कर्नाटक चुनाव के बाद टूट सकती है भाजपा जद (यू) दोस्ती
आकाश श्रीवास्तव
नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा भाजपा के वर्तमान में सबसे आक्रामक और विकासवादी नेता मोदी पर किए गए हमले को भाजपा कतई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। सूत्रों और मीडिया में चल रही ख़बरों की आधार को मानें तो भाजपा कर्नाटक चुनावों के बाद नीतीश कुमार उर्फ जदयू से सारा नाता तोड़ने का मन बना चुकी है। उर्फ का मतलब यहां सिर्फ इतना सा है कि जैसे कांग्रेस में सोनिया सर्वेसर्वा हैं उसी तरह जदयू में भी नीतिश कुमार सर्वेसर्वा हैं। जेडीयू में भी सारे नेता नीतीश चलीसा का ही गुणगान करते हैं। जी हां हम बता दें कि दो दिन पहले जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जिस तरह से नीतीश कुमार और उनकी पार्टी की नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर परोक्ष और अपरोक्ष से हमला किया है उसे भाजपा कतई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। नीतीश कुमार के खुले हमले से सख्त नाराज भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के मुख्यमंत्री पर जवाबी हमला तेज करते हुए इस बात के मजबूत संकेत दिए हैं कि वह बिहार में सरकार से अलग होने का लगभग मन बना चुकी है। सूत्रों की मुताबिक नीतीश कुमार के रवैये से बीजेपी में बहुत नाराजगी है। यही कारण है कि नीतीश के मोदी पर आक्रामक तेवर के बाद बिहार भाजपा के दिग्गज नेता दिल्ली आ धमके। और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ से मिलकर नीतीश कुमार के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। इन नेताओं में बिहार के भाजपा अध्यक्ष सी.पी. ठाकुर, स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे, गिरिराज सिंह और चंद्रमोहन राज शामिल थे। एक समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी नीतीश के रवैये को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उन्होंने कहा, ‘जो कुछ हुआ, वह नहीं होना चाहिए था।’ हालांकि उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि पार्टी ने बिहार में जेडी(यू) से अलग होने का फैसला किया है या नहीं। ख़बर यह भी है कि मोदी पर हमले से खफा बीजेपी अगले महीने कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार से हट सकती है।
मोदी को लेकर नीतीश की बयानबाजी से भाजपा में इस कदर गुस्सा है कि भाजपा के लगभग सारे नेता नीतीश के खिलाफ लामबंद हो चुके हैं। पार्टी के एक नेता का कहना है कि ‘नीतीश कुमार के इस तरह की सोच और उनकी मोदी पर की गई टिप्पणी को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। भाजपा का कहना है कि 1979 में जनता सरकार को गिराने के लिए नीतीश कुमार के सीनियर समाजवादियों ने सांप्रदायिकता का हौवा खड़ा किया था।’ हम बता दें कि साल 1979 में जनता पार्टी के समाजवादी सदस्यों ने जन संघ के नेताओं के रिश्ते आरएसएस से होने का विरोध करते हुए सरकार से किनारा कर लिया था।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि कोर ग्रुप और संसदीय बोर्ड 5 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद बिहार में जेडी(यू)से नाता तोड़कर सरकार से हटने के बारे में फैसला कर सकता है। इसके बावजूद बीजेपी के अलग होने से नीतीश कुमार की सरकार को कोई खतरा नहीं होगा। नीतिश को 243 सीटों वाली विधानसभा में 120 विधायकों का समर्थन हासिल है। इन हालात में और किसी की सरकार बनने की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में इस बात की संभावनाएं ज्यादा होंगी कि जल्द चुनावों से बचने के लिए नीतिश की पार्टी जेडीयू को कुछ नए सहयोगी मिल जाएं।