गतांक से आगे…
3- गरुड़ प्रवृत्ति:- गरुड़ प्रवृत्ति को गिद्ध प्रवृत्ति भी कहते हैं। गरुण ऐसा पक्षी है,जो बड़ी ऊंची और लंबी उड़ान भरता है। इसलिए उसे अपने पंखों पर बड़ा घमंड होता है। इस घमंड के कारण वह अन्य पक्षियों को हेय और अपने आप को श्रेष्ठ समझता है। उसका यह अहंकार जब टूटता है,जब वह किसी वायु यान से टकराता है। तत्क्षण वह स्वयं भी मरता है और वायुयान भी दुर्घटनाग्रस्त होता है। अतः मनुष्य को गरुड की तरह अंहकारी नही होना चाहिए। अंहकार मनुष्य का सर्वनाश करा देता है। इस संदर्भ में कवि कहता है :-
अहंकार में तीनों गए, धन वैभव और वंश।
ना मानो तो देख लो, रावण कौरव कंस॥
गरुड़ अथवा गिद्ध जहां अंहकारी होता है,वहां उसमें एक मुख्य दोष यह भी होता है कि वह अतिलुब्ध होता है,अपहारी होता है अर्थात् बहुत अधिक लालची होता है। परमपिता परमात्मा ने इस वसुंधरा पर अन्न-औषधि, अनेकों प्रकार के व्यंजन और मिष्ठान बनाये हैं।मनमोहक फल, फूल और सुंदर बाग बगीचे,पहाड़ों की दिलकश और रमणीक वादियां बनाई है,किंतु आनन्त आकाश में उड़ता हुआ गिद्ध जिसे(Eagle eyed) यानि कि sharp sighted अर्थात् सुदूरदर्शी सूक्ष्मदर्शी भी कहते हैं।ऐसा उसे उसकी पैनी नजर के कारण कहते हैं किंतु उसकी तेज निगाह वसुंधरा की सुंदरतम वस्तुओं पर नहीं टिकती है। वह तो इतनी ऊंचाई पर पहुंचने पर भी उसकी नजर तो मरे हुए और सड़े हुए पशु पर टिकती है। ठीक इसी प्रकार कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जीवन में ऊंचे-ऊंचे पद और प्रतिष्ठा को तो प्राप्त कर लेते हैं किंतु उनकी दृष्टि गिद्ध की तरह लालची होती है जिसके वशीभूत होकर वे रिश्वत लेते हैं,देश में बड़े-बड़े घोटाले करते हैं।अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ते हैं और खुंदक निकालते हैं,बदले की भावना से ग्रस्त रहते हैं। बड़प्पन पाने पर भी नजर और नीयत उनकी गिद्ध जैसी रहती है जबकि बड़प्पन पाने पर मनुष्य को क्षमाशील और उदार होना चाहिए और गिद्ध प्रवृत्ति से बचना चाहिए।
4 – उलूक-प्रवृत्ति:- उलूक – प्रवृत्ति से अभिप्राय है उल्लू जैसी प्रवृत्ति। उल्लू ऐसा पक्षी है, जो जीवन भर अंधकार में रहता है। सूर्य के प्रकाश में सबको दिखाई देता है किंतु चमगादड़ और उल्लू सूर्य के प्रकाश में भी अंधे होकर भटकते हैं।ऐसे ही मनुष्य के मन में जब उल्लू- प्रवृत्ति जाग्रत होती है,तो वह उल्लू की तरह भटकता है। ऐसे व्यक्ति को चाहे ब्रह्मा भी समझाये किंतु उसकी समझ में नहीं आता है। जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को समझाया किंतु उसकी समझ में सिवाय युद्ध के कुछ समझ में नहीं आया था। याद रखो, भौतिक प्रकाश में भटका हुआ मनुष्य तो संभाल भी सकता है किंतु बौद्धिक अंधकार में जब मनुष्य भटकता है, तो राष्ट्र,समाज व परिवार समूल नष्ट हो जाते है। जैसा कि महाभारत में हुआ। पितामह भीष्म महाभारत के युद्ध में सबसे अधिक वयोवृद्ध व्यक्ति थे किंतु जब उनकी ही कुलवधू द्रोपदी को भारी सभा में निर्वस्त्र किया जा रहा था तथा अभिमन्यु को छल से मारा गया, पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह बनाया गया इत्यादि। ऐसे अवसर थे जहां उन्होंने विरोध तक भी नहीं किया। वह बौद्धिक अंधकार में भटक गए जबकि पितामह भीष्म धर्म और राजनीति के महान ज्ञाता थे। इसलिए मनुष्य को उलूक प्रवृति से सदा सावधान रहना चाहिए ताकि उसका पद्स्खलन ना हो। उसके विवेक का दीपक कभी ना बुझे, वह स्वयं प्रकाशित रहे और संसार को भी आलोकित करे,मार्ग प्रशस्त करे।
क्रमशः
प्रोफेसर विजेंद्र सिंह आर्य
मुख्य संरक्षक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत