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दलित चिंतकों के इतिहास के ज्ञान की सीमा

दलित चिंतकों के इतिहास ज्ञान की सीमा मध्य काल में सम्राट अशोक और आधुनिक काल में अम्बेडकर तक सीमित हो जाती हैं। इसका प्रमाण वे अपनी भड़ास निकाल कर देते रहते हैं। आज एक अन्य नमूना उन्होंने दिया। महिला दिवस पर लिखते है कि भारत के इतिहास की सर्वप्रथम महिला शिक्षिका फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले हैं।

यहाँ शब्दों का चयन गलत है। निस्संदेह सावित्री बाई फुले का कार्य प्रशंसा के योग्य एवं अनुकरणीय है। मगर भारतीय इतिहास बड़ा लम्बा काल हैं। इसे कुछ सदियों तक सीमित करना अज्ञानता का बोधक है। प्राचीन काल में गार्गी-मैत्रयी आदि विदुषी स्त्रियां थी जो शास्त्रार्थ करती थी। कैकई जैसी क्षत्राणी थी जो युद्ध में भाग लेती थी। कौशलया जैसी साधक थी जो नित्य अग्निहोत्र कर वेदों का पाठ करती थी। ऋग्वेद में तो 64 ऋषिकाएँ अर्थात मंत्र द्रष्टा स्त्रियों का वर्णन भी मिलता हैं जो वेद मन्त्रों को आत्मसात कर उसके सत्यार्थ पर चिंतन-मनन करती थी। घोषा, लोपामुद्रा आदि वैदिक ऋषिकाएँ अपने पांडित्य एवं ज्ञान से संसार का मार्गदर्शन करती थी। सावित्री बाई पहले का कार्य क्षेत्र केवल 19 वीं सदी के आखिरी दशकों तक मिलता हैं। उससे पहले कार्य करने वाली महिलाओं को स्मरण न करना अन्याय कहा जायेगा।

डॉ विवेक आर्य

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