों नुकसान भय के कारण होता है। भय एक संवेग है, इमोशन है, एक विकृति है। भय से ही उपजता है तनाव। यह तनाव आदमी से अकरणीय करवाता है। तनाव में आकर आदमी या तो दूसरे को मार देता है या स्वयं को समाप्त कर लेता है। भारत में कोरोना वायरस के भय से मुक्त वातावरण बनाने के लिए बहुत जरूरी होता है कत्र्तव्य-बोध और दायित्व-बोध। कत्र्तव्य की चेतना का जागरण और दायित्व की चेतना का जागरण। क्या यह भय निरंतर सबके सिर पर सवार ही रहेगा? भयभीत समाज सदा रोगग्रस्त रहता है, वह कभी स्वस्थ नहीं हो सकता। भय सबसे बड़ी बीमारी है। भय तब होता है जब दायित्व और कर्त्तव्य की चेतना नहीं जगती। जिस समाज में कर्त्तव्य और दायित्व की चेतना जाग जाती है उसे डरने की जरूरत नहीं होती। ऐसे समाज में कोरोना वायरस निष्प्रभावी ही होगा।
मुख्य संपादक, उगता भारत