भाषा के विषय में जो वर्णन वेद में आया है,वे भी मूलनिवासियों की भाषा के लिए नहीं है।वेदों में आयें हुए ‘ मध्रवाचा ‘ आदि शब्द, जिनको अनार्यों की भाषा कहा जाता है, जांच से सिद्ध नहीं होते कि वे अनार्यों की भाषा के लिए आए है। मिस्टर मूर कहते हैं कि ‘मृध्रवाचा’ से अनार्यो की भाषा किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं होती। इसी प्रकार श्याम वर्ण का वर्णन भी अनार्यों की त्वचा के लिए नहीं आया । प्रोफेसर राँथ अपने कोष में लिखते हैं कि कृष्ण गर्भा और कृष्णयोनी आदि शब्द कृष्ण मेघ के लिए आए हैं,जो काला ढक्कन है।.यही अभिप्राय ए० मारेनीरने के लेख का भी है। बाबू अविनाशचंद्र दास कहते हैं कि जिस प्रकार एक अंग्रेज किसी डाकू अंग्रेज को ‘ ब्लैक गार्ड ‘ कहता है,उसी तरह श्याम वर्ण का वर्णन, जो आर्य ने अपने एक दल के लिए किया है, वह उपमा काले बादलों से ही आई है, जिसे वे वृत्र की खाल कहते हैं ।
इस छानबीन से यह पता लग गया कि वेदों में आए हुए कृष्णयोनि और मृध्रवाचा आदि शब्द मूल निवासियों के लिए नही प्रयुक्त हुए। उल्टा यह सिद्ध हो रहा है कि वेदों में श्याम त्वचा, मृध्रवाचा और दस्यु आदि शब्द बादलों के लिए प्रयुक्त हुए हैं।और युद्वों के वर्णन इंद्र और वृत्र के है,जो वास्तव में विद्युत,सूर्य तथा मेघों के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यहां दस्यु और वृत्र आदि शब्दों पर विचार कर लेने से ही यह सारी उलझन सुलझ जाएगी।
वेदों को पढ़नेवाले जानते हैं कि वेदों में इंद्र और वृत्र का वर्णन बहुतायत से आता है I यह वर्णन युद्ध के रूप में भी आता है। हम चाहते हैं कि यहां पर थोड़े से वेदों के वह वाक्य जिसमें इंद्र,वृत्र,दस्यु, मृध्रवाचा,कृष्णयोनि आदि शब्दों की व्याख्या की गई है, उन्हें पढ़ लिया जाए।जिससे स्पष्ट हो जाए कि यह सब वर्णन पृथ्वी के ऊपर का नहीं है। ऋग्वेद में एक सुक्त सिर्फ इसलिए आता है जिससे इंद्र का वास्तविक स्वरूप समझ में आ जाए।
अर्थात जो सबसे प्रथम उत्पन्न हुआ ,जो पृथ्वी को कम्मपायमान करता है,जो पर्वतों अर्थात बादलों को कुपित करता है, जो अंतरिक्ष में हैं,जो द्यौ को रोके हुए हैं,जो बादलों को मारकर सातों किरणों को मुक्त करता है, जो बादलों में अग्नि उत्पन्न करता है,जो बादलों को नीचे गिराता है,जिसकी किरणें सब दिशाओं में फैली है,Iजो सूर्य और उषा को उत्पन्न करता है,जो जलों का नेता है,जो संसार का पैमाना है,जो दस्युओं-बादलों को मारने वाला है,जो शंबर को पर्वतों- बादलों पर छिन्न- भिन्न करता है, जो बादलों को मारता है और जो वज्रहस्त है, उसे हे मनुष्य ! इंद्र समझो।
अब विचार करके देखना चाहिए कि क्या यह उपर्युक्त इंद्र कोई पृथ्वी का देहधारी राजा है या आकाशीय सर्वप्रधान शक्ति है ? यदि यह आकाशीय शक्ति है,तो फिर यह आकाशीय पदार्थों को ही मारता है और उन्हीं के साथ युद्ध करता है। ऊपर के पर्वत, अहि, दास,दस्यु ,शम्बर आदि शब्द सब आकाश के ही पदार्थ है।निघण्टु में ये सब नाम बादलों के लिए आए है। इंद्र के ही लिए वेद में और भी वर्णन देखने योग्य है।
ऋग्वेद (8/76 /2,3) स्पष्ट करता है जिसका अर्थ इस प्रकार है – इस मरूत् के सखा इंद्र ने वज्र से व्रत्र के सिर के सौ टुकड़े कर दिए । हे मरूत् के सखा इंद्र ! वृत्र को मारकर समुद्र के जलों को उत्पन्न कीजिए। यह स्पष्ट हो गया कि इन्द्र मरूतों अर्थात हवाओं का सखा है, जो बादलों को मारकर समुद्र बनाता है। ऋग्वेद 8/25/ 4 में स्पष्ट कह दिया है कि ‘ महानता मित्रावरुणा सम्राजा देवावसुरा ‘अर्थात मित्र और वरुण दोनों देवों और असुरों के राजा है। मित्र सूर्य है और सभी जानते हैं कि वरुण जल का स्वामी है।सूर्य देवों का राजा और वरूण असुरों का राजा है।ऐसी दशा में वह वरुण बादलों के सिवा और क्या हो सकता है।
क्रमश:
प्रस्तुति देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत