डा. बिमला रानी
अंधे को अंधा नही कहकर सूरदास कहो तो ज्यादा अच्छा। ठीक भी है भाषा में शिष्टाचार होना आवश्यक है परंतु माफ करना मेरे पास मोटापे को संबोधित करने के लिए सूरदास जैसा शब्द नही है। मैं यह भी जानता हूं कि मोटे लोग नही चाहते कि उनको मोटा कहा जाए और यह भी नही चाहते कि कोई उनको मोटापा करने कम करने का लेक्चर दे। किस तरह बात करते हें मोटे लोग अपने मोटापे को अक्सर वो कहेंगे बाय वा वायु हो गयी है तो कुछ अन्य कहेंगे चर्बी बढ़ गयी है। कोई बिरला ही मिलता है जो यह कहे कि उसका वजन बढ़ गया है उसकी खाने पीने की गलती के कारण। औरतों में यह धारण अक्सर पाई गयी है कि उनका वजन डिलीवरी या सिजेरियन ऑपरेशन या बच्चे दानी के ऑपरेशन के बाद बढ़ गया और कुछ इसको मीनोपोज से जोड़ देती हैं। जिन लोगों को घुटने में दर्द होता है वो अपने मोटापे का ठीकरा घुटनों पर फोड़ते हैं, भले ही उनके घुटने जिंदगी भर उनका नाजायज बोझ उठाते रहे हों। क्या करें घुटनों में इतना दर्द रहता है कि चला फिर नही जाता और इसलिए बदन पर सूजन की संज्ञा देना पसंद करते हैं। ठीक भी है जब आप भोजन करते हैं तो दोष प्रकृति का होता है परंतु जब आप स्वयं को मोटा कहे हो तो दोष भी स्वयं का ही लगता है। मेरे अपने तजुर्वे में दस में से नौ लोग यह नही मानते हैँ कि मोटापा उनके गलत व ज्यादा खाने पीने की वजह से है। क्या समझते हैं ये लोग अपने मोटापे का कारण? उनका खाना पीना सही है और मोटापा उनकी केस मैजिनेठिक है क्योंकि परिवार में अक्सर और लोग भी मोटे होते हैं।
कुछ लोग तो आसानी से मानते ही नही कि वो मौटे हैं। उनका व्यायाम का टाइम नही मिलता। चलें कैसे या उनके घुटनों में दर्द रहता है या कमर का दर्द उनका पीछा नही छोड़ता। मुश्किल से दस प्रतिशत मोटापे से ग्रसित लोग यह मानते हैं कि वो ज्यादा व गलत खाते हैं। नुकसान है मोटापे से? इंसुलिन रेसिस्टैंस व आईप 2 डाईबिटिज जो अक्सर 40 वर्ष की आयु के आसपास होती है उसकी संभावना बहुत बढ़ जाती है और दबाईयों से आम मरीजों के मुकाबले ब्लड प्रेशर काक कंट्रोल करना मुश्किल होता है। अगर सभी कारणों को मिलाएं तो मोटे लोगों को सामान्य वजन वाले लोगों की अपेक्षा 50 से 100 प्रतिशत असमय मृत्यु की संभावना होता है। अमेरिका में हर साल 3,00,000 लोग मोटापे से आयु 2 से 5 वर्ष कम हो जाती है। परंतु अगर मोटापा बहुत ज्यादा है तो आयु 13 वर्ष कम हो जाती है। खून में वसा के बढ़ जाने से हार्ट अटैक व स्ट्रसेक की संभावना ज्यादा हो जाती है। फेफड़ों सांस की बीमारी ज्यादा होती है। अक्सर खर्राटों की बीमारी जिससे रात कीनींद में बेचैनी रहती है व दिन में नींद के झांके आते हैं। लीवरमें फटे के जमाव से नॉन आलकोहेलिक लिवर डिसीज की ज्यादा संभावना।