मन भेद मिटाने वाला पर्व है होली
होली जहाँ एक हो जाने का अर्थात् समस्त रंगों-जांति पाँति ऊंच नीच को एक कर मन भेद मिटा, तन मन के मनके मिलाने का प्रतीक है वहीं *हुतं लाति इति होली* कृषक के बोए बीज को सहस्र गुणा कर प्राकृतिक बासन्ती देवत्व के विदा स्वरूप अंतिम आनंद को मनाने का सुखदायी प्रेरणास्पद उत्सव है।
वस्तुतः ऋतु परिवर्तन प्रत्येक 2 मास पर होना प्रकृति का परिणामी स्वभाव है। नवसस्य-नई फसल का आना ईश्वरीय व्यवस्था है। स्वास्थ्य लाभ ले प्रकृति का संरक्षण संवर्धन कर ईश्वर को इष्टि यज्ञ कर धन्यवाद करना मानव का परम धर्म है।
समस्त 12 आदित्य- मासों में अंतिम मास होली ही तो है।
जो सूचना कर रही है मैं जा रही हूँ अपना पद चैत्र मास को देकर, उठो जागो अभिनंदन करो नए युवराज (चैत्रमास) का
घरों पर ॐ के भगवा ध्वज व नमस्ते के प्रतीक चिन्ह लगा वृहद नवान्न यज्ञ कर।
अभिनंदन करो समस्त सुखी दुःखी जनता का स्नेह के सप्त रंगों में सराबोर हो, अभिनंदन करो प्रेरक शिक्षक प्रकृति का- वृक्षों यज्ञों को प्रचुर मात्रा में बढ़ा, जो प्रकृति स्वतः गुड़हल टेसू इत्यादि के पुष्पों का आँचल पसार तुम्हारा अभिनंदन करने उत्सुक है।
वास्तव में ईश्वर के बाद प्रकृति से बड़ी कोई दैवीय शक्ति नहीं, कोई माँ नहीं जिसके आँचल में लालन पालन पोषण तो हो ही रहा है शिक्षा प्रेरणा मार्गदर्शन भी प्रतिक्षण मिल रहा है।
एक मुट्ठी दाने से करोड़ों दामन भरने की शिक्षा- प्रकृति माता ही तो प्रतिक्षण सिखला रही है।
सचमुच जहां त्याग समर्पण सेवा दान हैं वहीं उत्तम फलित सार्थक आधान है।
चाहे वह किसी भी वस्तु का हो।
जाते जाते यह होली की त्योहारी गन्ने की पौर की तरह संगठित रहने की प्रेरणा हमारे मनोमस्तिष्क पर बिठा, कुछ कह कर जाती है। आऊँगी पुनः पुनः देखने तुम्हें प्रति 12वें मास में,
करके जा रही हूँ समस्त बुराइयों व्यसनों दुर्गुणों करोना मरोना आदि का होलिका दहन, पनपने न देना कोई भी शत्रु पास में,
रहना मेरे प्यारे मिलजुल कर बिन झगड़े, जग स्वामी ईश्वर- खास में, जो तुम्हारे पास में, उसके ही निरन्तर विमल अभ्यास में, प्रतिक्षण करने आभास में, मिलन की सुंदर आस में,विश्वास में, प्रह्लाद में, आनंद में उमंग में उसाह में निदिध्यास में उल्लास में,,,,,,,,,,
*आलेख के साथ ही होली के पावन पर्व की आप सभी को अग्रिम हार्दिक मंगल कामनाएं*
*शत्रु जलाएं मित्र बचाएं*
*युक्ताहार विहार सुमति से*
*सुख स्वास्थ्य समृद्धि पाएं*
-दर्शनाचार्या विमलेश बंसल आर्या
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मुख्य संपादक, उगता भारत