रामकुमार वर्मा
हम प्राय: देखते हैं कि हम भगवान की खूब पूजा करते हैं भजन भी करते हैं दान भी करते हैं, भंडारा भी करते हैं रोज मंदिर जाकर भगवान के दर्शन भी करते हैं, व्रत भी रखते हैं यानी कि भगवान से खूब धन, अच्छा स्वास्थ्य पुत्र, मकान दुकान आदि आदि पाने के लिए जो जो भी तरीके कोई भी बताता है सभी करते हैं परंतु परिणाम में हमें अधिकांशत: मानसिक व आत्मिक शांति नही मिलती है। जीवन में तनाव नही घटता है। ब्लड प्रेशर हृदय रोग, थायराइड डायबिटीज आदि भयंकर रोग हमेशा घेरे रहते हैं।
कभी हमने सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? यदि नही तो कृपया सोचें और नीचे बताए तरीके के अवास्तविक देखें-
हमने वास्तव में धर्म का जो वास्तविक स्वरूप है, उसे समझने की कोशिश नही की है। हम धर्म के अवास्तविक रूप में ही उलझे हुए हैं।
भगवान और कुछ नही, एक परमशक्ति है जो पूर्ण ब्राह्मण को चलाती हैं। वह एक विशुद्घ निर्गल, निष्कपट, निर्मोही आत्मा है जो मानव अपनी आत्मा को भगवान की आत्मा जैसी विशुद्घ निर्मल, निष्कपट बना लेता है उसकी आत्मा भगवान की आत्मा से जुड़ जाती है और व्यति योगी सिद्घ महात्मा, आचार्य उपाध्या आदि आदि बन जाता है। उसके जीवन में मन में, आत्मा में परमशांति आ जाती है।
हमने कुछ लोगों को यह कहते सुना है कि आज हमने व्रत रखा हुआ है आज हम सिगरेट पान तंबाकू मंदिरा मांस आदि नही खाएंगे। इसका तात्पर्य यह हुआ कि व्रत के दिन अक्षम्य वस्तुएं नही खाएंगे। परंतु कल से फिर ये चीजें खानी शुरू कर देंगे। भाई यह क्या है? क्या हम अभक्ष्य चीजों को हमेशा के लिए छोड़ने का व्रत नही ले सकते हैं?
यदि हम सच्चे व्रती बनना चाहते हैं तो व्रत के दिन ना खायी जाने वाली अभक्ष्य चीजों को हमेशा के लिए छोड़ दें और भगवान को और अपने आपको धोखा न दें।
हम अपने जीवन से विकारों केा धीरे धीरे निकालें तभी हमारी आत्मा, मन, शरीर, निर्मल होता जाएगा और उस विशुद्घ परम आत्मा से जुडने योग करने लायक हो जाएगा। हम टीवी में ऐसे प्रोग्राम देखते हैं जिनसे हमारे मन मस्तिष्क पर बुरे असर हमारे जीवन में बुरे विचार हमारे में राज नये नये परिधान, जेवर भौतिक वस्तुएं खरीदने के विचार, वस्तुएं आकर हमारे जीवन में अशांति व विकारों को जनम देती हैं। अत: हम अपना जीवन अशांति मय बना रहे हैं।
वस्तुत: हमें कोई भी कार्यक्रम देखने से पहले उसके स्तर की सूक्ष्मता से जांच कर लेनी चाहिए कि क्या यह कार्यक्रम हमारे जीवन में मन में आत्मा में विकारों को दूर करने में सहायक होगा अथवा विकारों को बढ़ाएगा। आजकल परिवारों में सम्मान की कमी आपस में सदभाव की कमी स्वार्थपरता में वृद्घि आदि विकार इन्हीं कार्यक्रमों के परिणाम हैं। एक दूसरे को देख देख कर उससे आगे बढ़ने की प्रवृत्ति उसे नीचा दिखाने की प्रवृत्ति एक दूसरे के साथ देने की प्रवृत्ति एक दूसरे का सम्मान न करने की प्रवृत्ति धीरे धीरे हमारे जीवन में बढ़ती जा रही है और वही हमारे शारीरिक मानसिक आत्मिक क्षण व अशांति व्याकुलता तनाव बढ़ाने का मुख्य कारण है।
जब तक हम अपनी जीवन शैली में जबरदस्त बदलाव नही करेंगे, दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार नही करेंगे जो हम उनसे अपने प्रति चाहते हैं तब तक हम अपने जीवन को शांतिमय नही बना सकेंगे। अत: अपने सारे विकार रूपी जहर को उस परम पिता परमआत्मा प्रभु को दें और अपने जीवन को निष्कलंक, निष्कपट, निश्चल, निराकुल शांतिमय बनावें। यही सभी पर्वों, व्रतों, भजनों, पूजा आदि का निचोड़ है।
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