नई दिल्ली । अखिल भारत हिंदू महासभा ने ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी के उस बयान की कड़ी आलोचना की है जिसमें उन्होंने हिंदू आतंकवाद जैसे शब्द का प्रयोग किया है । इस संबंध में पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप कालिया ने कहा है कि अखिल भारत हिंदू महासभा ईरान के राष्ट्रपति को बता देना चाहती है कि वास्तविक भाईचारे का संदेश और वसुधैव कुटुंबकम की पवित्र भावना यदि किसी धर्म के पास है तो वह केवल सनातन है । जिनके सनातन मूल्यो के कारण ही मानवता बची हुई है। श्री कालिया ने कहा कि हिंदू अब जाग चुका है और वह यह भी जान चुका है कि धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप जिसे आजकल हम यूरेशिया के नाम से जानते हैं , इन सबके मध्य स्थित था। एक समय था जब इस सारे जंबूद्वीप पर आर्यों का शासन था । विधर्मी ईसाइयत और इस्लाम की जब आंधी चली तो सारे जंबू दीप को इन दोनों मजहबों की आंधी ने अपने रंग में रंगने का खूनी अभियान चलाया । आर्यों ने इन दोनों प्रकार की मजहबी आंधियों से लड़ने का भरसक प्रयास किया । परंतु यह खूनी आंधी खूनी क्रांति करने में सफल रही । इस प्रकार आज के यूरेशिया के सारे देश कभी हिंदुओं के ही देश हुआ करते थे । इस्लाम ने अपने नाम के 56 देश खड़े करने में सफलता प्राप्त की तो ईसाइयत ने भी लगभग 4 दर्जन देश मजहब के नाम पर खड़े कर लिये । दोनों ने खूनी संघर्ष के माध्यम से और आर्यों को क्षति पहुंचाते हुए इतना बड़ा भूभाग आर्य हिंदुओं से छीन लिया । हमको इस बात में उलझा दिया कि आर्य विदेशी थे । हम आज तक यह तय नहीं पाए कि आर्य विदेशी थे या हमारे ही पूर्वज थे ? इसी भूलभुलैयां में हम यह भी भूल गए कि हम कहां तक शासन करते थे और हम को काट – काटकर ही इस्लाम और ईसाइयत ने हमारे विशाल भूभाग को हमसे छीन लिया।
श्री कालिया ने कहा कि इतिहास अब करवट ले रहा है और अब हम अपने अस्तित्व को बचाए रखने की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। यदि भारत को भी हम नहीं बचा पाए तो हमारे अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जाएगा । उन्होंने कहा कि हम भाईचारे और प्रेम में विश्वास रखते हैं परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि अपना गला काट कर दूसरों को सौंप देंगे। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी पुण्य भूमि और पितृभूमि मानने की अनिवार्य शर्त को प्रत्येक देशवासी को अपनाना ही होगा । जिससे हम श्रेष्ठ भारत का निर्माण कर सकें।
श्री कालिया ने कहा कि ईरान के राष्ट्रपति को भारत की पवित्र सांस्कृतिक विरासत का ज्ञान नहीं है। हम मित्र को फूल से कोमल हैं तो शत्रु को फौलाद रहे हैं।
राणा प्रताप , शिवा ,शेखर जैसे वीर पूर्वजों का खून हमारी रगों में दौड़ता है। हम पंथनिरपेक्ष भारत के सुहावना में विश्वास रखते हैं जहां सभी को अपने मौलिक अधिकार प्राप्त होंगे परंतु तुष्टीकरण किसी का नहीं होगा । इसलिए ईरान के राष्ट्रपति को चाहिए कि वह भारत से शत्रुता का पंगा ना लें और भारत के अंदरूनी मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप भी न करें।
एक समय हम संपूर्ण जंबूद्वीप पर शासन करते थे तो एक समय फिर वह भी आया जब शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे :- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।
इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं । भरतखंड से ही स्पष्ट है कि भारत जम्बूद्वीप का एक खंड था अर्थात एक टुकड़ा , एक भाग या एक हिस्सा था। जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। यह अजनाभ भरत के पूर्वज थे । भारत को कभी भरतखंड तो कभी अजनाभ खंड जैसे अलग-अलग नामों से क्यों जाना जाता रहा ? – इसको समझने के लिए एक उदाहरण दिया जा सकता है । भारत का सबसे प्राचीन क्षत्रिय राजवंश सूर्यवंश है । जिसे मनु महाराज द्वारा स्थापित किया गया। सूर्यवंश नाम इसे इसलिए दिया गया कि हम सूर्य अर्थात प्रकाश की उपासना करने वाले लोग हैं । आर्यों का शासन सूर्य के नाम से , ऊर्जा के नाम से , प्रकाश के नाम से शासन करेगा । क्योंकि उस का प्रमुख उद्देश्य संसार से अज्ञान के अंधकार को मिटाना होगा । इसलिए क्षत्रियों का यह सूर्यवंश शासन करने लगा ।
कालांतर में इसी वंश में इक्ष्वाकु नाम के प्रसिद्ध पराक्रमी सम्राट हुए तो उनके पराक्रम और यश को अमर रखने के लिए सूर्यवंश का नाम ही इक्ष्वाकु वंश हो गया । फिर इसी में रघु नाम के प्रतापी शासक हुए तो इसी कुल का नाम आगे चलकर रघुवंश हो गया। अब रामचंद्र जी सूर्यवंशी भी हैं , इक्ष्वाकु वंशी भी हैं , और रघुवंशी भी हैं । जब उनको इन तीनों नामों से पुकारा जाता है तो इससे एक ही वंश परंपरा स्पष्ट होती है । इसी प्रकार भारत के बारे में समझ लेना चाहिए कि अजनाभ खंड कहो या भरतखंड कहो या आर्यावर्त कहो या भारत कहो – यह सभी एक ही नाम परंपरा को स्पष्ट करते हैं ।
इस भरत खंड के भी नौ खंड थे- इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।
आज अपने इस गौरवपूर्ण इतिहास को समझ कर उन षड्यंत्रों के प्रति सावधान , सचेत , सचेष्ट और उठ खड़े होने की आवश्यकता है जो आर्यों के या हिंदुओं के अस्तित्व को ही मिटा देना चाहते हैं। अपने गौरवपूर्ण अतीत को पहचानो और वर्तमान को संवार कर उज्जवल भविष्य की योजना पर विचार करो। भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति इसी उद्देश्य से कार्य कर रही है। उसके साथ जुड़िए और देश सेवा का अवसर प्राप्त कीजिए।
यह भारत वर्ष अफगानिस्तान के हिन्दुकुश पर्वतमाला से अरुणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमाल की चोटियों से कन्याकुमारी तक फैला था। दूसरी और यह हिन्दूकुश से अरब सागर तक और अरुणाचल से बर्मा तक फैला था। इसके अंतर्गत वर्तमामान के अफगानिस्तान बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि देश आते थे। इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
इस भरत खंड में कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर, अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण आदि रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए थे।