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फारसी में यही नाम है नीम के वृक्ष का आजाद दरख़्त -ए- हिंद…. अरब ,फारस वालों ने यही नाम भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले नीम के वृक्ष को दिया… नीम उन देशों में भी पाया जाता है जो कभी भारतीय भूभाग से कटकर अलग हो गए… . अर्थात नीम केवल भारतवर्ष में ही पाया जाता है | अंग्रेज वनस्पति शास्त्रियों ने भी इस नाम को यथावत स्वीकार किया नीम का वानस्पतिक वैज्ञानिक नामकरण “आजाद दरख़्त- इंडिका” रख दिया| संस्कृत में नीम क नाम उसके विषय में सार्थक सहज वर्णन कर देता है… संस्कृत में नीम को कहते हैं अरिष्ट..इसका अर्थ होता है ” पूर्ण ,कभी ना खराब होने वाला” नीम में किसी भी दृष्टिकोण से कोई कमी नहीं है अपने आप में पूर्णता को सहेजे हुए हैं ना एकदम इस पर पतझड़ है आसानी से आंधी तूफान में उखड़ता नहीं है ना ही वातावरण पर कोई दुष्प्रभाव छोड़ता है…|

डेढ़ सौ वर्ष पहले तक नीम केवल भारत में ही पाया जाता था डेढ़ सौ वर्ष के दौरान यह भारत से ही ऑस्ट्रेलिया अफ्रीका अमेरिका पहुंच गया है | जैसे ही फागुन मास खत्म होता है अर्थात होली से अगले दिन चैत्र मास प्रारंभ होता है तो नीम के वृक्ष पर नई कोपले आने का सिलसिला शुरू हो जाता है , जो लाल गुलाबी से लेकर बैंगनी रंग की होती…. नीम की इन कोपल 8-10 की संख्या में होली से लेकर अगले 15 दिन तक खाली पेट सेवन कर लिया जाए तो आप पूरे वर्ष भर तमाम तरीके के ज्वर ,liver ,kidney डिजीज, बैक्टीरियल वायरल जनित बीमारियों से इम्यूनिटी निजात पा लेते हैं… |

यह कोपल सहज सुलभ निरापद निशुल्क प्राकृतिक टीकाकरण है…. यह ईश्वर की व्यवस्था या सेवा प्रकृति में चैत्र के महीने में मौजूद उपलब्ध रहती है…!

नीम ही केवल ऐसा वृक्ष है जो सूर्य देवता की ऊर्जा का अधिकतम इस्तेमाल ,सदुपयोग करता है| नीम की पत्तियों की केमिस्ट्री बहुत ही जटिल है 300 से ज्यादा कंपाउंड इसकी पत्तियों में पाए जाते हैं… चैत्र महीने में नीम की पत्तियों में विशेष रोग नाशक गुणधर्म उच्चतम अवस्था में जागृत हो जाता है.. ऐसे में हमें चूकना नहीं चाहिए… नीम के महा गुणकारी वृक्ष का पान अवश्य करना चाहिए|

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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