Categories
स्वर्णिम इतिहास

बाबर के बेटे कामरान के छक्के छुड़ाने वाला राव खेतसी राठोड़

मुगल बादशाह बाबर के पश्चात उसका साम्राज्य कई भागों में विभक्त हो गया था। उसका एक लड़का कामरान था। जिसने अपनी राजधानी लाहौर और काबुल में बना रखी थी । उसने अपने शासनकाल में एक बार राजस्थान की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार करने का विचार किया । इसके लिए कामरान ने एक विशाल सेना तैयार की और राजस्थान की ओर चल दिया। उसकी यह भयंकर और विशाल सेना भटिंडा और अबोहर के मध्य से निकली और बड़ी तेजी से ससीवाल को नष्ट कर भटनेर को जाकर घेरकर बैठ गई ।

कामरान ने खेतसी राठौड़ के पास अपना दूत भेजकर अपने आने का प्रयोजन बताया और अति शीघ्र उसे अपनी शरण में आने को कहा , अन्यथा गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी। कामरान के इस प्रस्ताव से खेतसी राठोड़ की भौहें तन गई। उसे लगा कि कामरान ने उसके राष्ट्रीय स्वाभिमान को चुनौती दी है। इसलिए उसने अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान को किसी भी मूल्य पर बचाने का संकल्प लिया । खेतसी ने अपने लोगों के माध्यम से कामरान तक सूचना पहुंचा दी कि राष्ट्रीय स्वाभिमान का सौदा करने की बजाय वह युद्ध के मैदान में उसका सामना करना उचित समझेगा।

ऐसा उत्तर पाकर तुर्को ने दुर्ग का घेरा डाल दिया। तुर्कों ने खेतसी को झुकाने के लिए भांति भांति के उपाय करने आरंभ कर दिए । तोपों से भी किले को भारी क्षति पहुंचाई गई। चारों ओर भयानक जनहानि हो रही थी । पर खेतसी था कि झुकने का नाम नहीं ले रहा था । अंत में खेतसी ने किले से बाहर निकलने का निर्णय लिया । उधर तुर्क सेना के सैनिक सीढ़ियां लगाकर भीतर प्रवेश करने में सफल हो रहे थे । तब हिंदू वीरों ने जौहर का निर्णय लिया। केसरिया बाना पहनकर अंतिम युद्ध के लिए सैनिक युद्ध क्षेत्र में कूद पड़े ।

खेतसी का पितामह रावत कांधाल भी महायोद्धा रहा था । आज अपने पितामह द्वारा अर्जित यश और कीर्ति का स्मरण कर और उसके सम्मान को बचाने के लिए खेतसी युद्ध क्षेत्र में शत्रु पर भूखे शेर की भांति टूट पड़ा । चारों ओर घमासान युद्ध हो रहा था। कामरान के सैनिकों ने खेतसी को चारों ओर से घेर लिया । उसका मूल उद्देश्य खेतसी को ही समाप्त करने का था। खेतसी भी वस्तु स्थिति को समझ चुका था। पर जो योद्धा आज केवल मारने मरने का संकल्प लेकर अपने दुर्ग से बाहर निकला हो उसके लिए ऐसे सैनिकों का इस प्रकार घेराव करना कोई भय उत्पन्न करने वाली घटना नहीं थी । उसकी तलवार शत्रुओं को गाजर मूली की तरह काट रही थी। उसका साहस युद्ध क्षेत्र में उसका सबसे बड़ा मित्र बन गया था। इसलिए वह काल बनकर शत्रु का संहार करता जा रहा था। उसकी वीरता सिर चढ़कर बोल रही थी। चारों ओर युद्ध क्षेत्र में शव ही शव दिखाई देने लगे। पर अकेला योद्धा अंततः तब तक विशाल सेना का सामना करता ?

खेतसी के सैनिक भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहे थे। उन सब का शौर्य भी देखने योग्य था। खेतसी युद्ध की पावन भूमि में मातृभूमि की रक्षा करते – करते धराशाई हो गया । ( संदर्भ : नैणसी री ख्यात )

खेतसी ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर हमारी पराक्रमी परंपरा को बलवती किया । जिससे स्वतंत्रता के लिए किए जा रहे संघर्ष की परंपरा भी आगे बढ़ी। वंदन है ऐसे वीर का । वास्तव में अपना अतुल बलिदान देकर खेतसी ने अपनी मातृभूमि की रक्षा की। भटनेर (हनुमानगढ़) में खेतसी का नाम आज तक बड़े सम्मान से लिया जाता है।

माना कि हमारे खेतसी राठौड़ ने अपना बलिदान दिया और वह पराजित हुआ । परंतु इतिहास का यह भी एक सच है कि कामरान भी हिंदुस्तान में टिक नहीं पाया । उसका भी भारत के क्षत्रियों की तलवारों से सामना हुआ जिससे उसे भी शिक्षा मिली कि यहां से उल्टा भागना ही बेहतर है । इतिहास साक्षी है कि वह हिंदुस्तान में सफल नहीं हो पाया और असफल होकर लौट गया। उसकी इस असफलता में हमारे खेतसी राठौड़ और उसके साथियों का बहुत बड़ा योगदान है।

जब भी कोई निष्पक्ष इतिहासकार कामरान की हिंदुस्तान में असफलता का इतिहास लिखेगा तो उसमें खेतसी राठौड़ और उसके साथियों का अमूल्य योगदान सराहे बिना नहीं रह पाएगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

Comment:Cancel reply

Exit mobile version