सुशील झा
सिविल सेवाओं में अब अंग्रेज़ी अनिवार्य ही नहीं बल्कि अंग्रेज़ी में बड़ा स्कोर फायदे का सौदा होगा। कलेक्टर बनने के लिए भारत की भाषाएँ जानना अब ज़रूरी नहीं हैं, पर अगर क्लिक करें आपको अंग्रेजी नहीं आती तो आप सिविल सेवा परीक्षा में नहीं बैठ सकते। संघ लोकसेवा आयोग के इन नए नियमों के लागू होने के बाद ये मामला उबाल पर है।
बुधवार को कई सांसद सरकार के कार्मिक मंत्री से मिलकर इस मुद्दे को उठाने वाले हैं। राज्यसभा में तेलुगु देसम पार्टी के नेता पीसी रमेश ने इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्री नारायणस्वामी को चिट्ठी लिखी है।
प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लेने वाले छात्र अलग उत्तेजित हैं। भारतीय भाषाओं को किनारे कर अंग्रेजी को प्राथमिकता देना हजारों सपनों के साथ खिलवाड़ की तरह देखा जा रहा है।
अशोक वाजपेयी क्लिक करें हिंदी के कवि हैं और सेवानिवृत्त आईएएस भी। नाराज़ वे भी हैं, ”मेरे वक्त अंग्रेजी ही (लोकसेवा प्रतियोगिता की भाषा) थी। भारतीय भाषाएं बाद में जुड़ीं। अब उन्हें परीक्षा से हटाने का कदम बाधा पैदा करता है। आईएएस या आईपीएस अफ़सर काम तो राज्य में ही करेगा। उसके लिए क्षेत्रीय भाषा जानना ज़रुरी है। संघ लोकसेवा आयोग में परीक्षाओं के नए नियम निगवेकर कमिटी ने बनाए थे जिसे अब कैबिनेट मंजूरी के बाद लागू किया जा रहा है। नए नियमों के तहत कोई भी परीक्षार्थी तब तक किसी क्षेत्रीय भाषा में परीक्षा नहीं दे सकता जब तक और 25 परीक्षार्थी इस भाषा में परीक्षा न दे रहे हों।
यूपीएससी अपनी परीक्षाओं के लिए किसी भाषा को अपनाए ये इस पर निर्भर होना चाहिए कि उच्च शिक्षा में वो शिक्षा कितना विकास कर रही है और सिर्फ आठवीं अनुसूची में भाषा के शामिल होने को यूपीएससी इस बात का आधार न बनाए कि वो उस भाषा में परीक्षा ले। 2.हर परीक्षार्थी के लिए हिंदी या अंग्रेज़ी में सिविल सेवा की परीक्षा लिखने का विकल्प हो।
3.सिविल सेवा परीक्षाओं में परीक्षार्थियों को अपने पर्चे ( भारतीय भाषा और अंग्रेजी के अनिवार्य पर्चे के अलावा) आठवीं अनुसूची में शामिल किसी भी भाषा में लिखने दिया जाए अगर परीक्षार्थी ने स्नात्तक की परीक्षा उस भाषा में हुई हो तो।
4.यूपीएससी की परीक्षाओं में समानता और स्टैंडर्ड बरकरार रखने के लिए ये आवश्यक होगा कि किसी एक भाषा में परीक्षा आयोजित करने के लिए कम से कम उस भाषा में परीक्षा देने के लिए 25 उम्मीदवार हों।
5.उच्च शिक्षा में भाषाओ के विकास को ध्यान में रखते हुए यूपीएससी इस नीति की तीन साल के अंतराल पर समीक्षा कर सकती है इसके अलावा क्लिक करें अंग्रेजी़ भाषा के नंबर भी स्कोर में जोड़े जाने का प्रावधान भी कई लोगों को नागवार गुज़रा है। पुराने नियमों के तहत अंग्रेजी भाषा के अलावा परीक्षार्थी आठवीं अनुसूची की किसी भी भाषा में एक पेपर लिख सकते थे जिसमें सिर्फ पास करना अनिवार्य था।
अब अन्य भाषाओं को हटा दिया गया है और सिर्फ अंग्रेज़ी रखी गई और इसमें ज्यादा नंबर लाने से परीक्षार्थी को लाभ दिया गया है।
सिविल सेवा की तैयार कर रहे एक छात्र चंदन शर्मा कहते हैं कि इससे हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों को बहुत नुकसान होगा। वो कहते हैं, ”अब लिखित परीक्षा में दो महीने से कम है। ऐसे में पढ़ने की सामग्री कहां से मिलेगी। अंग्रेज़ी में तो पहले पास मार्क ही ज़रुरी था। हम जैसे लोग जो हिंदी पट्टी के गांवों से हैं उनके लिए कठिन होगा परीक्षा पास करना। इस मुद्दे को तेलुगु देसम पार्टी के सांसद पीसी रमेश ने सदन में भी उठाया था। मंगलवार को बीबीसी से बात करते हुए रमेश ने कहा, ”मैंने तेलुगु भाषा को हटाने का मुद्दा उठाया लेकिन मैंने पाया कि कई और क्षेत्रीय सांसद इस मुद्दे पर मेरे साथ थे। सबने मेरा समर्थन किया। क्षेत्रीय भाषाओं के बच्चों को बहुत नुकसान होगा। मैंने मंत्री नारायणस्वामी को चिट्ठी लिखी है और हम बुधवार को कुछ सासंदों को लेकर उनसे मुलाक़ात भी करने की कोशिश करेंगे। इस मुद्दे पर जब बीबीसी ने संघ लोक सेवा आयोग में बात करने की कोशिश की तो किसी ने बात नहीं की।
कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में था तो एक दलित लड़की ने तेलुगु में इंटरव्यू दिया था। उसकी प्रतिभा का जवाब नहीं था किसी के पास लेकिन वो अंग्रेज़ी नहीं जानती थी। अब वैसे लोगों का क्या होगा। ये एक किस्म की नए तरह की औपनिवेशिकता है जो समझती है कि अंग्रेज़ी ही भवसागर पार करा सकती है। एक अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर इतना ही कहा कि ये अधिसूचना सरकार से आई है और आयोग का काम सिर्फ और सिर्फ अधिसूचना का पालन करना है। संघ लोकसेवा आयोग की तरफ से इंटरव्यू ले चुके अशोक वाजपेयी इस सरकारी रवैये की कड़ी आलोचना करते हैं, ”कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में था तो एक दलित लड़की ने तेलुगु में इंटरव्यू दिया था। उसकी प्रतिभा का जवाब नहीं था किसी के पास लेकिन वो अंग्रेज़ी नहीं जानती थी। अब वैसे लोगों का क्या होगा। ये एक किस्म की नए तरह की औपनिवेशिकता है जो समझती है कि अंग्रेज़ी ही भवसागर पार करा सकती है।’निगवेकर कमिटी की सिफारिशें सरकार ने लागू तो कर दी हैं लेकिन बड़े पैमाने पर सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा है।
निजी क्षेत्र की नौकरियों में पहले से ही अंग्रेज़ी का महत्व बढ़ा है लेकिन लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं के मेधावी छात्र बेहतर करते रहे हैं। हालांकि अब नई व्यवस्था में ये कहना मुश्किल होगा कि ग्रामीण और क्षेत्रीय भाषा बोलने वाले बच्चे कितना बेहतर कर सकेंगे।
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